पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५०५

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बेरार (बरार) सुदीर्ध उपत्यका भूमि हैं। इसके उत्तरभागमें सातपुरा दक्षिण-बरारके गांगना उपत्यकाके मेलघाट नामक पर्वतमाला और दक्षिणमें अजन्ता शैलश्रेणी है। स्थानीय पार्वत्यप्रदेशमै सेगुन काठ और जलानेको लकड़ी तथा लोग सातपुरा निकटस्थ उपत्यकाको बरार-पयानघाट घास बहुतायतसे मिलती है। अमरावतीके उत्तर-देश- तथा • अजन्ता शैल और तदन्तर्गत अधित्यका देशको वासी तथा पूर्णा नदीके उत्तर तोरस्थ प्रामवासी उस बरार-बालाघाट कहते हैं। इन दो भागोंके मध्यमें लकड़ी और घासको काममें लाते हैं। उत्तरांश हो अपेक्षाकृत उर्वर और शस्यशाली है। ____ बरारराज्यके पूर्वाशमें नथा वहांके करा पर्वत पर यहां ताप्तीको शाखा पूर्णा आदि कई एक पार्वत्र बहुतायतसे खनिज लोहा पाया जाता है। दुर्भाग्यका नाले सातपुरा और अजन्ता पहाड़से उतर कर मूलनदीमें विषय है कि देशीय लोग उस लोहेको गला कर किसी आ मिले हैं। यहां पर वर्षा नियमितरूपसे और यथेष्ट काममें नहीं लाते और न किसी धातुर्विद् वैज्ञानिक द्वारा होती है। इन सब कारणोंसे यहां कभी भी पानीको उसकी परीक्षा ही कराते हैं । बुन जिलेके वर्धा उपत्यका कमी नहीं होती और न सूखा ही पड़ता है । शरद् ऋतुमे देशमें उत्तर-दक्षिणको विस्तृत एक कोयलेकी खान शस्यपूर्ण क्षेत्रोंकी शोभा बड़ी ही आनन्ददायक होती है। (Coal ticld) पाई गई है। अनुमानसे वह उत्तरमें वर्धासे अधिकांश स्थानमें खेती-बारी होती है। परिश्रमी कृषक- दक्षिणमें पेनगङ्गा तक विस्तृत है। १८७५ ईमें उस गण बड़े उद्यम और उत्साहके साथ हल जोतते और खानको खोद कर परीक्षा भी की गई थी, कई स्थानोंसे बोज बोते हैं। कुनबी, भील आदि पार्वत्य जातियां ही कोयला भी निकाला गया था परन्तु वहां विक्रीको यहां किसानोंका काम करतो हैं। सुविधा न होनेसे वह कार्य स्थगित रखा गया। नाग- भूपरिमाणको तुलनामें बेरारप्रदेश आयोनियन द्वोप- पुरसे भुसावल भौर बम्बई जानेके लिये जो रेल गई है, को छोड़ कर प्रोस राज्यके समान है, परन्तु जन संख्या उससे यहांके कपास आदिके व्यवसायको विशेष उन्नति उससे प्रायः दुगुनी है। इसको पूर्वपश्चिममें विस्तृति हुई है। भारतके अन्यान्य स्थानोंकी रुईसे यहांकी रुई करीब १५० मील और साधारण प्रस्थ करीब १४४ अच्छी होती है और यहां कपासकी पैदावार भी मील है। यहां सब समेत ५७१० ग्राम हैं। ताप्ती, बहुत है। पूर्णा, वर्धा और पेनगङ्गा वा प्राणहिता ये यहांकी नदियां यहांकी आबहवा निहायत बुरी नहीं है । दाक्षिणात्य- हैं ; परन्तु उनमेंसे बर्दा हो कर बेरार उपत्यकाका अधि में सवत्र ही जैसी गरमी और जाड़ा पडता है, यहाँ भी कांश जल निकल जाया करता है। बुलदाना जिलेका वैसा हो समझना चाहिए । परन्तु पयानघाट उपत्यका- लोणार नामक लवण जलयुक्त हुदके चारों ओर पहाड़ 1 में गरमी विशेष पडा करती है। मार्च महीनेके अन्तसे है, मानो गोलाकारमें हृदको वेष्टित कर रखा हो। उस ही यहां गरमी शुरू होती, है अप्रेल तक वह किसी पर्वत पर नाना तरहके वृक्ष शोभित हैं । ह्रदका जलभाग तरह सहनीय रहती है, परन्तु मई और जूनमें तो वह ३४५ एकड़ है, परन्तु तीरभूमिकी परिधि ५॥ मोलसे बिलकुल असह्य हो जाती है। उसके बाद वर्षा शुरू हो कम नहीं है। जानेसे आवहवामें कुछ शीतलता आती है, रात्रिको यह १८८३ ई०के मार्च महीनेको जरीपके अनुसार यहां- स्थान खभावतः शीतल है। चारों ओर पहाड़ और उप- का बनभाग ४३४४ वर्गमील है। उसमें ११.६ वर्ग- त्यका सूर्यके तापसे विशेष उत्तप्त होने पर भी कालेरंगकी मोल राजरक्षित, २८३ वर्गमील जिला द्वारा रक्षित- मिट्टी होनेके कारण गरमी ज्यादा देर नहीं ठहरती । वर्षाके तथा २६५५ वर्ग-मील अरक्षित अवस्थामें पड़ा। समय चारों ओर खूब ठण्डक रहती है। अजन्ता पहाड़के है। इनमें गाविलगढ़ पहाड़का वन हो उत्कृष्ट है। : ऊपरवाले बालाघाट पार्वत्य देशमें समतल क्षेत्रको अपेक्षा यहांस बरारके अधिवासियोंको नित्य व्यवहार्य और गृह- बहुत कम उत्ताप है। सर्वोच्च गविलगढ़ पर्वतके तापका निर्माणोपयोगो काष्ट और बांस पर्याप्तरूपसे मिलते हैं। प्रभाव मध्यम है, इस पर्वत पर ३७७७ फुट ऊँचे स्थानमें