पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५०८

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५.२ बेरार (परार) पूर्वसमृद्धिका हास होता रहा । १५६७ ई०में फरासीसी प्रस्त होना पड़ा और अंग्रेज-गवर्नमेण्ट १८०० ई०की भ्रमणकारी J. tle Th venotने इस देशका परिदर्शन सन्धिके अनुसार राज-कोषसे सेनाको वेतन देती रही। करके लिखा है, कि मुगल-साम्राज्यमें यह स्थान धन- इस तरह उत्तरोत्तर विप्लवोंके कारण निजामके अधिकृत धान्य और जलादिसे परिपूर्ण था। उसके बाद, स्थानीय देश नष्टप्राय होने पर अंग्रेज लोग शान्तिके लिए अप्र- कर संग्राहकोंके विद्रोहसे यह स्थान शस्यशून्य और सर हुए और १८४६ ईमें उन्होंने अप्पासाहवको कैद जलहीन हो गया। फिर राजाओंके युद्ध विग्रहसे यह कर उनके अधीनस्थ सेना-दलको भगा दिया। स्थान श्रीभ्रष्ट हो गया। इसी समयमें महाराष्ट्रोंने निजाम अंग्रेजोंके साहायतार्थ 'हैद्राबाद कण्टिा एट' दुर्घल और अरक्षित बरार राज्यको लूट कर नष्ट कर नामक सेनादलका पोषण कर रहे थे, स्वयं जब उस- दिया। उनको दस्युताके भयसे स्थानीय बाणिज्य के व्ययभार बहन करनेमें असमर्थ हो गये, तब उन्होंने का लोग हुभा और इसीलिए लोग देश छोड़ कर चले अंग्रेजोंको सोंप दिया। अब तक अप्रेज-गवर्नमेण्ट गये। मुगल-सम्राट्ने जब यहां एक जागीरदार नियुक्त ! उस ऋणके चुकता होनेका कोई मार्ग नहीं निकाल सकी कर राजस्व संग्रहकी व्यवस्था की तब उधर महाराष्ट्रोंने थी। इस कारण तथा ऊपर कहे गये युद्ध-विग्रहसे भी कर वसूलीके लिए स्वतन्त्र जागोरदार नियुक्त किये हैद्राबाद राज्य दिवालिया हो गया। इसलिए उपाया- और प्रजाको उत्पीड़न करने लगे। प्रजाओंने इस प्रकारसे न्तर न देख १८५३ ईमें अंग्रेजोंके साथ निजामकी एक दोनों पक्षको कर देने के कष्टसे दुःखित हो कर जमीन सन्धि हुई, जिसमें अंग्रेजोंको उनका ऋण चुकाने छोड़ दो। निरन्तर लूट-मार और दूसरोंका सर्वनाश और कन्टिओ एट-सेनादलके पोषणके लिए निजामसे होते देख प्रजाओंका हृदय भी कलुषित हो गया और वे ५० लाखको आमदके कई जिले प्राप्त हुए। ये जिले भी स्थायी बन्दोवस्तके पक्षपाती न रहे। तभीसे (धाराशिव और रायचूर दोआबको छोड़ कर) १८०४ ईमें हैद्राबादकी सन्धिकी शर्तमें पर्धानदीके "हैद्राबाद एसाइण्ड सिष्ट्रिक्ट" नामसे अंग्रेजोंके अधीन पूर्ववत्ती जिलोको ले कर समप्र परार राज्य (कुछ अंश परिचालित हुए हैं। उस सेनादलका मूलांश एलचपुरमें नागपुरका भोंसले वंश और पेशवाओंके अधीन रहा ) तथा आकोला और अमरावती में कुछ पदातिक मात्र रखे निजामके अधिकारमें चला गया। गाबिलगढ़ नरनाला गये। दुर्ग नागपुरके महाराष्ट्र सरदारोंके अधिकारमें था । १८ ___ उस सन्धिमें पह भी तय हुआ कि, अप्रेज-गवर्न- २२ ईमें फिर एक सन्धि हुई, जिसमें बरारकी सीमा मेण्ट निजामको सालकी साल हिसाब देगी और निर्दिष्ट हो कर वर्धाके पश्चिमस्थ समप्र प्रश निजामके | राजस्वका जो कुछ बचेगा वह भी निजामको मिलेगा। अधिकारमें चला गया और नागपुरके राजाको उक्त नदी- निजामको अब युद्ध के समय अंग्रेजोंके लिए सेना मही के पूर्वस्थित प्रदेश नाभमानको मिला। १७९५ ई में भेजनी होगी। वह सेनादल भी निजामके सेना-विभागके पेशवाने जिन जिलोंको अपने राज्यमें रखा था तथा अधीन न रहा, सिर्फ उन्ही के कार्यके लिए अप्रेजोंके १८०३ ई०तक नागपुरके राजाने जिन स्थानों पर कब्जा अधीन सेनादलके रूप में रखा गया। किया था, वह सब निजामको वापस दिया गया। बादमें १८५३ ई०को सन्धिके अनुसार वार्षिक हिसाब उपर्युक्त वारणसे अनेक राजाओंको सेनाओं की संख्या दाखिल करना असुविधाजनक मालूम हुआ। उस १८०२ घटा देनी पड़ी। उन सैनिकोंने अन्य कोई अन्नोपार्जनका ईकी सन्धिकी शर्तमें ५) सकड़ा शुल्क अदा करने- उपाय न देख डकैतो करना शुरू कर दिया। इन डकैतों की जो बात थी, उसको लेकर दोनों में और भी विवाद के अत्याचारोंसे राज्यकी रक्षा करनेके लिए निजामको ! होने लगा। तब अंग्रेजोंने इस विपत्तिसे छुटकारा बहुत कष्ट सहने पड़े थे और अर्थ-व्यय भी प्रचुर हुआ पानेके अभिप्रायसे तथा १८५७ ई०के गदरके समय था। इस अयथा अर्थव्ययके कारण निजामराज्यको ऋण- निजामके द्वाराकी गई सहायताके उपलक्षमें उन्हें पुर