पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४५०

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बुद्धिस्थ-बुध बुद्धिस्थ ( स० वि०) बुद्धिस्थित। । भगवान् रुद्र भी बृहस्पतिकी सहायता करने लगे। शुक्र बुद्धिहत ( स० वि०) बुद्धिहीन, जिसमें बुद्धि न हो। चंद्रके पक्षमें थे इस कारण प्रधान प्रधान दानव बुधके बशिहा (स. स्त्री०) बद्धिको नष्ट करनेवाली, शराब। पक्ष हो गये। गृहस्पति और चंद्रमें तमल संग्राम बुद्धिहीन (सबि०) जिसे बुद्धि न हो, मूर्ख । बंधा। इंद्र देवताओंके साथ बृहस्पतिको सहायता करने बुद्धीन्द्रिय ( स० क्ली० ) बुद्धद्यात्मक वा इन्द्रियं । ज्ञाने लगे। उस समय भगवान् ब्रह्माने असुर और देवताओं को युद्धसे निवृत्त कर वृहस्पतिको नारा दिलवा दी। उस "मनः कौँ तथा नत्रे रसना त्वक च नासिके । समय वृहस्पति ताराको गर्भिणी देख कहने लगे, 'हमारे बुद्धीन्द्रियमिनि प्राहुः शब्दकोशविचक्षणाः ॥" क्षेत्र में अन्य व्यक्तिके वीर्यसे उत्पन्न पुत्रका धारण करना (शब्दरत्ना०) तुम्हारे लिये उचित नहीं है।' चक्ष, कर्ण, नासिका, जिह्वा, त्वक् और मन यही गृहस्पतिके यह वचन सुन ताराने ईषिकास्तम्भ बुद्धीन्द्रिय है। इन्द्रिय ग्यारह हैं जिनमेंसे पांच ज्ञानेन्द्रिय (मूजके तिनकोंका गुच्छा)में वह गर्भ गिरा दिया। निक्षेप- और पांच कर्मेन्द्रिय तथा मन उभय-इद्रिय है। पञ्चज्ञान- मात्रसे समुत्पन्न पुत्र अपने तेज द्वारा देवताओंको अभिभव न्द्रिय ही बुद्धीन्द्रिय हैं। । करने लगा। इसको देख कर देवताओंने तारासे पूछा, 'तुम बुद्ध क ( स० पु० ) चैत्य, वह स्थान जहां बुद्धदेवके सत्य कहा, कि यह संतान किसकी है।' ताराने लज्जासे अवयव और व्यवहार्य द्रव्यादि रखे हुए हैं। कुछ भी जवाब न दिया। उस समय इस कुमारने बुद्बुद (स.पु.) १ वर्तलाकार जलविकार, बुलबुला। माताको शाप देनेमें उद्यत हो कहा, 'क्यों नहीं हमारे २गर्भस्थ अवयव विशेष । पिताका नाम कहती हो, मैं तुम्हें यही शाप देता है बुध (म० पु०) बुध्यते यः, बुध (हगुपधज्ञाप्रीकिरः कः । पा ३॥१, कि अन्य कोई भी तुम्हारे जैसो मन्थर भाषिणी १३५) पंडित । पर्याय -विद्वत्, विपश्चित्, दोषह, सत् नहीं हो सकती।' उस समय तारा लजित हो सुधी, कोविद, धीर, मनीषी, झ, प्राश, संख्यावत्, पंडित, बोली, 'यह पुत्र 'द्रका है।' चंद्रने यह वचन सुन कवि, धीमत्, सूरि, कृतिन्, कृष्टि, लब्धवर्ण, विचक्षण, दृर-। पुत्रका आलिङ्गन किया और उमसे कहा, कि तू अति दर्शिन्, दीर्घदर्शिन, विदग्ध, दूरदश, सूरिन, धेदिन, वृद्ध, । प्राज्ञ है इसलिये तेरा नाम बुध हुआ। (विष्णुपु० ४१७ अ०) बुद्ध, विधानग, प्रशिल, व्यक्त, प्राप्तरूप, सुरूप, अभिरूप, . काशीखण्डमें लिखा है--बुधने पूर्वोक्त रूपसे जन्मधारण बुधान, कवितादिन, वप्त, विदित, कवि। कर चंद्रकी अनुमतिसे काशीमें बुधेश्वर नामसे ( अमर, शब्दर०, जटाधर ) , शिवलिङ्गकी प्रतिष्ठा की तथा बहुत वर्षों तक कठोर "अत्युग्रं स्तुतिभिर्गुरु प्रणतिभिर्मुख कघाभिर्वधम् । । तपका अनुष्ठान किया। महादेवने उसकी तपस्यासे विद्याभी रसिक रसन सकानं शीलेन कुर्याद्वशम् ॥ प्रसन्न हो उसे यह वर प्रदान किया, 'नक्षवलोकके ऊपर (नवरत्न) । तुम्हारा लोक होगा तथा समस्त ग्रहमण्डलके बीच में २ नवग्रहके अन्तगत चतुर्थग्रह । वृहस्पतिको तुम श्रेष्टरूपसे सम्मानित होगे। तुम्हारा प्रतिष्ठित शिव- भार्या ताराके गर्भसे चंद्र के द्वारा इसकी उत्पति हुई है।' लिङ्ग आराधित हो कर सबको बुद्धि प्रदान करेंगे तथा विष्णुपुराणमें लिखा है चंद्रने देवगुरु वृहस्पतिकी पली' अन्तमें बुद्धलोकमें उनकी गति होगी। ताराको हरण किया । अनन्तर बृहस्पतिकी प्रार्थनासे भग- (काशीग्वंड १५ अ०) वान् ब्रह्माने चंद्रको बहु बार रोका, तथा समस्त देवर्षियोंने मत्स्यपुराणमें एक विशेष बात देखने में भाती है, कि भी चंद्रसे याश्च की, किन्तु चंद्रने नाराका परित्याग वृहस्पतिके घरमें ताराने १ वर्ष बाद सन्तान पैदा की महीं किया । वृहस्पतिके प्रति द्वेषनियंधन शुक्र भी उसके तथा यहां ही उसको संस्कारादि कार्य हुए। सहायक हो गये। इभर भगिरास विधालाम कर (मत्स्यपुराण २४