४६२ बुलबुल प्रफुल वित्तसे गान नहीं करते। गान करने के लिये खानेके लिये देना चाहिये। कभी कभी उन ससओंके कभी कभी छायाविशिष्ट और कभी रौद्रमय स्थान निर्वा. साथ मुगी या हंसके अंडोंको रस मिला कर देना चन कर वहां कुछ समयके लिये पिंजरेको रख दे। इस उचित है। पक्षीका सावधानी तथा मृदुनासे पालन करना कर्तव्य है। यह पक्षी पिंजड़े में आवद्ध रहनेसे कभी कभी बीमार इनको बढ़िया बाग, सुन्दर सुन्दर स्थान बहुत पसन्द भी पड़ता है। उस समय इसकी चिकित्सा करनी हैं। पुष्पोंको सुगंधि इनको बहुत भाती है तथा इनका चाहिये। अतएव जो पीड़ा इसको ज्यादा हुआ करती हैं स्वभाव अत्यन्त कोमल होता है । ये शरद् ऋतुके अन्तिम उसके कुछ औषधोंका विषय नीचे लिखा जाता है। भागसे ले कर वसंतऋतु तक उच्च कण्ठसे सुललित गान ___ आहार ठीक समय न मिलने, पिंजड़े में रहनेसे उचित गाते हैं। जब शीत ज्यादे पड़ने लगता है, तो इनका व्यायामका अभाव आदि कारणोंसे इनको मदाग्नि हो जाती गाना कुछ कमती हो जाता है। यह पक्षी सदा अपनेमें है। इस समय इनको एक दिनके अंतर पर तीन या चार ही मदोन्मत्त और अपने स्वरमें सदा मस्त देखा जाता है। मकड़ो खिलाना उचित है। इससे भी यदि वह दुर्बल ही गाते समय ये दिनकी अपेक्षा रात्रिमें अविश्रान्त नाना : दोख पड़े और उसकी पीड़ा बढ़ती ही चली जाये, तो तरहकी स्वरलहरोसे कणको सुख पहुचाता है और हृदयः । जलमें लौहसिडान (मोरचा लगा हुआ लोहा )को तीन को तो मानो स्वर्गसे दूसरे स्वर्गके रत्न सिंहासन पर ही चार दिन तक डुबो कर रखे और वह जल उसे पीनेको बैठा देता है। इसी गुणसे इस पक्षीका नाम अडरेजीमें दे । इससे मंदाग्नि या दुर्बलता दूर हो जाती है। Nightingale अर्थात् रातमें गानेवाली चिड़िया रखा प्रथम वर्ष में गानेके समय इस पक्षीके नाकके छेदके है। यदि आपका हृदय वालुकामय भूमिको तरह केवल ऊपर कुछ छोटे छोटे फोड़े निकल आते हैं । इस समय नीरस वा पाशवभाव पूर्ण न हो, तो आप संसारी हो : उन फोड़े पर मक्खन चुपड़ देना उचित है। यदि या संमागविरागी योगी हों, आपके हृदयको सदा इससे लाभ न दीखे, तो फिटकिरीको शहदके साथ फोड़ ही बुलबुलके सुललित मनोहर स्वरसे अवश्य ही आकृष्ट पर लगाना चाहिये। यदि इन दवाइयोंसे फोड़ा आराम और मोहित होना पड़ेगा। जब ये उत्तेजित होते हैं, तो न जाय तो छुरीको अग्निमें गरम कर उससे उन फोड़ोंको रातमें एक मुहूर्तके लिये भी इनका मनोहर गान बंद जला देवे तथा काले सावनके जलसे उस घावको बार बार नहीं होता। इस अवस्थामें ये किस वक्त सोते हैं इसका धो डाले। ऐसा करनेसे जखम अवश्य भारोग्य होगा। निर्णय नहीं किया जा सकता। इस गभीर निशीथके इस समय पीने जलके वदले तीन चार दिन तक विट- समय इनकी सुदूर ध्यापिनी स्वरलहरी सुननेसे किसका पालङ्गका रस देना उचित है । इसको प्रतिदिन नया बना चित्त मुग्ध नहीं होता ? ये एक विश्वासमें बहुत देर तक कर देना चाहिये। गान कर सकता है। पक्षपरिवर्तन काल पालतू पक्षीमात्र के लिये विपति- ___ यह पक्षी उद्यान नथा फलोंका अत्यन्त प्रिय है। जनक है, फिर बुलबुलके लिये भी उतना ही विपदावह है । इस कारण सुवासित उद्यानमें पिंजरेके आवरणको हटा इस समय पे प्रायः दुर्बल हो जाते हैं। इसलिये इनका कर रखना चाहिये अथवा कभी कभी इसके पिंजरेमें : शारीरिक बल संरक्षणार्थ पक्षपरिवर्तन कालके कुछ पहिले सुगंधियुक्त गुलावादि फूलों को रख देना उचित है। अर्थात् वैशाख मासके अन्तसे ज्येष्ठ मास तक इनको सबेरे और शाम इसे दूसरे मनोहर गानेवाले पक्षियोंका। मुगोंके अंडे और जाफरान (कुकुम ) मिश्रित सस देना गान श्रवण करावे । उसे सुन यह पक्षी बहुत प्रसन्न होता ' उचित है । पक्षपरिवर्तनके आरंभ होनेसे इनको आहार- है और वढ़िया तौरसे गाने लगता है। के लिये यथेट कोट और पतङ्ग देना होगा तथा बीच बुलबुलको फतिंगे, घोड़े की लीदमें उत्पन्न कीड़े, बीचमें मकड़ा खानेको देना चाहिये। इस समय इनको चीटियोंके अण्डे, भुने चनेके सत्तू गरम घोमें भूज कर स्नान और पीनेके जलमें कुंकुम देना नितान्त आवश्यक
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४६८
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