पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४२९ बुद्धदेव मनुष्यको देख कर सिद्धार्थने सारथिसे पूछा, 'सारथे ! है और वह कसे समय व्यतीत करता है, इसका क्या क्यों यह मनुष्य लाठीकं बल झुक कर इतनी तकलीफ- . कारण ?" से चलता फिरता है ? उसका शरीर दुर्बल और स्थैर्य- सारथिने जबाब दिया, प्रभो! यह मनुष्य रोग विहीन तथा मांस, रुधिर और त्वक् सभी सूख गए हैं। ग्रस्त हो कर अत्यन्त दुःखित है। इसकी मृत्यु निकट देहकी शिराएं भी दिखाई पड़ती है। इसका सिर उजला, आ गई है। इसके आरोग्यलाभकी कोई सम्भावना नहीं । दांत विरल और अङ्ग प्रत्यक्ष अन्यन्त कृश हो गए हैं, . इसको ताकत बिलकुल जाती रही। रक्षा पानेकी कोई इसका क्या कारण है? आशा न देख कर यह मनुष्य निरावलम्ब हो गया है।' ___ इस पर सारथिने कहा, 'हे देव ! यह मनुष्य बुढ़ापेके तब सिद्धार्थने कहा, 'आरोग्य स्वप्नक्रीड़ाकी तरह द्वारा अभिभूत, दुःखित और बलवीर्य हो गया है। इस अलीक है, व्याधिममूह अत्यन्त भयङ्कर हैं। क्या कोई को सभी इन्द्रियां क्षीण हो गई हैं। आत्मीयगण द्वारा विज्ञ पुरुष ऐसी अवस्था देख आमोद प्रमोदमें मस्त हो परित्यक्त हो यह व्यक्ति अभी निःसहाय हो गया है। कर सांसारिक सुखका अनुभव कर सकता है ?' वनमें जिस प्रकार मूग्बी लकड़ी व्यर्थ पड़ी रहती है। एक समय जब सिद्धार्थ नगरके पश्चिम द्वार हो कर यह मनुष्य भी उसी प्रकार अकर्मण्य हो काल-यापना उद्यानकी ओर जा रहे थे, तब एक मृतकको देख कर करता है।' । उन्होंने सारथिसे पूछा,--'हे सारथे ! क्यों इस मनुष्यको सिद्धार्थने फिर भी सारथिसे पूछा,--जराग्रस्त होना लोग चारपाई पर ले जा रहे हैं। इसके बाल चारों ओर क्या इस मनुष्यका कुलधर्म है अथवा संसारके सभी मनु- विखरे हुए हैं तथा सभी मनुष्य सिर पर धूल फेकते हैं ग्योकी, ऐसी ही अवस्था होती है। जल्दी यथार्थ उत्तर और छाती पीट पोट कर बिलाप करते हैं, इसका क्या दो, मैं इसका कारण खोज निकालूंगा। कारण है ? तब सारथिने कहा, 'देव! यह इस मनुष्यका कुल- धर्म या राष्ट्रधर्म नहीं है, संसारके सभी मनुष्य यौवन मृत्यु हुई है। यह मनुष्य फिर भी अपने पिता, माता, और जरा द्वारा अभिभूत होते हैं। आप तथा आपके पुत्र और पत्नी प्रभृतिको नहीं देख सकता। घर, पिता, पिता, माता, भाई और कुटुम्ब परिवार आदि कोई भी : माता, मित्र तथा बन्धु आदिको छोड़ कर यह परलोक बुढ़ापेके हाथसे छुटकारा नहीं पा सकते । मनुष्यको यही जाता है।' एक गति है। तब सिद्धार्थने कहा, 'यौवनको धिक्कार है, क्योंकि, इस पर सिहाथ वोले, 'हे सारथे! सभी मनुष्य जरा इसके पीछे ही लगी रहती है। आरोग्यको धिक्कार निर्वाध हैं, उनकी बुद्धिको धिक्कार है, क्योंकि वे जवानी- है, कारण, विविध व्याधि अवश्यम्भावी है। जीवनको के मदरी उन्मत्त हो कर बुढ़ापे पर ध्यान नहीं देते। धिक्कार है. क्योंकि मनुष्य चिरस्थायी नहीं हैं। विज्ञ तुम रथ लोटाओ; मैं उसी जराग्रस्त व्यक्तिको पुनः · पुरुषको धिक्कार है, कारण वे अलीक आमोद प्रमोदमें देखूगा। मुझं भी एक दिन इसका शिकार बनना मत्त हैं। यदि जरा, व्याधि तथा मृत्यु न होती, तो पड़ेगा। अतएव इस क्रीड़ासुखसे क्या प्रयोजन ?' मनुष्यको पञ्चस्कन्ध धारण कर इस महा दुःखका भोग एक सम सिद्धाथ नगरके दक्षिण द्वार हो कर उद्यान नहीं करना पड़ता। उन तीनोंके नित्य सहचर हो कर घुसे। उसी समय उन्होंने एक रोगग्रस्त मनुष्यको देख हम लोगोंको जो तकलीफ उठानी पडती है, उससे कर सारथिसे पूछा, 'हे सारथे ! क्यों यह मनुष्य अपने आश्चर्यकी बात और क्या है ? अतएव मैं घर लौट कर कुत्सित् मलमूत्र में पड़ा हुआ है ? इसका शरीर पीला : दुःखसे छुटकारा पानेका उपाय करूंगा।' पड़ गया है, सभी इन्द्रियां विकल हो गई हैं तथा सर्वाङ्ग किसी समय सिद्धार्थ नगरके उत्तर द्वार हो कर सूख गया है। यह बड़ी तेजीसे सांस लेता और छोडता उद्यानकी ओर जा रहे थे कि इतने में उन्होंने एक शान्त-