पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४३२

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बुद्धदेव नदनंतर उक्त शाक्ष्य कुमारोंने ऋषि कपिलकी अनुमति देख कर ऋषिके अंतःकरणमें उत्कट अनुराग उत्पन्न ले कर एक महानगर बसाया । कपिलपिने उन्हें वास' हुआ। उन्होंने सोचा* 'क्या संसारमें ऐसा कोई है जो स्थान प्रदान किया था, इसी कारण वह नगर कपिल- चिर-ब्रह्मचारी हो तथा जिसके हृदय में आसक्ति छू तक वस्तु नामसे प्रसिद्ध हुआ। कुमागे में ओपुर सवसे भी न गई हो! काठमें जिस प्रकार आग छिपी रहती बड़े थे, वे हो वहांके राजा हुए। राजा ओपुरके पुत्र निपुर. है, उसी प्रकार ब्रह्मचारियोंके हृदयमें अनुरागवह्नि प्रच्छन- निपुरके पुत्र करकण्डक, करकगडकके पुत्र उल्कामुख, भावमें विद्यमान है और मौका मिलते ही वह अनुरागरूप उल्कामुग्वके पुत्र हस्तिकशोप तथा हम्तिकशीष के पुत्र आशीविष प्रकुपित हो जाता है। सिंहहनु थे । सिंहहनुके शुद्धोदन, धीतोदन, शुक्लोदन और बाद वह राजर्षि शाक्यकन्याके सहवाससे ध्यान अमृतोदन नामके चार पुन नथा अमिता नामकी एक · तथा अभिज्ञासे भ्रष्ट हुए। वे उस कन्याको अपने आश्रममें कन्या हुई। ले गए। उक्त कोल ऋषिके औरस ओर शाक्यकन्या ___ अमिता बड़ी ग्वूवमूरत थी; किंतु कुछ दिनके बाद अमिताके गभसे बत्तीस पुत्र उत्पन्न हुए। वे सभी वह काढिन हो गई। चिकित्सकों ने आलेपन, वमन, देखनेमें बड़े ही सुन्दर और अजिनजटा धारण किये हुए विरेचन इत्यादि अनेक प्रकारके प्रतीकारकी व्यवस्था , थे। अनन्तर अमिताने अपने पुत्रोंसे कहा, 'तुम की, पर रोग जैसेका तैसा ही बना रहा। धीरे धीरे लोगोंके मातामह कपिलवस्तु नगरके राजा हैं, अतएव अमिताके समूचे सगरम फोड़ा निकल आया और ममी तुम लोग वहीं जावो।' मातापिताकी अनुमति ले कर मनुष्य उससे घृणा करने लगे। बाद उसके भाई उमे कुपारोंने कपिलवस्तु नगरकी ओर यात्रा कर दी। वहांके ग्य पर विठा कर हिमालयके उत्सङ्ग पर्वतको गुफामें ले' शाक्योंने ऋषिकुमारोंसे पूछा, 'आप लोग कौन हैं और गए। वहां उन्होंने एक बड़ा गड़हा खोद कर अमिताको कहांसे आये हैं ?' इस पर वे लोग बोले, 'अनुहिमवत- उममें बिठा दिया। अनन्तर गड में प्रभूत खाद्य, उदक, प्रदेशमें कोल नामक जो राजर्षि रहते हैं हम लोग उन्हींके उपास्तरण, प्रावरण इत्यादि रख पत्थरों से दरवाजा : पुत्र नथा शाक्यराज सिंहहनुके दौहित्र हैं। हमारी वन्द कर वे सब लौट आये। चारों ओर बन्द रहने के माता मिहहनुकी लड की है।' शाक्यगण यह सुन कर कारण गडहेमें वड़ो गर्मी पड़ने लगी। उस आवत बडे. प्रसन्न हुए । जब उन्होंने सुना, कि जिस कुष्ठरोग- स्थानका वास तथा वहांको उष्णताका सेवन कर अमिता ग्रस्ता अमिताको निर्वासन किया था, वह रोगसे निर्मुक्त कुष्ठव्याधिसे विमुक्त हो गई। उसके शरीरमें एक भी हो गई और उसोके गर्भसे इन ऋषिकुमारोंकी उत्पत्ति फोड़ा न रह गया। उसने अमानुपिक सौन्दर्य प्राप्त हुई है, तब उनके आनंदको सीमा न रही । उन्होंने कुमारों- किया। मनुष्यकी गंध पा कर एक वाघ वहां आया को प्रचुर दान दिया। शाक्यकन्याओं के साथ उनका और अपने पैरों से दरवाजे परके पत्थरों को हटाने लगा। विवाह हुआ। कोल नाम ऋषिके औरससे उनका उसके समाप हो काल नामक एक गजर्षि रहते थे। जन्म हुआ था इसीलिए वे लोग कोलियवंश नामसे उन्होंने पांच प्रकारको अभिशा तथा चार प्रकारके ध्यान प्रसिद्ध हुए। प्राप्त किये थे। उनका आश्रमपद फल, मूल, पत्र. पुष्प और शाक्योंके। देवदह नामक पक जनपद था। वहां जलसे ममृत तथा विभूपित था । उस ऋषिको आश्रमके सुभूति नामक एक समृद्धिशाली शाक्यराजा रहते थे। चारों ओर घूमते हुए देख कर बाघ उरके मारे भाग ..... गया। ऋषिने गड ढेके पास जा कर उसका दरवाजा * "किं चापि तावच्चिरब्रह्मचारी न चास्य रागानुशयोसमूहतो। खोल दिया। वहां उस परम रमणीया शाक्यकन्याको देख: पुनाऽपि सो रागविषो प्रकुप्यति तिष्ठ यथा काष्ठगतं अनुहतम् ॥" कर उन्होंने पूछा, 'तुम कौन हो ?' इस पर अमिताने . अवदानकल्पलता, महावंश, जातक, महावग्ग, बुद्धचरित- सारा हाल कह सुनाया । परम सौन्दर्यशालिनीअमिताको । काव्य इत्यादि ग्रंथोंमें भी ऐसी ही आख्यायिका वर्णित है।