पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४३०

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४२४ बुद्धदेव घरके सभी कामोंको अकेली नहीं कर सकती। मैंने नहीं है। आपकी पत्नी दासी हो कर यदि मेरी सेवा मुना है, कि आपके जालीय नामका एक पुत्र तथा कृष्णा.. करती, तो मुझे बड़ा सुख मिलता। जिना नामको एक कन्या है। मैं इन दोनोंको लेनेको ब्रह्मणको बात सुन कर वेश्मान्तरने माद्रीदेवीको ओर इच्छा करता है। ये मेरी पत्नीके दास और दासी हो देखा। माद्री देवीने स्वामीका अभिप्राय जान कर कहा, कर घरके सभी काम करेंगे और तभी मुझे घरकी चिंता- 'यदि मुझे दान कर आप बुद्धत्व प्राप्त कर सके, तो यह से फुरसत मिलेगी।' ब्राह्मणकी बात सुन कर वेश्मान्तर मेरे सौभाग्यको बात है।' बोले, 'महात्मन् ! मेरी दोनों सन्तान द्वारा यदि आपका बाद वेश्मान्तरने उक्त ब्राह्मणसे कहा, 'महाराज! मेरी प्रयोजन सिद्ध हो, तो मैं खुशोसे इन्हें आपके हाथ मौंप पत्नी ग्रहण कीजिए: यह सामान्य दान मेरे बुद्धत्वलाभका देता हूं ।' इतना सुनते ही जालीय तथा कृष्णाजिना सहायक हो।' इस पर ब्राह्मणरूपी देवराज बोले, 'हे वेश्मा- जङ्गलकी ओर भाग गई। उनकी माता उस समय फल तर ! मैंने आनन्दके साथ माद्रीदेवीको ग्रहण किया, अव मूलादिकी तलाश में बाहर गई हुई थी। वेशमास्तर दोनों इन पर आपका कोई अधिकार न रहा। मैं इन्हें आपके सन्तानको जोरसे पुकारने लगे। जालीय आ कर पिता- पास कुछ दिनोंके लिए गच्छित रख जाता हूं । ऐसा कह के पैरों पर गिर पड़ा और बोला, 'हे पिता ! हमारो माता कर भिक्षुरूपी देवराज अन्तर्धान हो गए। अभी बनके मध्य फल तथा काष्ठकी खोजमें गई हैं: वे उधर यूजक नामक ब्राह्मण जालीय और कृष्णाजिनाका जब तक लौट न आवे, तब तक हमें मत छोडिये लेकर जयातुरा नगरी पहुंचे । सञ्ज अपने पौत्र तथा पौत्री- ___ इस पर भिक्षु ब्राह्मण आगबबूला हो उठे और बोले, को पा कर बड़े ही प्रसन्न हुए और उस ब्राह्मणको इतना 'ऐसा झूठा मनुष्य मैंने अब लों नहीं देखा था। आप खिलाया, कि जिससे वह कराल कालके गालमें पतित संसारमें दयाशील कहलाते हैं, किन्तु मेरी समझमें नहीं हुआ। सञ्जने बड़ो धूमधामसे उसकी अन्त्येष्टिक्रिया आता, कि इन दोनों सन्तानको दे कर भी आप इन्हें की। कुछ दिनके बाद बहुत-से मनुष्योंको साथ ले सञ्ज नहीं छोड़ते।' वगिरि पर जा वेश्मान्तर और माद्रिदेवीको घर ले आये। पूर्वोक्त श्वेतहस्तोके प्रभावसे कलिङ्ग देशमें पूरी भिक्षु ककी बात सुन कर वेश्मान्तरने पत्नीकी अनु- उपज हुई। बाद उक्त देशवामियोंने उस हाथीको लौटा पस्थितिमे ही उन बच्चोंको दे दिया। पर्वतके ऊपर रास्तेमें दिया। वेश्मान्तर, माद्रीदेवी, महाराज सञ्ज, महारानी उन दोनोंको जो तकलीफ झेलनी पड़ी थी, उसे वेश्मा स्पृशती, जालीय तथा कृष्णाजिना सबके सब फिर एक लरने अपनी आंखो देखा था। माद्रादेवीने जंगलसे आ साथ मिले। वेश्मान्तरने शरीर त्याग कर तुषित नामक कर जब यह बात सुनो, तब वह फूट फूट कर रोने लगी। स्वर्गमें पुनर्जन्म ग्रहण किया। इसी जन्ममें गौतमने दान इस पर वेश्मान्तरने सान्त्वना देते हुए कहा, 'बुद्धत्व लाभ पारमिता प्राप्त की थी। करना सहज नहीं है। मैं पुत्र तथा कन्याको दान कर ___ वौद्धग्रन्थमें इसी प्रकार अपरापर पारमिता-साधनके यदि दानपारमिता सम्पादन कर सकू, तो निःसन्देह मुझे सम्वन्धमें अलौकिक गल्प वर्णित हैं। विस्तार हो जाने सर्वस्व लाभ हुआ। इस तुच्छ दानको देख कर तुम्हें के भयसे यहां कुलका वर्णन नहीं किया गया। बौद्धगण विस्मित नहीं शेना चाहिए।' किस भावमें बुद्धदेवके पूर्वजन्मकी लीला ग्रहण करते हैं, अनन्तर देवराजने देखा, कि वेश्मान्तर ऐसे दानो हैं, उसे दिखानेके लिए ही ऊपर कई एक कहानी दो गई, कि वे अपनी स्त्रीको भी वितरण कर सकते हैं। अच्छा अन्यथा इन सब गल्पोंके साथ शाक्यबुद्धके जीवनेति- मैं इसकी परीक्षा तो लू। अतएव उन्होंने ब्राह्मणका रूप हासका कोई सम्पर्क है ऐसा प्रतीत नहीं होता। धारण कर वेश्मान्तरसे कहा, 'महाशय! मैं बूढ़ा और बुद्धदेवके पूर्वपुरुष । रोगो हो गया ई-मेरो सेवा शुश्रूषा करनेवाला कोई महावस्तु नामक ग्रन्थमे कोलिय-राजवंशके उत्पत्ति-