पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५२५

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वोधगया-(बुद्धगया) बोधगयामें प्रसिद्ध महाबोधि मन्दिर के अलावा लोलावनभूमिमें जो एक साधु धीरे धीरे अपना साधु-उद्देश्य जन नदीके बाएं किनारे पर अवस्थित उद्यानके मध्य साधते थे, उस ममय किसोका भी उस ओर लक्षान था । एक सुबृहत् मठ है। यह अट्टालिका चौमंजिली और चैतन्यक प्रियतम शिष्य महाज्ञानी महादेव अपनी चारों ओर ईटोंको दोवारसे घिरी हुई है। इसके विद्याक प्रभावस । विद्याके प्रभावसे निकटवत्तों स्थानों में परिचित थे। दक्षिणमें 'बारह-द्वारी' नामक अट्टालिका और उत्तरमें बहुत महाबोधि-मन्दिरके सामने पकान्तमें बैठ कर वे महादेवी- से गृहादि देखनेमें आते हैं। उक्त मठ के पश्चिम प्राकार की साधना करते थे। देवीकी कृपासे वे इस अद्र मठ- के वहिर्भागस्थित स्तूपके ऊपर चार मन्दिग्यक्त एक को एक सुदीर्घ सङ्काराममें परिणत कर गए है। प्रवाद अट्टालिका शोभित है। इन चार मन्दिरोंमें एकम जग है, कि सम्राट शाहआलमके आदेशानुसार ये इस बुद्ध- न्नाथ, दूसरेमें गङ्गाबाई प्रतिष्ठित राममूर्ति और .प दो मन्दिर के एकमात मत्त्वाधिकारी तथा प्रधान महन्तके में शिवमूर्ति स्थापित हैं। उक्त मठके दक्षिण-पश्चिम से गिर्न जान थे। उनके प्रधान शिष्य लालगिरि कोणस्थित प्राचीरके बाहर माधुओंका ममाधिग्थान दया-परवश हा यहां अतिथिशाला स्थापित कर गए हैं। और प्रत्येक समाधिके ऊपर स्तृप या लिडमनि लालगिरिक शिष्य राघव. गघबके शिष्य रैनहिप्त. उनके स्थापित हैं। केवल महन्तोंको ममाधिके ऊपर सदृश्य शिप गिवगिरि और शिर्धागरिक शिष्य हेमन्तगिरिने क्ष दाकार मन्दिरादि बने हुए हैं। महाधिकारी हा कर यथानियम अपने अपने कर्तव्यका __मठाधिकारी महन्तगण ही उक्त दोनों ग्रामके अधि- पालन किया था । की को म नोमानी यहांक महन्तगण आजोवन ह्मचर्यका अवलम्बन बचत और उक्त बोधियनके नोचे हिन्द या बौद्ध तीर्थ- करते हैं। शियोमसे जो ममधिक ज्ञानवान और विद्या- यात्रियोंका दिया हुआ उपहार मिला कर इसकी वार्षिक शाला होते, उन्हें ही प्रधान महन्तका पद मिलता था। आय लगभग ८० हजार रुपयेकी होगी। इन आमदनी- किन्तु अभी ऐसा नियम देखने में नहीं आता। शिष्यों में से उन्हें प्रतिदिन सैकड़ों संन्यासीके भोजन और एक जो सब छोटे तथा जिनके साथ मनाध्यक्षका अनेक अतिथि:शाला तथा विद्यालयका खर्च निभाना पड़ता है। सौसादृश्य है. वही वालक महन्तपदके अधिकारी सुननेमें आता है, कि १८वीं शताब्दीके प्रारम्भमें यहां होते है। मालपूआ, मोहनभाग और भङ्ग उनका प्रधान एक मठ स्थापित हुआ था। महन्तोंकी वशतालिकामे : खाद्य है। वर्तमान महन्त सुपण्डित और शास्त्रदी हैं। जाना जाता है, कि उस समय घमण्डीनागिरि नामक बुद्धगयाका प्राचीनत्त्व । एक शै-संन्यासी वहां आ कर बस गए और अपने बुद्धावतार प्रसङ्ग में यह स्थान तीर्थसमूहके मध्य गिना साम्प्रदायिक संन्यासियोंके रहने के लिये उन्होने एक मठ जाता है। शुद्धोदनके पुत्र शाक्यमिह राजसिंहासनका स्थापित किया। उनकी मृत्युके बाद उनके शिष्य परित्याग कर इस निर्जन प्रदेश में एक अश्वत्थवृक्षके नीचे चैतन्यगिरि माया। उस समय बद्धगयाका महा- बट ध्यानमग्न हुए थे। उन्होंने अपने योगप्रभावसे बोधि-मन्दिर जङ्गलसे भरा हुआ था। देवमति को सम्यकसम्बोधि प्राप्त की थी, इसलिए यह स्थान 'महा- परिचर्या तथा पूजाके लिये एक पुरोहित भी उस धन्य- : वधि और उक्त अश्वत्थक्ष जनसाधारणमें 'बोधि- प्रदेश में नहीं थे और न कोई यात्री ही देवपूजाकी इच्छासे

  • गया कलक्टरी आपिसके कागजातसे जाना जाता है, कि

वहां जाते थे। मुसलमान-प्रभावसे उत्सन्नप्राय इस गुलाबगिरि नामक एक महन्तने गरमेण्टसे मस्तिपुर ताराडी नामक

  • डा. बुकानन हेमिल्टन जब बुद्धगया आये थे, तब स्थान कायमी बन्दोवस्तत लिया । कोई कोई इस गुलाबगिरिको ही

उन्होंने वहाके महन्तसं मुना था. कि चैतन्यके समय यह स्थान शिबगिरिका नामान्तर बतलाते हैं। जंगलमय था और यहां एक भी बौद्ध देखने में नहीं आते थे। : +राजा अमरदेवकी अप्रामाणिक शिक्षाक्लिपिमें बुद्धगया नाम