पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सुद्धदेव ४२५ वर्णन अध्यायमें बुद्धदेवंके पूर्वपुरुषके विषयमें निम्न- दुःखित हुए । वे अपने पांचों पुतोंको बहुत प्यार करते थे। लिखित वृत्तान्त लिखा है, 'अतएव उन्हें किस प्रकार राज्यसे निकाल दूंगा' इसका __ सम्मत नामके कोई एक प्रसिद्ध राजा थे। उनके निश्चय नहीं कर सके। इधर जेन्तीको प्रार्थित बर प्रदान पुत्रका नाम था कल्यान । कल्यानके पुत्र रव, इनके पुत्र नहीं करनेसे उनकी प्रतिधति भङ्ग होती थी । वाद गजान उपोषध और उपोषधके पुत्र मान्धाता हुए। राजा जेन्तीसे कहा, 'मैं तो तुम्हें वही वर देता है किन्तु नगर मान्धाताके चंशने पुत्रपौत्रादिक्रमसे हजारों वर्ष तक गज्य तथा देशकी प्रजाओंको यह बात मालूम हो गई है, कि किया था । पश्चिम माकेत नगरमें सुजान नामक . मैं अपने पांचों पुत्रको निर्वामित कर तुम्हारे पुत्रको युव- इक्ष्वाकुवंशीय राजा राज्य करते थे। उनके ओपुर, निपुर, राज वनाऊंगा। अतः उन लोगोंने भी उन्हीं के साथ करकण्डक, उल्कामुख तथा हस्तिकशीष नामक पांच वन जानेको प्रतिज्ञा की है। राजाने भी प्रजाको ऐसा पुत्र एवं शुद्धा, विमला, विजिता, जला और जली नाम करनेसे नहीं रोका। प्रजागण भी बाल वञ्चोंको माथ की पांच कन्या थीं। ले सचमुच उक्त पांच कुमारोंके साथ चल चली। वे राजा सुजात जेन्ती ( जयन्तो ) नामक किमी विला मबके सब माकेत नगरसे बाहर जा कर उनको ओर सिनीके प्रेममें फंस गए। उसके गर्भसे जेन्त ( जयन्त ) वढ़े । कुछ दिन बाद कोशिकोशलके राजा उन नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ । एक दिन राजाने खुश हो मवोंको अपने राज्यमें ले गए। वे लोग कुछ दिन तक कर जेन्तीसे कहा, मैं तुम्हें मुंहमांगा वर प्रदान करू गा। वहीं ठहरे। अनंतर कोशिकोशलके गजाने देखा, कि अतः तुम्हारी जो इच्छा हो, वही वर मांगो।' इम पर ये सब मनुष्य इन पांच कुमारों के प्रति बड़े ही अनुरक्त जेन्तोने कहा, 'महाराज! पहले में अपने मातापितामे पूछ हैं। यदि ये लोग यहां ज्यादा दिन तक रह जाय, तो लू, वे जो कुछ कहेंगे, वही मेरा अभीष्ट होगा।' वाद हो सकता है, कि मुझे मार कर इन्हीं कुमारीको गजा जेन्ती अपने मातापिता प्रभृति स्वजनोंके पास जा कर बनावें। इस प्रकार ईके वशीभूत हो कर गजाने पञ्च- बोली, 'राजाने मुझे मुहमांगा वर प्रदान करनेको प्रतिज्ञा । कुमारके साथ उस झुण्डको कोशिकोशल राज्यसे विदा की है अब आप सबोंकी जो आज्ञा हो वही घर किया। मैं मांगू।' उस समय जिसका जो अभिमत हुआ, अनन्तर वे लोग हिमालय पर्वतके प्रत्यन्त प्रदेश में उसने वही कहा। कोई बोला, 'जेन्ती! तुम एक उत्कृष्ट : शाखोटवनखण्डस्थित ऋषि कपिलके आश्रममें पहुचे प्रामका आधिपत्य मांग लो, इत्यादि। बाद पण्डिता और वहीं रहने लगे। वहां उन्होंने अपनी बहन, भांजी निपुणा तथा मेधाविनी किसी रमणीने कहा, 'जेन्ती! इत्यादिके साथ एक दुसरेका विवाह किया। जब राजा तुम राजाको विलासिनी स्त्री हो । राजाने तुम्हें वर , सुजातने वणिकोंसे यह सुना, कि उनके पुत्र अनुहिमवत् मांगनेको कहा है, जो तुम्हारे सौभाग्यको बान है। प्रदेशके शाखोटवनखण्डस्थित ऋषि कपिलके आश्रममें वे बड़े ही सत्यवादी हैं, उनकी प्रतिज्ञा कभी अन्यथा , रहते हैं और उन लोगों ने वहीं पर पारणय कार्य सम्पन्न नहीं होती । तुम उनसे यही बर मांगो, कि 'महा- किया है, तब उन्होंने अपने पुरोहित और मन्त्रीसे पूछा, राज! आप अपनी क्षत्रिया स्त्रीके गर्भजात पांच कुमारों 'कुमारों ने जिस रीतिके अनुसार विवाह किया है, को राज्यसे निर्वासित कर मेरे गर्भसम्भूत जेन्न वह शक्य अर्थात् धर्म सङ्गत है या नहीं?' इस पर ( जयन्ता ) नामक पुत्रको यौवराज्य पर अभिषिक्त करें। पुरोहित ब्राह्मणपण्डितो ने कहा, 'महाराज! कुमारगण मेरी आपसे यही एकान्त प्रार्थना है, कि आपके मरने पर अभी जिस अवस्थामें रहते हैं, उसमें उक्त अनुरूप विवा- जिससे मेरा पुत्र साकेत महानगरका राजा हो सके, हादि शक्य अर्थात् सङ्गत है।' ब्राह्मणों ने उस कार्यको उसीका विधान कीजिए ।' जेन्तीने यही वर मांगा। शक्य बतलाया था, इसीलिए कुमारगण 'शाक्य' कह- राजा सुजात जेन्तीको इस प्रार्थनाको सुन कर बड़े लाये और उसी समयसे वे शाक्य नामसे प्रसिद्ध हुए। Vol, IV. 107