पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५४०

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बादधर्म महासत्त्व नाम हो अकसर व्यवहत होता है। वौद्धधर्म- (६) सान प्रकारको बोधि, योध्यङ्ग या सम्बोध्यङ्ग, प्रथमें बहतसे बोधिसत्त्वक विवरण पाये जाते हैं जिनमें- स्मति. अनसन्धिमा. उद्यम. प्रीति. शम. मनासयम. से मैले य, लोकेश्वर या अवलाकितेश्वर और मञ्जुश्री समाधि, उपेक्षा। समधिक विख्यात हैं। (७) अष्टाङ्गिक मार्ग या आठ प्रकारका पथ । ___ जो भविष्यत्में बुद्ध होंगे, उन्हें बहुजन्म अतिक्रम उपयुक्त गुण और धर्मके सिवा बोधिसत्त्वके करने होंगे। पूर्व में जो सब बुद्ध हुए, वे अपनो बुद्धत्व : अन्यान्य गुणका उल्लेख भो जगह जगह पर देखने में प्राप्तिके विषयका भविष्यद्वाणो कर गए हैं। उनके जन्न- आता है। जन्मान्तरके कार्य और गुणक। मैकड़ों प्रशंसा जातक उत्तर भारतीय प्राचीन बौद्ध-सम्प्रदायके महावस्तु तथा अवदान नामक बौद्धग्रन्थमं वर्णित है। वर्तमान नामक ग्रंथमे वाधिसत्त्वकी १० प्रकारकी भूमि या भद्रकल्पके बुद्ध शाक्यमुनिक पूर्वजन्मक सम्बन्धमें वैसे अवस्था वर्णित है। यथा- प्रमुदिता, विमला, प्रभाकरी, हो असंख्य इतिहास तथा गल्प लिखित और प्रचलित , अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुखी, दुरङ्गमा, अचला, मधु- हैं। पालि चरियापिटक और आर्यशूर-रचित जातकमात्ना देखा। मती और धम मेधा। बाधिसत्त्वमें अनेक नैतिक तथा मानसिक गुणांका . बोधिसत्त्वों जैसे असंख्य गुणोंका रहना आवश्यक रहना आवश्यक है। सबोंको अपेक्षा प्रधान गुण है जीवोंके है, वैसे हो उनके अधिकार भी असंख्य हैं। प्रति दया। शाक्यमुनिके बुद्ध हानेके पहले जिन सब बोधिसत्त्वो- पालिधर्मग्रम दशपारमिता या महागुणका उल्लेख ने जन्मग्रहण किया था, वे उन्हींके अवतार माने जाते हैं। देखनेमें आता है। यथा---दान, शोल, नेकखम्म या किसी किसी सम्प्रदायका विश्वास है, कि बुद्धत्त्वप्राप्ति ( निष्कर्म या ससार त्याग ), पज्ञा ( प्रज्ञा ), विरिय के बाद भी उन्होंने अवतार लिया है। ये लोग अशोकके ( वीर्य ), खन्ति ( क्षान्ति , सच ( सत्यवादिता ), अधि- पुत्र कुणालको भी एक अवतारमें गिनते हैं। द्वान (गुढ़सङ्कल्प ), मेत्ती ( मैत्री या ममता ), उपेक्खा . बौद्धधर्मनीति । । ( उपेक्षा )। ब्राह्मण्यधर्मको नीति वेद, स्मृति, पुराण, साधुओंके इन सब आध्यात्मिक गुणके अलावा बोधिसत्त्वमें आचरण और व्यक्तिगत विवेकके ऊपर संस्थापित है, उथ मानसिक गुणों का रहना भी परमावश्यक है। इन किन्तु बौद्धधर्म नीति केवल बुद्धके उपदेश तथा उनके गुणोंका नाम है वोधिपक्षधर्म और इनकी सैंतीस हैं। ये प्रदर्शित पथको अनुगत है। लेकिन बुद्धने जो एक ही सब गुण केवल बोधिसत्त्वके लिये प्रयोजनीय नहीं हैं ; : धर्म नीतिको प्रतिष्ठा को थो, ऐसा भी नहीं कह सकते। मह तोमे भी इनका रहना आवश्यक है। ये गुण सात कारण, उन्होंने स्वयं हो अनेक समय प्राचीन ऋषियोंकी भागोंमें विभक्त हैं। यथा -- धर्म नीतिको यथेष्ट सुख्याति की है। उन्होंने यह भी (१) देह, अनुभूति, उपस्थित चिन्ता और धर्म कहा है, कि प्राचीन ब्राह्मणगण अपने उच्च धर्म और सम्बन्धमें चार प्रकारका 'स्मृत्युपस्थान' अर्थात् स्मृति नोतिके लिए ससारमें प्रसिद्ध थे। या चिन्ताशीलता। बौद्धगण अपने धर्मग्रन्थमें ब्राह्मण्य हिन्दूधर्मको कथा (२) चा५ प्रकारके सम्मप्पधान ( मम्यक् प्रहाण ) स्वीकार तो नहीं करते, पर वास्तवमें उन्होंने अनेक अर्थात् प्रयोग या सत्चेष्टा । धम नीति, साधु और सत् आचारका व्यवहार हिन्दूधर्म- (३) चार प्रकारका इद्धिपाद ( अद्धिपाद ) या शास्त्रसे ग्रहण किया है। अलौकिक क्षमता। बुद्धने उपदेश दिया है, कि प्रत्येक धार्मिक गृहपति (४) पञ्च इन्द्रिय । . आर्य श्रावकको पञ्चवलि प्रदान करनी चाहिए । परिवार, (५) पच वाक ( मानसिक शक्ति )। अतिथि, पितृगण, भूस्वामी और देवताओंको यह पञ्च-