पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पौवनम पध्यामी: विरत्न या बुद्ध धर्म और सङ्घमूत्ति तथा : अप्रजा अन्यजा लोकाः शैवापि बौद्धसेवकाः। वैस्य पार्शमें हारीतोकी मूर्ति विद्यमान है। हारीत्यामपि यक्षिण्यां सदा मुदा प्रपूजितम् ॥" इसाई ग्राममें भी ऐसा छोटा चैत्य देखने में आता (७म अ०) बह चैत्य अभी 'चन्द्रसेना' नामसे स्थानीय हिन्दुओं इससे यह स्थिर होता है, कि जहां चैत्य हैं वहीं निकट परिचित है। ऐसे चैत्यको हम लोग वृहत् त्रिरत्न और ध्यानीबुद्धशोभित आदर्श चैत्य है, तथा वैत्यका आदर्श मानते हैं। उसीके समीप हारीतके अधिष्ठानकी सम्भावना है। बड़- नेपालके प्रत्येक छोटे बड़े आदर्श-चैत्यके चारों ओर साई प्रामके एक स्थानमें उक्त तीन मूर्तिसे क्या यह स्पष्ट मा कुखुङ्गोमें अक्षोभ्य, रत्नसम्भव अमिताभ, अमोधसिद्धि जान नहीं पड़ता, कि एक समय वहां एक वृहत् चैत्य बार 'ध्यानी' बुद्ध नजर आते हैं। था ? यहांके अधिवामियोंका कहना है, कि बड़साई इसाईग्रामके उक्त आदर्शचैत्यके चारों ओर वैसी प्रामके पाव वत्ती बोधिपुष्करणोके समीप पूर्वोक्त तीन हीबार मूर्ति हैं। उनका अक्षोभ्यादि चार ध्यानी बुद्धके मूर्ति विद्यमान थीं। थोड़े दिन हुए; कि वहांसे ला कर पैसा रूप नहीं होने पर भी उक्त चार बुद्धके वाहन तथा वे सब मूत्तियां प्राममें रखी गई हैं। बोधि पुष्करणोके इन चार पुन बोधिसत्त्वको मूर्ति हैं, जैसे -अक्षोभ्यकी चारों ओर अभी विस्तीर्ण कृषिक्षेत्र है । एक समय आमद उनका वाहन हस्तो और उसके ऊपर दण्डायमान इसके निकट ही जो बौद्धचैत्य था और उसीसे इसका मसवाणि बोधिसत्व, रत्नसम्भवकी जगह उनका बाहन नाम ऐसा पड़ा है, उसमें सन्देह नहीं। उस प्राचान सभा और उसके ऊपर रसपाणिवोधिसत्त्व-दण्डायमान ! बौद्धचैत्यका अभी काई चिह्न नहीं मिलता। लगभग सी प्रकार अमिताभकी जगह उनका वाहन मयूरपक्षी एक सौ वर्ष पहले जा सामान्य स्मृतिपरिचायक चिहन र नसके ऊपर पनपाणिबोधिसत्व तथा अमोघसिद्ध-: था, कृषकोंक हलचालनसे वह भी स्थानान्तरित हो गया की जगह उनका बाहन गरुड़ और उसके ऊपर विश्वपाणि- : है---सिर्फ बीच बोनमे बड़े बड़े कटे हुए पत्थर झोण की मूति हैं। ऊो मध्य भागमें बैरोचनकी जगह एक स्मृतिका परिचय देते है। | हरिपुरसे ३ कोसको दूरी पर उक्त बाधिपुष्करणो है और उक्त चैत्यपाश्वमें निरत्नको दूसरा चतुर्भुजा धर्म इसीके पास्थि बड़साई ग्राम सिवा हरिपुरक निकट- पूर्ति विराजमान है । नेपालके बहुतसे चैत्यों में ऐसी : वत्ती और किसी जगह ऐसा बोद्धचैत्यनिदर्शन नहीं वीधर्ममूर्ति देखी जाती है । मिलता है। इसी लिए बडसाईकं निकटस्थ बुद्धगुप्त- बड़साई प्राममें उक्त चतुभुजा धर्ममूर्तिकी मूर्ति वर्णित हरिभाचैत्यका अवस्थान स्वीकार किया जाता प्रधान है। पहले ही लिखा जा चुका है, कि नेपालके है। तथागतनाथने यहां बहुतसं गुह यशास्त्र तथा धम- बौद्धरीत्य या मन्दिरपा में शीतला या हारीती- पण्डितकी जीवनी सुना था। यथार्थम इसी बडसाई की देखी जातो है । नेपालीबौद्धोंके वृहत् स्वयम्भू- ! ग्रामसे प्रच्छन्न बौद्धमतसमर्थक सिद्धान्तउडम्बर, पुराणमें भी इसी प्रकार वर्णित हुआ है:- अनाकारसंहिता, अमरपटल प्रभृति अपूर्व प्रथ "तसच हारीतीं देवीं पञ्चपुत्रशतैर्वृताम् । आविष्कृत हुए हैं। मालूम नहीं, कि इस मञ्चलमें श्रीस्वयम्भूपश्चिमान दक्षिणास्यं संस्थापितम्। विशेष अनुसंधान करनेसे वैसी कितनो ही चोजें मिल थेच या वा मनुष्याच पञ्चोपचारकैरपि । . सकती है। धर्म पूजाप्रवर्तक रमाईपण्डितके भूम्य मयधारादिभिः पूज्यैः मांस वलिभिर्मीनकैः ॥ । पुराणका और यहांके सिद्धांत उदुम्बरका मूलसून या मेह यः पेयैः खानैः पानः भक्तपिण्डाभ्यां पूजितम् । लक्षा एक है यह पहिले ही लिखा जा चुका है। तस्याः पुययप्रसादाच्च न जातु ईत्युपद्रवान् ॥ बड़माईके उक्त धर्म, चैत्य और हरोतीपूजामें आज भी Oldfields Nepal. p. 21.1. ब्राह्मणको अधिकार नहीं है अति निम्नश्रेणीकी देहरी- Vol. xv. 142