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धौद्धवर्म
हैं। सुतरां पवित्र धर्मगृहमात्र ही चैत्य हैं; किन्तु चीनदेशके परिव्राजक जिस समय भारतवर्ष आये
चैत्य होनेसे ही वह कोई घर या मन्दिर नहीं होगा। थे, उस सप्रय देश के नाना स्थानोंमें स्तूप और चैत्य
ऐसे पवित्र मन्दिरोंके मध्य बिहार और स्तूप ही थे। अव उनमेंसे बहुतोंका अस्तित्व भी नहीं है ; किंतु
प्रधान है। मठ अथवा जीवित बुद्धोंके वासस्थान या . कहीं कहीं भग्नावशेष नजर आता है।
मूर्तिसमन्वित मन्दिरको साधारणतः विहार कह सकते यूएनचुअङ्ग जब तीर्थ पर्यटनमें भारतवर्ष पधारे, उस
हैं। नेपालमें चैत्य और विहारका पार्थक्य है उसमें समय उन्होंने बहुत-से बिहार और सङ्काराम भग्नावस्था-
कुछ विशेषता नहीं देखी जाती। इनमेंसे जहां आदि- में देखे थे जो उनके लिखे विवरणसे ही मालूम होता है।
बुद्ध या ध्यानीबुद्धको मूर्ति है, वह चैत्य और जहां : किन्तु इसके दो शताब्दी पहलेके विवरणसे जान पड़ता
शाक्यदेव अन्यान्य सात मानुषी बुद्ध अथवा साधुओंकी है, कि वे सब अभग्नावस्थामें ही थे। पेशावरका
मूर्ति है, वह बिहार कहलाता है। नेपाली चैत्यका सुवृहन् स्तूप ४०० हाथसे भी अधिक ऊंचा था। यूएन-
विस्तृत विवरण पढ़नेसे मालूम होता है, कि चैत्य स्तूप- चुअङ्गने जिस समय इसे देखा था, उसके पहले भी यह
के सिवा और कुछ भी नहीं है। स्तूपका पालिनाम तोन वार अग्निदाहसे नष्ट हो गया था। यह स्तूप महा-
थुप है। बहुतेरे स्तूपका अर्थ धातुगर्भ या गर्भ राज कनिष्कके समयका बना हुआ था। जान पड़ता
लगाते हैं। यथार्थमें स्तूपके एक अंशको गर्भ है, कि मानिकियालका स्तूप भी उसी समय बना था।
कहते हैं अर्थात् जहां पवित्रस्मृति संरक्षित होती है वही प्रवाद है, कि पुष्कलावतीमें दो स्तुप अशोकके समयमें
गर्भ है। प्रसिद्ध व्यक्तियों को समाधिके ऊपर स्मृति-: निर्मित हुए थे। ब्रह्मा और इन्द्र देवताने बहुमूल्य प्रस्तर-
संरक्षणके लिए स्तूप बनाया जाता था, ऐसा बहुतोंका से विनिर्मित दो स्तूप संस्थापित किये थे, ऐसा जो
कहना है तथा यह सम्भवपर भी मालम होता है। प्रवाद है, उसमें कदापि ऐतिहासिकगण विश्वास नहीं
स्तूपको भित्ति चौकोन और गोलाकार दोनों हो हो सकती, करेंगे । उपयुक्त स्तूपसमूहका भग्नावशेष यूएनचुअङ्गने
है। इसके ऊपर एक गुम्बज और गुम्बजके ऊपर देखा था।
विपरीतभावमें संस्थापित एक पोरामिड या चूड़ा भी अशोकावदानमें लिखा है, कि सम्राट अशोकने भारत-
बनो होती थी। पोरामिड एक क्षु द 'गल' द्वारा संलग्न वर्ष में कुल ८४००० धर्मराजिका या स्तूप और विहार
रहता था। सबसे ऊपर एक या दो छत्र और छत्रके बनवाये। बुद्धदेवके निर्वाणप्राप्तिके बाद जो आठ स्तूप
ऊपर पताका तथा पुष्पमाला इत्यादि परिशोभित निर्मित हुए, उनमेंसे सातका द्वार अशोक द्वारा
होती थी।
उद्घाटन हुआ है। सिर्फ रामग्राम स्तूपका द्वार वे नहीं
कालिके गुहामन्दिर में जो स्तूप देखा जाता है, वह खोल सके थे।
उपयुक्त प्रकारसे बना है। इसके ऊपर अब भी काष्ठ वाराणसीके निकट सारनाथका विहार और स्मृति-
निर्मित छत्रका चित्र देखा जाता है।
प्रासाद ७वीं शताब्दीमें भी अविकृत अवस्थामें था ;
सिंहल और नेपालके प्राचीन चैत्योंका आकार ऐसा किन्तु अभी वह भग्नावशेषमें परिणत हुआ है। यहांका
ही है। सिहलमें किसी किसी स्तूपके ऊपर खर्वाकृति एक मन्दिर अब जैनों के अधिकारमें है।
गुम्बज देखने में आता है, किन्तु साधारण आकृति जल- केवल साधु और धार्मिकोंके स्मरणके लिए स्तूप
घुद द-सी है और उसके ऊपर यथाक्रम तीन छत्र संस्था- नहीं बनाये जाते थे; मथुरामें सारिपुत्र, मौद्गल्यायन
पित हैं।
और आनन्दके उद्देश्यसे ऐसे स्तूप उत्सर्ग किये गए थे।
छत्रको संख्या अथवा पोरामिडके विभिन्न स्तर अभिधर्म. विनय और सूत्रप्रन्थके उद्देश्यसे भी स्तूप बन-
ब्रह्माण्डके विभागनिर्देशक हैं। उत्तर और दक्षिण ।
प्रदेशोय बौद्धगण बहुत-से स्तपोंके मध्य मेरुपर्वतकी
वानेका विवरण मिला है।
प्रतिकृति देखते हैं।
कपिलवस्तुमे भीबहुत-से स्मृतिपरिचायक स्तूप और
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५५०
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