पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५३१

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वोधारण्ययति-बोरोबास वोधारण्ययति ( स० पु. ) तत्त्वकौमुदीव्याख्यानके बोना, हिं० कि० ) १ किसी दाने या फलके बोजको इस- प्रणेता, भारतो यतिके गुरु।। लिये मट्टीमें डालना जिसमें उससे अंकुर फूट और बोधि ( स० पु० ) बुध ( सर्वधातुभ्य इन् । उणे ४१११७) पौधा उत्पन्न हो । २ बिखराना, इधर उधर डालना। इति इन्। १ समाधिभेद । २ पिप्पल क्ष, पोपलका : वोवा (हिं० पु० ) १ स्तन, थन। २ गट्टर, गठरी। ३ पेड़। ३ बोध, ज्ञान। । त्रि.)४ज्ञातः । । घरका साज समान, अंगड़ वंगड़। बोधित ( स० त्रि. बुध-णिच क्त। ज्ञ. पेत, जताया बोम्बो (हि. स्त्री०) दाक्षिणात्यम पच्छिमी घाटको हुमा। पहाडियों में होनेवाला एक प्रकारका सदाबहार पेड़ । यह बाधितरु ( स० पु. ) बोधिरेव तरुः। १ अश्वत्थवृक्ष, पीपलका पेड़। २ गयामें स्थित पीपलका वह पेड़ बोर (हिं० पु०) १ डुवानेकी क्रिया । २ गुवजक आकारका जिसके नीचे बुद्ध भगवानने सबोधि ( बुद्रत्व ) प्राप्त : एक प्रकारका गहना। यह सिर पर पहना जाता है की थी। बौद्धोंके धर्मग्रन्थोंके अनुसार इस वृक्षका और इसमें मीनाकारीका काम होना है। रत्नादि भी कल्पान्तमें भी नाश नहीं होता और इसीके नोचे बुद्धगण इसमें जड़े हुए होते हैं। ३ चांदी या मोनेका बना हुआ सदा सबोधि प्राप्त करते हैं। गोल और कंगूरेदार घुघरू। यह आभूषणों में गूथा बोधितव्य ( स० त्रि०) बुध-णिच -तथ्य : शापितव्य ।। जाता है। बोधिद ( स० पु.) अर्हत्भेद। वोरका ( हिं० पु. ) १ दबात । २ मिट्टोको दबात । इममें बोधिद्र म ( संपु० ) बोधिरेव द्रमः । बोगितरु देखो। लड़के खड़िया घोल कर रखते हैं। बोधिधर्म ( स० पु० ) बौद्धधर्माचार्य। इनका पूर्वनाम बोरना ( हिं० कि० ) १ जल या किसी और द्रव्य पदार्थमें बोधिधन है। निमग्न कर देना, डुबाना। कलंकित करना, बदनाम बोधिन् (म०वि०) ज्ञात, प्रबुद्ध । । कर देना। ३ युक्त या आवेष्टित करना। ४ डुबा कर बोधिभद्र ( स० पु० ) एक बौद्धाचार्य भिगोना। ५ घुले रगमें डुबा कर रंगना। बोधिमण्ड ( स० पु० ) बोधिद्र मके नोच जिस बज्रासन बोरसी : हिं० स्त्री०) मट्टीका बरतन जिसमें आग रख कर पर बैठ कर शाक्यमुनिने ज्ञानलाभ किय था, पृथ्वीसे : जलाते हैं, अंगीठी। उस्थित उसी आसनका नाम ।

बोरा (हि० पु०) १ टाटका बना हुआ थैला ! इसमें अनाज

बोधिमण्डल ( स० क्ली० ) वह आसन जिन पर बैठ कर आदि रखते हैं। २ चाँदा या मानेका बना छोरा शाक्यसिंहने संवाधि प्राप्त की थो। घुघरू । बोधिसङ्घाराम ---बौद्ध संघारामभेद । बाधग मा देखा। बोरिका ( हिं. पु० ) मट्टोका एक प्रकारका बरतन : इसमें बोधिसत्त्व (स० क्लो०) बोधि बोधवत् सत्वं । बुद्धविशेष, लड़के लिखनेके लिये खड़िया घोल कर रखते हैं । वह जो बुद्धत्व प्राप्त करनेका अधिकारी : , पर बुद्ध न बोरिया ( हिं० स्त्री०) छोटा थैला। ( फा० पु०) २ हो । बोधिसत्त्वको तीन अवस्थाएं होतो : जिन्हें पार विस्तरा, चटाई। करने पर बुद्धस्वकी प्राप्ति होती है। बोरी ( हिं० स्त्री० ) टाटकी छोटी थैली, छोटा बोरा। बंधिसिद्धि-सहस्राख्य नाभक घेदान्तप्रन्थ के रचयिता। बोरो ( हिं० पु० ) एक प्रकारका धान । साधारणत धाम बोधेन्द्र-आत्मबोधटीका भावप्रकाशिका, नामरसायन,' तीन प्रकारका होता है, माउस, आमन, बोरो। यह धान नामरसोदय और हरिहरभेदधिकार प्रभृति संस्कृत प्रन्थ- नदीके किनारेकी सीडमें बोया जाता है और बहुत मोटा के प्रणेता। होता है। बोधेय (सपु० ) धर्म संप्रदाय विशेष । बोरोवोस (हिं० पु.) पूर्वी बङ्गालमें होनेवाला एक प्रकार पोध्य (स.लि. ) बुध-ण्यत् । बोधयोग्य, बोधनीय।। का बांस । Tol. ... 132