पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५६

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फतेपुर चौरासी-फतपुर सिकरी करमत् अलीका बनाया हुआ इमामबाड़ा ही यहांका प्रधान तथा आगराको नहर इस विभागमें बहती है जिससे गृह है। सम्राट अकबर शाहके समयकी बनी हुई एक यहांके कृषकोंकी खेतीबारोमें बहुत सुविधा है। फसल मसजिद् आज मी विद्यमान है। उसके अधिकारीके भी अच्छी लगती है। मथुरा, आगरा आदि नगरों में जाने निकट अकबरप्रदत्त सनद देखने में आती है। अलावा, आनेके लिये लम्बी चौड़ी सड़क चलो गई हैं। इसके यहां और भी कितने देवमन्दिर हैं। यहां सर २ उक्त जिलेका प्रधान नगर। यहां अक्षा० २७५ कारी अदालत, अस्पताल और एक स्कूल हैं। उ० और देशा०७७४० पू० आगरा शहरसे २३ मील ४ मध्यप्रदेशके होसेङ्गाबाद जिलान्तर्गत एक ग्राम । अवस्थित है। जनसंख्या सात हजारसे ऊपर है। यह अक्षा० २५ ३८ उ० और देशा० ७८३४ पू०के मध्य भारत इतिहास प्रसिद्ध सिकरोयुद्ध इस स्थानके पास ही अवस्थित है। मण्डलाके राजवशके बाद यहां गोंड़ हुआ था । पानीपत-युद्धके बाद जब बावरने दिल्लीमें राजगण अर्द्ध स्वाधीन भावमें राज्य करते आ रहे हैं। राज्यकी प्रतिष्ठा की, तव राणा संग्रामकी आँखे खुली। १८५८ ई०में तांतियातोपी इसी स्थान हो कर सतपुरा उनका ख्याल था, कि बाबर अपने पूर्वपुरुषोंकी तरह दिल्ली पहाड़ पर भागे थे। लटकर स्वदेश जायंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। वे रणजयके बाद ५ मध्यप्रदेशके दमोह जिलान्तगत एक गण्डग्राम ।। दिल्लीमें चिरस्थायी बन्दोवस्त द्वारा मुगलराज्यकी जड़ ६ गजपूतानेके जयपुर राज्यके अन्तर्गत शेखावटी मजबूत करनेकी कोशिश करने लगे। अब हिन्दू राजत्व जिलेका प्रधान नगर। यह अक्षा० २८ उ० और देशा० को पुनः प्रतिष्ठा करनेकी राणाकी जो इच्छा थी, उस ७४.५८ पू० जयपुर शहरसे १५ मील उत्तर पश्चिममें पर पानी फेर गया। तो भी रोणा जरा भी विचलित अवस्थित है। जनसंख्या लगभग १६३६३ है। यहां न हुए। वे वीर पुरुप थे, अपने वाहुबलसे उन्होंने मुगलों- १४ स्कूल और १ माकघर है। को भारतसे मार भगानेका संकल्प किया। इस उद्देश्यसे फतेपुर चौरासी १अयोध्याके उनाव जिलेका एक परगना। उन्होंने कुछ राजपूतों और पठान-राजकी सहायतासे यह फारशके दक्षिण गङ्गाके किनारे अवस्थित है। यहां बावरके विरुद्ध युद्ध घोषणा कर दो। १५२७ ई०में पहले ठठेरा नामक आदिमजातिका वास था । प्रायः फतेपुर मिकरीमें दोनों पक्षमें घोर युद्ध हुआ। इस तीन मौ वर्ष हुग, जानवार नामक राजपूत जातिने उन्हें युद्ध में राजपूत और पठान-सेना मुगलोंके हाथसे भगा कर अपना वास स्थापन कर लिया है। अच्छी तरह परास्त हुई और उत्तर भारतमें बाबरके १८५७ ईके गदर में यहांके अन्तिम सरदार विद्रोही मुगल साम्राज्यकी भित्ति दृढ़रूपसे प्रतिष्ठित हुई। इसी दलमें मिल गये थे। फतेगढ़से पलातक अंगरेजोंको समय हिन्दुराजाकी भाग्यलक्ष्मी सदाके लिये बिदा हो गई । पकड़कर उन्होंने कानपुरमें नाना साहबके निकट भेज सम्राट बाबरके प्रपौत्र अकबरने १५७० ई०में मुगल- दिया। उनावके युद्ध में वे मारे गये। अंगरेज सर- दरवारको स्थापनाके अभिप्रायसे उक्त प्रसिद्ध स्थानके कारने उनके एक लड़कोंको फांसी दी थी। पास हो इस नगरको बसाया। उनके तथा उनके पुत्र २ उक्त जिलेका एक प्रधान नगर। यह सफीपुरसे, जहांगीरके समय यह स्थान अनेक सुरम्य अट्टालिकाओंसे ३ कोम पश्चिममें अवस्थित है। यह स्थान क्रमानु- सुशोभित था। परन्तु ५० वर्ष यहां रहने के बाद मुगल- सार उठेरा, सैयद और जानवारोंके अधिकारमें रहा। राजगण दिल्लीको चले गये। आज भी प्राचीरपरिवेष्टित सिपाहीयुद्धके बाद यह नगर बृटिश-शासनमें मिला पांच मोल तक उस प्राचीन नगरका ध्वंसावशेष दूष्टि- लिया गया। प्रतिवर्षके दशहरा उत्सवमें यहां एक मेला गोचर होता है। यहां सबसे बड़ा मुसलमान-मन्दिरका लगता है। 'बुलन्द दरवाजा' नामक द्वारपथ देखने योग्य है। उस फतेपुर सिकरो -युक्तप्रदेशके आगरा जिलेका एक विभाग। मन्दिरमें फकीरोंके रहने के लिये बहुतसे घर बने हैं। भूपरिमाण २७२ वर्गमील है। उत्तङ्गन और खारी नदी यहां मुसलमान-साधु शेख सलीम चिस्तीकी कब्र