पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५३०

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५२४ बोधन --बोधायन ऐसे स्थल में केवल तिथिमें ही बोधन होगा और तिथि ! दशभुजा दुर्गाकां षष्ठी और नवमी तिथिमें बोधन करना कृत्य होनेमे यु'मादर हो ग्रहणीय है। चाहिए। ___उभयदिने पूर्वाह्न नवमीना परत्रार्द्रानाभे परत्र बोधनं बोधनी (सं० स्त्री०) बुध भावे ल्युट, ङोष । १ बाध, शान । नतु युग्मात् पूर्वत्र । युग्मबाधकपूर्वाह्नस्य बाधकनक्षत्रानुराधात् दिवा २ गोपलका पेड़। ३ प्रबोधनी एकादशी, कार्तिक मास- नक्षत्रालाभे तु पूर्वाह्न एवं नवम्यां उभयत्र पूर्वाह्नलाभे पूर्व दिन को शुक्ला एकादशी। इस दिन भगवान् विष्णु सो कर एव युग्मात् । अत्र के ननयम्यां बोधनविधेर्नक्षत्रस्यापि गुणा उठते हैं, इसीसे इसका वोधनी नाम पड़ा है। यह अति फलत्वाय ।” तिथितत्त्व ) पुण्य दिन है। इसमें स्नान दानादि करनेसे अनन्त फल ____ केवल नवमा हो वाधन प्रशस्त है । यदि नवमीके लाभ होता है। दिन बाधन न हुआ, ना शुक्ल चान्द्राश्विनको षष्ठीनिथिको "शयनी बोधनी मध्ये या कृष्णाकादशी भवेत् । सायंकालमें बाधन करके दूसरे दिन सप्तमीको पूजा मैवापोष्या गृहस्थेन नान्या कृष्णा कदाचन ॥” (तिथितत्त्व) करना नाहिये । पष्टीमें वोधन असामर्थ्य प्रयुक्त ही कहा बोधनीय (सं० त्रि०) बुध् कर्मणि अनोयर । बोध्य, समझ गया है। अब कुल प्रथानुसार षष्ठी वा नवमीके दिन में आने लायक। बोधन हुआ करता है। बोधपृथ्वीधर ( स०पू०) एक वैदान्तिक । पठोके दिन वोधनस्थ ठमें यदि. पूर्व दिन सायंकालमें बोधयितृ ( स० वि० ) युध णिच् नृच । १ जो ज्ञानमार्ग षष्ठो प्राप्त हो और दूसरे दिन यनि मायंकालमें प्राप्त न हो ! सुझा देते हैं, गुरु। २ वैतालिक, जो स्तुतिपाठ द्वारा तुम सबेरे जगाया करता है। तो पूर्व दिन सायंकालमें देवीका बोधन और दूसरे दिन आमन्त्रण अधिवास हागा । यदि वे दोनों दिन ही सायं- बोधयिष्णु ( स० वि० ) जो नोंद तोड़ने में इच्छुक हो । कालमें पष्ठा लाभ हो, तो दूसरे दिन ही बोधन होगा। बोधरायाचार्य (म० पु० ) माध्य सम्प्रदायके प्रधान गुरु । __'यदा तु पूर्वदिने सायं पष्ठीमाभः परदिन सायं विना पष्ठी- ये सत्यवीरतीर्थ नामसे प्रसिद्ध थे। लाभः तदा पूर्वेद्य बोधनं परदिने सायमामन्त्रणं, यदा तुभयदिने ! बोधवासर (सं० पु० ) बोधस्य भावतो मायानिद्राया सायं पष्ठयलाभस्तदा परऽहनि पूर्वाह्न षष्ठ्यां वोधन, बोधयद्विल्व-: प्रबोधस्य वासरः । भगवान् विष्णुका प्रवोध दिन । उत्था- शाखायां पाठ्यों देवीं दलेां च । नैकादशी, इस दिन भगवान विष्णु सो कर उठते हैं । पछ्या बाधनेतु नक्षत्रानुपदेशान्न तदादरः।।" (तिथितत्त्व) हरिभक्तिविलासमें लिखा है, कि यदि वैष्णव यायजीवन बोधनमें सङ्कल्पके स्थानमें विशेष फलकामी होनेसे कैसा भी पुण्यकर्म क्यों न करे, पर वह यदि बोधवासर बोधन इस पदका उल्लेख होगा। देवीके बोधनका मन्त्र - अर्थात् उत्थान एकादशी न करे, तो उसके किये हुए सभी पुण्य निष्फल होते हैं। "इप मास्यमिते पक्षे नवम्यां चा योगतः । "जन्मप्रभृति यत् पुण्यं नरेणोपार्जितं भुवि । श्रीसते बोधयामि त्यां.यावत् पृजां कराम्यह ।। वृथा भवति तत् सर्व न कृत्वा बोधवासरम् । ऐरावगास्य बधार्थाय रामास्यानुग्रहाय च। (हरिभक्तिविलास) अकाले ब्रहणाा बाधा देव्यास्त्वयि कृतः पुरा ॥" बोधात्मा ( स० पु० ) जैनमतानुसार शान और प्रशायुक्त (पूजापद्धति) आत्मा । कालिकापुराणमें लिखा है, कि अष्टादशभुजाका बोधन बोधान (सपु) बुध्यते इति बुध-आनच । १ गोष्पति, तथा षष्ठोमें दशभुजाका बोधन करना सङ्गत नहीं है। वहस्पति। रविष्ण। सामना ही बोधन पष्ठी और नवमी दोनों तिथियों में । बोधानन्दघन ( स०ए०) आचार्य मेद । हुआ करता है। यह शास्त्र और लोकाचारमे प्रसिद्ध है । बोधायन -ब्रह्मसूत्रवृत्तिके प्रणेता । रामानुजने अपने श्रीभाष्य. शरत्कालमें दशभुजा दुर्गादेवोका वोधन कहा गया है, में इनका नामोल्लेख किया है। ये भगवद्गीता आर इसीलिए उनका नाम 'सारदा' पड़ा है । अतएव सारदा दश उपनिषदको टीका लिख गये हैं।