पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५०६

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बेरार (परार) चिकलदा नामक स्वास्थ्य-निवास है जो इलिचपुरसे २० जमाई अलाउद्दीन पहले पहल दाक्षिणत्य विजय करने माईल दूर है। आपे थे। उन्होंने देवगढ़में यादवराज रामदेवको युद्धमें बरार राज्यका इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है। परास्त और कैद किया था। कोई कोई कहते हैं कि नर्मदातट तक समग्र दाक्षिणात्य जब जिस प्रकारसे जिस रामदेव मार दिये गये थे, और किसी किसी का कहना राजाकी अधीनतामें शासित हुआ है, यह बरारराज्य भी | है, अलाउद्दीनने बहुत-सा धन ले कर छोड़ दिया था। उसो प्रकार उनमेंसे किसो एक राजाके अधीन रहा है । परन्तु उन्होंने इलचपुर राज्य उन्हें नहीं दिया था अथवा परन्तु इसके प्राचीनतम इतिहासका पता लगाना कठिन धनके साथ साथ राज्य भी ले लिया था। है। शिलालेखसे मालूम होता है, कि इस प्रदेशमें अनेक ____ अलाउद्दीनने दिल्ली लौट कर अपने चचा या श्वशुर- सामन्तराज थे, पर वे किस किम राजाके अधीन थे, को मार डाला और स्वयं दिल्लीके सिंहासन पर बैठे। इसका कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता। उनके राजत्वकालमें उत्तर भारतसे मुसलमान सेना- ऐतिहासिक तत्त्वालोचना करनेसे मालूम होता है, दलोंने दाक्षिणात्यमें जा कर लगातार कई बार वहांके कि ईसाकी ११वीं और १२वीं शताब्दीमें यहां राज्योंको तहस नहस कर दिया था । अल्लाउद्दोनकी कल्याणके चालुक्य राजगण राज्य करते थे। ईसाको मृत्युके बाद देवगिरिके अधीनस्थ दाक्षिणात्य प्रदेशने १३वीं शताब्दी में इस देशमें देवगिरि (दौलताबाद )-के | पुनः स्वाधीनता प्राप्त की, पर वह स्वाधीनता अधिक दिन यादववंशीय राजाओंका प्रभाव विस्तृत हुआ था, ऐसा तक न रहो। १३१८-१६ ई में मुवारक घिलने हिन्दू- अनुमान होता है। क्योंकि उक्त शताब्दीके शेषभागमें पठान विद्रोहका दमन किया। उन्होंने मुसलमानोंका कठोर राजा अलाउद्दीनने देवगिरिके हिन्दू नरपति रामदेवको शासन देखानेके लिए देवगिरिके अन्तिम हिन्दूराजाके परास्त करके मार डाला था। रामदेव एक प्रसिद्ध और शरीरकी चमड़ी उघड़वा डाली थी। उस समयसे १९०६ प्रवल प्रतापी राजा थे। उस समय इस देशमें यादव- ई० तक बरार राज्य मुसलमनोंके अधिकार में रहा । सन् वंशीय विशेष क्षमताशाली थे, यह बात शिलालेख और १८०६ में भारतके राज-प्रतिनिधि लार्ड कर्जनने राज- इतिहाससे स्पष्ट है। नैतिक कारणसे निजामको कह सुन कर बरार निजाम- कल्याणके चालुक्यराज और देवगिरिके-यादव नर राजासे पृथक् करा लिया। तभीसे यह हैदराबाद-एसा- पतियों द्वारा यहां लगातार राज्य किये जाने पर भी यह इण्डडिष्ट्रिक्ट स्वतन्त्ररूपसे "बरारप्रदेश" कहलाया । हम प्राचीन देवकीसिके ध्वंसावशेषादिसे अनुमान कर मुसलमान शासनकर्ताओंको अधीनतामें भी बरार सकते हैं, कि बरार प्रदेशके दक्षिण-पूर्वस्थ जिले बरंगुल खतन्त्र नामसे हो परिचित रहा ; हां शासकीके सामर्थ्या- के प्राचीन हिन्दूराजवंशके अधीन थे। नुसार उसकी सीमाको कमी वेशी अवश्य होती रही स्थानीय किंबदन्ती इस प्रकार है कि, इलिचपुर राज- थो। १३५० ई०में दिल्लीके मुसलमान सम्राट महम्मद भानीके स्वाधीन राजा यहांके अधिपति थे। उस वंशमें | तुगलकको मृत्युके बाद बरार राज्य दिल्लीके तुगलकवंश- इल नामके एक राजा थे। उन्हींके नामानुसार इलिचपुर की अधीनतासे पृथक हुभा और उसके बाद लगभग नामकरण हुआ है। यह राजवंश दाक्षिणात्यमें मुसल- २५० वर्ष तक यहांके मुसलमान शासनकर्ताओं ने दिल्ली- मान-प्रभावके पहले बरारका शासनकर्ता था। स्थानीय श्वरकी अधीनताको अपेक्षा कर स्वाधीन राजाकी तरह स्थापत्यकीर्तिकी आलोचनासे मालूम होता है, कि वे यहांका शासन किया। उसके बाद, करीव १३० वर्ष तक जैनधर्मावलम्बी थे। परन्तु अभी तक उक्त ध्वस्तकोत्ति- यह दाक्षिणात्यके ब्राह्मनी राजवंशके भधोन रहा । भला- को अच्छी तरह खोज नहीं की गई है, इसलिए इसका उद्दीन हुसेनशाहने अपने राज्यको ४ प्रदेशोंमें विभक्त निश्चित इतिहास अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। किया था, जिसमें माहुर और बरारके कुछ अंशको के १२६४ ई०में दिल्लीश्वर फिरोज धिलजैके भतीजे और कर एक प्रदेश गठित हुआ था।