फड़काना-फणिचक्र
फड़ाना। ४ पक्षियोंका पर हिलना। ५ किसी अंगमें वत् शब्द लगा कर बनाया हुआ समस्त पद सांपका
गति उत्पन्न होना।
बोधक बनाता है। २ घ्राणमार्गके दोनों ओर स्रोतोमार्ग-
फड़काना (हि. क्रि०) १ दृमरेको फड़कनेमें प्रवृत्त करना। प्रतिवद्ध मर्मद्वय । मर्मन् देखो। ३ रस्सीका फंदा,
२ विचलित करना, हिलाना। ३ उत्सुक बनाना, उमंग मुद्धी। ४ नावमें ऊपरके तख्तेकी वह जगह जो सामने
दिलाना।
मुहके पास होती है, नावका ऊपरो अगला भाग ।
फड़कापेलन ( हिं० पु. ) एक प्रकारका बैल । इसका एक फणकर ( सं० पु. ) फणः कर इवास्येति, फणस्य करो
सींग तो सीधा ऊपरको होता है और दूसरा नीचेको वा। भुजङ्ग, सर्प।
झुका होता है।
फणधर ( सं० पु०) धरतीति धृ-अच फणस्य धरः। सर्प,
फड़नवीस - महाराष्ट्र-गजकर्मचारीविशेषका पद। पहले सांप।
यह पद केवल उन्होंका माना जाता था जो गजसभामें फणधरधर (सं० पु. ) फणधरस्य सपस्य धरः। शिव,
रह कर साधारण लेखकोंका काम करते थे। पर पीछे महादेव ।
यह पद उन लोगोंका माना जाने लगा जो दीवानी या फणभृत् ( सं० पु० ) फणं विभर्ति इति भृ-क्किप तुक्च ।
मालविभागके प्रधान कर्मचारी होते थे। ये लोग लगान सप।
वसूल करनेवालोंका हिसाव जांचा और लिया करते थे। फणवत् ( सं० पु०) फणोऽस्यास्तीति फण-मतुप, मस्य
बड़े बड़े इनाम और जागीर देनेकी व्यवस्था ये ही लोग व। सर्प ।
किया करते थे।
फणा ( सं० स्त्री० ) फणति प्रसारसङ्काचं गच्छतीति फण-
महाराष्ट्रराज-सरकारमें बहुतोंने फड़नवीसपदका भोग गतो अच् टाप् । सर्पफणा, सांपका फन ।
किया है, पर उनमेंसे नानाफड़नवीसका नाम भारतके फणाकर ( सं० पु० ) करोतीति कृ-अच, फणायाः करः।
इतिहासमें विशेष प्रसिद्ध है। नाना फडनवीस देखो। सर्प।
फड़फड़ाना ( हि क्रि । १ फउड शब्द उत्पन्न करना, फणाधर ( सं० पु० ) धरतीति -अच, फणायाः धरः ।
हिलाना। २ फडफड़ शब्द होना । ३ घबराना । ४ तड़- सपें।
फड़ाना। ५ उत्सुक होना।
फणाभर ( सं० पु. ) विभर्ति धरतोति भृ पचाद्यच । सर्प ।
फडिङ्गा ( सं० स्त्री० ) फाइति शब्दं इङ्गति गच्छतीति । फणावत् । सं० पु.) फणा अस्त्यर्थे मतुप, मस्य व ।
इङ्ग गती अत्र टाप । १ झिलाकोट, झींगुर। २ पतङ्ग, सपै ।
पतिगा।
फणि ( सं० पु०) विष।
फड़िया ( हि० पु० ) १ मामान्य द्रयविक्रयो, वह वनिया फणिक ( हिं० ० ) नाग, सांप ।
जो फुट कर अन्न बेचता हो। २ वह पुरुष जो जूमा फणिका ( सं० स्त्री० ) कृष्णोदुम्बरिका, काले गूलरका
खेलानेका व्यापार करता हो, जएके फंडका मालिक। पेड़।
फडी ( हि० स्त्रा० ) एक गज चौड़ी एक गज ऊंची और फणिकार ( सं० पु० ) वृहत्संहितोक्त देशभेद, एक प्राचीन
तीस गज लम्बी पत्थरों या ई टी आदिकी देरी। देशका नाम जो वृहत्संहिताके अनुसार दक्षिणमें था।
फडोलना । हि० कि. । किसा चोजको उलटाना पलटाना, फणिकेशर । स० क्लो० ) फणीव केशरोऽस्य नागकेशर ।
इधर उधर या ऊपर नीचे करना।
नागकेसर ।
फण ( सं० पु. , फणति विस्तृति गच्छतोति फण अच् । फणिखेल ( सं० पु० , फणिना सह खेलतोति खेल-अच ।
१ मर्पका विस्तृत मस्तक, सांपका फन । पर्यायः -फणा,' भारतीपक्षी ।
फण, फटा, फिट, सफर, स्फटा, दीं, भोग, स्फुट, म्फुटा, मणिचक्र (सं० क्ली०) फण्याकारं चक्र। फलित ज्योतिषके
दवा, फटी । इस शब्दके अन्तमें धर, कर, भृत्, अनुसार नाड़ीचक्रका नाम। यह एक सर्पाकार चक्र
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५०
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