पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बौद्धधर्म . भिश्च सम्प्रदायकी सृष्टिके पहले ऐसे वासस्थानकी मनुष्योंकी दानशीलताके कारण श्रमणोंको मठके व्ययकी व्यवस्था प्रवर्तित थी या नहीं, इसका निर्धारण करना चिन्ता नहीं करनी पड़ती थी। दुरूह है बहुत-से भिक्षु ओंको एक साथ रहना चाहिए भिक्षुओंका कर्त्तव्य । ऐसा कोई नियम न था। वर्तमान सिंहलवासी भिक्षु - __ भिक्षु ओंके नित्य नैमित्तिक कर्तव्य है ---पुण्यकार्यका. गण वर्षाकालमें अपना मठ परित्याग कर समयोपयोगी अनुष्ठान, धर्मसूत्रपाठ और ध्यानधारणा, किसी मठमें स्थानमें रहते हैं , किन्तु बुद्धघोषका विवरण बिलकुल आगन्तुक (अन्य स्थानके अपरिचित भिक्षु) के आगमन- स्वतन्त्र था । इस विवरणमें देखा जाता है, कि भिक्षु ओं- से मठवासी उनकी सम्बर्द्धना करते थे। ये उनके वस्त्रादि का कर्त्तव्य यह है, --विहारका तत्त्वावधारण, अपने ढोते, पैर धोनेके लिए जल और शरीर मदनके लिए आहार तथा पानीयका संस्थान, विग्रहादि मूर्तिको सेवा तेल ला देते तथा नियमित समयमें जो नियमित और अन्यान्य यथाविहित अनुष्टान । भिक्षु ओंको प्रति आहार रहता था, उसे प्रदान करते थे। आग- दिन उच्च स्वरसे दो या तीन बार कहना पड़ता था, 'मैं | | न्तुकके कुछ देर विश्राम करने पर वे उनसे केवल तीन महीनेके लिए इस विहारमें वास करनेको पूछते थे, 'आपने कबसे भिक्ष व्रत ग्रहण किया है।' आया हूं।' प्रश्नका उत्तर मिलने पर उनके लिए निद्रा और वासका इस व्यवहारका प्रकृत उद्देश्य यही था, कि वर्षाकाल. स्थान निर्दिष्ट होता था तथा उनको मर्यादाके अनुसार में जिससे भिक्षु गण भ्रमण न करें, इसीलिए उस समय | जो सब परिचर्चाए विहित थीं, उसी प्रकार उनकी सेवा उनके गृहवासका नियम निर्दिष्ट हुआ था। भिक्षु ओंका की जाती थी। गमिक (गमनोद्यत ), पिण्डकारिक वासगृह निर्दिष्ट होनेके सम्बन्धमें ऐसा प्रवाद है,--पहले | (भिक्षाकार्यमें नियुक्त ) और आरण्यक ( अरण्यवासी) उनके कोई निर्दिष्ट वासस्थान न था। वन, पर्वतगुहा, भिक्ष ओंके लिए विभिन्न प्रणालीकी अभ्यर्थना तथा वृक्षमूल, श्मशान या ऐसे हो किसी स्थानमें वे रहते थे। परिचर्या विधिवद्ध है । ( चुल्लवग्ग ) राजगृहके एक समृद्धिशाली वणिक्ने उनके लिए वास- मठकी कार्यप्रणाली। स्थान बनानेकी इच्छासे बुद्धदेवकी अनुमति मांगी । इस ___मठकी कार्यप्रणाली नियमित करनेके लिए उपयुक्त पर उन्होंने भिक्षु ओंको विहार आदि पांच प्रकारके वास भिक्ष गण संघद्वारा नियुक्त होते थे। खाद्यविभाग, स्थानमें रहनेको अनुमति दी और उक्त वणिक्ने भो उनके वासस्थाननिर्देश. भण्डाररक्षा, वस्त्रादिरक्षा, परिच्छद वासके लिए एक दिनमें ६० वासगृह बनवाए। प्रदान, वर्षाकालके लिए स्वतन्त्र भावसे परिच्छद रक्षा, विहार। मठके उद्यानका तत्त्वावधारण, पीनेके जलकी व्यवस्था 'विहार' अर्थ से केवल बौद्धमठ ही नहीं वरन् मन्दिर' आदि नाना प्रकारके कार्य अनेक मनुष्यांके ऊपर सोंपा भी समझा जाता है । यूएनचुअङ्गका कहना है, कि सिंहल- हुआ था। सब विषयोंका सुनियम विधिवद्ध था ; सुतरां में भिक्षु ओंके वासस्थानका नाम 'पण शाला' और फिसी प्रकारके गोलमाल होनेको सम्भावना न थी। जहां देव देवी आदिको पूजा होती हैं उसका नाम 'विहार किसी किसी सङ्घमें मनुष्य नियुक्त नहीं रहते थे। जब है। भिक्षु ओंके वासस्थानका दूसरा नाम है "सङ्घा- आवश्यकता पड़तो थो; तभो भिक्षु कोंके ऊपर साम- राम"। प्रतीक बौद्धमठके मध्य विहार था ; यथा- यिक कार्यभार सोंपा जाता था। दृष्टान्तको जगहमें नालन्दा और सारनाथका विहार । 'नवर्मिक' पदका उल्लेख किया जा सकता है। यदि - मध्ययुगमें भारतवर्ष और सिंहलके संघारामका कोई व्यक्ति भिक्षु ओंके लिए घर बनवानेमें प्रस्तुत हो प्रकृत विवरण चीन देशीय बौद्ध परिव्राजकोंके लिखे कार्यकी देखरेखके लिए एक उपयुक्त भिक्षु चाहते थे, ग्रन्थमें हो मिलते हैं। इससे पता लगता है, कि जो मठमें , तो एकको उस कार्य पर रख दिया जाता था। रहते, वे 'आवासिक' कहलाते थे। राजा तथा धनी प्राचीन कालमें ज्ञान और उम्रका छोटा बड़ा ले कर