पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वाधम सम्मिलन नहीं था। इस सिम्मलनमें केवल विभज्यवादी विभज्यवाद 'थेरवाद' (स्थविरवाद) और आचार्यवाद श्रमण इकट्ठे हुए थे। महासङ्गीतिके बाद यह सम्मिलन तथा इससे निकली हुई शाखासे बिलकुल विभिन्न है। हुआ था, पर महासनिकोंने इसमें योगदान नहीं किया। कालकासे मूल स्थविरवादसे दो शाखाए निकलीं, 'गहो- कहते हैं, सम्राट अशोकके अभिषेकके अठारह दिन बाद शासक' और 'वजिपुत्तक' ( वृजिपुत्रक) । यह शेष- इस सङ्गीतिका अधिवेशन हुआ। इस सभाके विवरण- शाखा फिर चार भागोंमें बंटो हैं, यथा धर्मोत्सरिक, वर्षर्क सम्बन्धमें भी अनेक प्रकारकी कल्पित गल्प और भद्रयानिक, पणणगरिक और सम्मितीय । महीशासककी उपकथा वर्णित है। दो शाखा थी, यथा - सर्वास्तिवादी और धर्मगुप्तिक । वैशाली-समें उपस्थित बौद्ध-स्थविरोंको मालूम था, अन्यान्य छोटो छोटी शाखाप्रशाखाका उल्लेख करना "१०८ वर्ष के बाद एक बौद्ध श्रमणका आविर्भाव होगा। निष्प्रयोजन है। वे ब्रह्मलोकसे अवतोण हो कर ब्राह्मणवंशमें जन्मग्रहण ___ बौद्धग्रन्थादिमें जो सब प्रमाण मिलते हैं, उनमें विभज्य- करेंगे। इनका नाम 'तिसस मोग्गलिपुत्त, (तिष्य मौद्गली- वादको ही एकमात्र सत्यधर्म अथवा अन्यान्य सम्प्र- पुत्र ) होगा। ये 'सिगगव' और 'चन्दवजि' नामक दो : दायसे सर्वश्रेष्ठ समझनेका कोई प्रकृष्ट कारण नहीं भिक्ष से दीक्षालाभ और तीर्थिक नीतिका विनाश कर मिलता। यह ले कर अवश्य उस समय नाना प्रकार- सत्यधर्म संस्थापन करेंगे। धार्मिक अशोक नृपति का वादानुबाद चलता था और इसीलिए विभज्य: जिस समय पाटलिपुत्र में राज्य करेंगे, उसी समय ये : वादियोंने अपना प्राधान्य स्थापित करने के लिए तीन उपाय अवतीर्ण होंगे।" ठीक कर रखे थे, ( १ ) उनके धर्मग्रन्थसमूह मागधी- द्वितीय सङ्गीतिके सात सौ स्थविरको निर्वाण- भाषामें लिखा है। (२) तिस्स मोगगलिपुत्तका ब्रह्म- प्राप्तिके बाद तिष्यका जन्म हुआ। ये पहले ब्राह्मण्यधर्म लोकमें जन्म और वहांसे अवतरणका प्रवाद तथा भविष्य- और विज्ञानमें शिक्षित हुए और अन्तमें इन्होंने सिगगवसे द्वाणी। (३) उनका धर्मग्रन्थ 'परिवार' पार्सलपुत्रकी दीक्षा ली। सङ्गीतिमें पुनरावृत्त हुआ था, ऐसी घोषणा। बुद्धदेवकी निर्वाणप्राप्तिके २३६ वर्ण वाद् ( ईस्वी सन् सभी विषयोंकी आलोचना करनेसे ऐसी धारणा होता ३०७के पहले · अशोकाराम विहारमें साठ हजार भिक्षु . जारम: है, कि पाटलिपुत्रको सङ्गीति सम्प्रदायविशेषका सम्मिलन रहते थे। ये विभिन्न सम्प्रदायके होने पर भी सभी थी। महासङ्गिको ने इसमें योगदान नहीं दिया था। काषाय वस्त्र पहनते थे। इन्होंने वुद्धप्रचारित नीतिकी उस समय स्थविरवादी सभी एकमत थे या उनमें छोटे बड़ी हो दुर्गति की थी। उसी समय मोगलपुत्तने एक . सम्प्रदाय थे, यह प्रमाण करना असम्भव है। सिंहलके सङ्गीति बैठाई जिसमें एक महन्त भिक्षु आये थे। दुनोति विभज्यवादी बौद्धगण सङ्गीतिके विवरणको अन्य प्रकारसे और अपधर्मका विनाश कर इन्होंने सत्यधर्मका पुनरुद्धार . ' रञ्जित कर जनसाधारणकी अश्रद्धा हटाने अथवा और अभिधर्मको धर्मनीतिका प्रचार किया । कहते हैं, : । सङ्गीतिकी बातमें मनुष्य विश्वास न करें. इसलिए कि इन्हीं मोगगलिपुत्तसे महेन्द्रने पञ्च निकाय, अभिधर्मः उत्तरदेशीय बौद्धगण उसकी चेष्टामें लगे थे । यही कारण का सप्तग्रन्थ तथा सम्पूर्ण विनयपिटक पढ़ा और है, कि परवत्ती बौद्धग्रन्थमें तिस्स मोगगलिपुत्तका नाम सिंहलमें धर्मप्रचार कर प्रसिद्धि लाभ की थी। अकसर देखा जाता है। __अन्य एक विवरणसे जाना जाता है, कि एक हजार । जो कुछ हो, पाटलिपुत्रके बौद्धसङ्घमें सम्राट नहीं, वरन् ६० हजार भिक्षु इस सङ्गीतिमें उपस्थित अशोक सद्धर्मानुवत्ती किये गये थे इसमें सन्देह नहीं। इस सङ्गोतिका प्रधान उद्देश्य है, महाविहारके इस सङ्गीतिके बाद जो बुद्धभाषित शास्त्रसमूह लिपिवद्ध विभज्यवादियोंके मतको प्रकृत बौद्धधर्म कह कर प्रचार और भारतके नाना स्थानोंमें प्रचारित होनेको व्यवस्था करनो भऔर इसकी प्रधानता संस्थापित करना। हुई, जयपुरके अन्तर्गत भावरा नामक स्थानसे आवि-