पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४४१

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बुद्धदेव भी आ जा सके। हे भगवन् ! भूत, भविष्यत् और वर्त- नामक गांव गये। वहां उन्होंने भिक्षकोंको सम्बोधन मान कालके झानी मनुष्योंने धमका ठीक वैसा ही एक कर कहा, हे भिक्षगण! चार प्रकारके सत्यका प्रकृत दरवाजा खोल रखा है। उन लोगोंका कहना है, कि पहले तत्त्व न जाननेके कारण ही मनुष्य बारम्बार इस लोक काम, हिंसा, आलस्य, विचिकित्सा और मोह इन पांच तथा परलोक जाते आते हैं। दुःख, इसकी उत्पत्ति, प्रकारके प्रतिवन्धकका निवारण करना चाहिये। अन- इसका ध्वस और इसके ध्वसका उपाय इन चार महा तर क्रोध, उपनाह. नक्षदान: ईर्षा, मात्सय. शाठ्य, सत्यको अच्छी तरह जान लेनेसे ही भवतृष्णाको नियत्ति माया, मद, मिहिंसा, अही, अनपत्रपा, स्त्यान. औद्धत्य, तथा पुनर्जन्मका उच्छेद होता है। अश्राद्ध्य, कौपीन्य, प्रमाद, मूषितस्मृतिता, विक्षेप, असं इसके बाद बुद्धदेव नाडिका नामक स्थानमें पहुंचे प्रजन्य, कौकृत्य, सिद्ध, वितर्क तथा विचार ये चौबोस और वहीं उन्होंने भिक्षकोंको धर्मादश नामका धर्मोपदेश प्रकारके उपक्लेश अर्थात् चित्तका दुखितभाव परिवर्जन दिया जिसका सार यह था जिम मनुष्यका बुद्धधर्म करना कर्तव्य है। इसके बाद यह हमेशा याद रखनी और सङ्क पर दृढ़ विश्वास है, उसे नरक या प्रेतयोनिमें चाहिये, कि शरीर अपवित्र है, वेदना दुःखमयी है, चित्त जन्म नहीं लेना पड़ेगा। चञ्चल है और सभी पदाथ मिथ्या हैं । फिर स्मृति, कुछ दिन बाद बुद्धदेवने वैशाली नगरी जा कर आनं पुण्य, वीर्य, प्रीति. प्रश्रब्धि, समाधि और उपेक्षा इस पाली गणिकाके घर भोजन किया था। उक्त गणिकाने सम्बोधि-अंग अर्थात् परम ज्ञानके विषयमें सोचना विनीतभावसे कहा, “भगवन ! मैं अपना आम्रवन भिक्ष उचित है। और इसी प्रकार सोचते सोचते सम्बोधि संघको प्रदान करती है, कृपया इसे ग्रहण कीजिये।" अर्थात् परम ज्ञान लाभ किया जा सकता है। भूतकाल. अम'तर बुद्धदेव उसे नाना प्रकार के धर्मापदंशसं उत्सा के शानियोंने इसी प्रणालोका अवलम्बन कर सम्बोधि हित कर वहांसे चल दिये। प्राप्त की थी। भविष्यत्कालके ज्ञानी मनुष्य भी इस बुद्धदेवने वहांसे बिदा हा कर बिल्वग्राममें वर्षा पथका अनुसरण कर सम्बोधि लाभ करेंगे। हे भगवन ! काल बिताया। उस समय उन्हें अस्वस्थ देख भिक्ष गण आपने भी उक्त प्रणालोका अवलम्बन कर सम्बोधिलाभ व्याकुल हो गए। इस पर उन्होंने आनन्दसे कहा है किया है। आनन्द ! भिक्ष गण मुझसे और क्या चाहते है ? मैंने अनन्तर बुद्धदेव पाटलोग्राम गए। वहांके उपासको तुम लोगोंके निमित्त प्रकाश्य-धमका प्रचार किया है-- ने उनको खूब खातिर की। बाद बुद्धदेव बोले, हे इसमें कुछ भी गुह्य नहीं है। तुम लोग इसका आश्रय उपासकगण ! अधार्मिक और दुःशील गृहस्थोंकी पांच ग्रहण कर धर्मरूप दीपक जलाओ और दूसरे किसी धम प्रकारसे हानी होती है, (१) वे बड़े दरिद्र होते हैं, .

का आश्रय मत लो, अपने में ही अपना आश्रय लो। है

(२) उनका चारों ओर दुर्नाम फैल जाता है, (३) ___ आनन्द ! मेरे निर्वाणके बाद जो यह धर्मदीप प्रज्वलित मनुष्य उनका विश्वास नहीं करते, ( ४ ) देहावसानके कर मुक्ति लाभके निमित्त अपने ही ऊपर निर्भर करेगा, समय भी उनके चित्तका उद्वेग निवृत्त नहीं होता और . दूसरेका आश्रय नहीं लेगा, वही भिक्ष ओंके मध्य अग्र (५) मरनेके बाद वे निरयगामी होते हैं। किंतु सुशील गण्य होगा। मनुष्य पांचो प्रकारके लाभ उठाते हैं--(१) वे महा- । ____ अनतर बुद्धदेव वैशालीनगरीकं चापलचैत्यमे कुछ सुखका भोग करते हैं, (२) उनका सुनाम चारों ओर दिन तक ठहरे। उसी समय पापात्मा माग्ने आ कर फैलता है, (३) उनका अन्तःकरण प्रसन्न रहता है, (४) देहावसानके समय उनके चित्तमें किसी प्रकारका उनसे कहा, 'हे भगवन् ! आप परिनिर्वाण लाभ करें--- उगनहीं रह जाता और (५) मरनेके बाद उन्हें स्वर्ग• आपका अंतिम समय आ गया है।' इस पर बुद्धदेव प्राप्त होता है। . बोले, 'जब तक भिक्ष , भिक्ष णो, उपासक और उपासिका अनन्तर बुद्धदेव आनन्द और भिक्षकोंके साथ कोटि ; समूह यिनीत, विशारद, धर्मधर तथा धर्मानुधर्मचारी