पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५७३

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बोदधर्म ५६७ जातिच्युत होते हैं। आश्चर्यका विषय है, कि ये किसी । बहुतेरे बाथुरीजातिको हीन अनार्यजातिमें गिनती दूसरी जातिको छनेमें घृणा बोध करते हैं। ये धर्मराज, करते हैं। सिद्धान्त-उड म्बरमें लिखा है, कि "बावरी जगनाथ और किञ्चकेश्वरी या छोटो खिचिश्वरीको दिई अनपिण्ड” अर्थात् ब्राह्मणकी तरह बावरी भी पूजते हैं। इनका कहना है, कि निरञ्जनको वाटुसे हो अन्नपिण्ड देते हैं वर्तमान बाधुरीजातिमें भी महापान इनके वीजपुरुषकी उत्पत्ति हुई है, इसीलिए इनका प्रभृति प्रधानों के श्राद्ध में अन्नपिएड देनेको व्यवस्था है। वाहुरो या वाथरो नाम पड़ा है। इससे भी यह जाति जो एक समय बौद्धप्रभावकालमें बाहुरी शब्दसे जो 'बावरी' या 'बाथुरी हुआ है, उस. ब्राह्मणों के ऊपर प्रभुत्व जमानेको अग्रसर हुई थो, उसका में सन्देह करनेका कोई भी कारण नहीं । वर्तमान बाधुरी कुछ आभास झलकता है । जो कुछ हो, महाराज प्रताप- जातिका यज्ञसूत्र, अशौच, श्राद्ध, आभिजात्यमर्यादा तथा रुद्रके समयसे राजनिग्रहसे यह जाति जो पार्वत्य-प्रदेश में आचार व्यवहार देख कर यही सिद्धान्त-उडम्बर वर्णित आश्रय लेनेको वाध्य हुई थी और बौद्धप्रभावके विलोप- महायान बौद्धसम्प्रदाय भुक्त बावरी जाति-सी प्रतीत के साथ साथ वङ्गप्रदेशमे डोमपण्डितको तरह अति होन होती है। तथा अस्पृश्य हो गई है, इसमें सन्द ह नहीं। मयूरभज ___ यथार्थमें यह जाति अत्यन्त छिपे रूपसे बनमें रहती और निकटवत्ती पार्वत्य गहनकाननवासी अपरिचित है। पहले ही कहा गया है, कि बाथुरीगण दूसरी जाति-- जातिका हो प्रच्छन्न बौद्ध कहते हैं। इस जातिके दो को छूनेमें घृणा करते हैं । ब्राह्मणप्रभावान्वित हिन्दुराजाके एकके मुखसे गारखनाथ, मणिकानाथ और मार्कण्ड यका अधिकारमें वास और अवस्था-वैगुण्पके कारण बहुतोंके नाम सुना जाता है। बड़साईग्रामसे आविष्कृत अमर- पूर्वाधारका परित्याग करने पर भी ये लोग अब भी पूर्व पुटलमे मीननाथका हो नाम मणिकानाथ है। शून्य- धर्ममत तथा विश्वास एकवारगी छोड़ नहीं सके हैं। पुराण तथा नाना धममङ्गलमे दूसरे किसी ऋषिका विशेष और धर्मराज जगन्नाथको महायान बौद्धभावमें पजते परिचय नहीं रहने पर भी माकण्ड य, गोरक्ष, मीननाथ हैं। खिचिङ्गमें जो प्रकाण्ड बुद्धमूत्ति निकली है छोटी आदिका नाम मिलता है। यहांकी अनाकार-संहितामें विचिङ्गश्वरोको मूर्ति बौद्ध तान्त्रिक समाजमें सिता मार्कण्डेयको तपस्या और अमरपटलमें मीनगोरक्ष संवाद राची नामक शक्तिमूर्ति कहलातो थो। इस मूर्तिके । वर्णित है। बौद्धसमाजमें गोरक्षनाथ एक प्रधान बौद्धा- गालमें अभी भी "ये धर्म हेतु प्रभया" इत्यादि बौद्धसूत्र चायके जैसे सम्मानित थे *। मीननाथका तो बड़ा हो उत्कीर्ण हैं। बाथुरीगण "धर्म मा” नामक और एक सम्मान होता था। वे अब भी नेपालके अधिष्ठातृदेवता देवीकी पूजा करते हैं। यः द्विभुज रमणीमूर्ति खिचिङ्ग मच्छेन्द्रनाथ नामसे बौद्धसमाजमें विशेष पूजित हैं तथा में अधिष्ठित है, अवस्थानुसार बाथुरीमहिलाए होनश्रेणी- नेपालो-बौद्धगण इस मच्छेन्द्रनाथको ही 'पद्मपाणि' बोधि को रमणियोंकी तरह समूचे हाथमें कांसे या पीतलका सस्वका अवतार मानते हैं।। अलङ्कार पहनती हैं। उक्त देवो भी उसी तरह हीनजति जो कुछ हो, उक्त प्रमाण और अनेक कारणोंसे वेशभूषाम् भूषित होने पर भी त्रिरत्न अन्यतम धम- •It is stated in Pagasni Jon-zan (by Sumpu मूत्तिसी प्रतीत होती है। कहीं कहीं पर बाथुरीगण "शून्य khaupo, a renowned Buddhist Teacher of Teb- ग्राम'को भी पूजा करते हैं। सिद्धांत-उडम्बरसे 'ओं शून्य- bet) ' About (13th Century AD.) this time ब्रह्मये नमः' ऐसा बीज मन्त्र पहले ही उद्धृत किया गया | foolish yogis, who were tollowers of Biddhist है। अशिक्षित हीनावस्थापन कोई कोई बाथुरी इस ब्रह्म- Yori Goraksha became Civaite Samnyasis " को 'बड़म्' या 'वरम्' बतलाते हैं। कोल सन्थालोंके मध्य (Journal of the Asiatic society of Bengal, 1898- एक बड़ामकी उपासना प्रचलित है। क्या ही आश्चर्यकी Pt. 1. P, 25 ) बात है, कि बड़म और बड़ामका नामसादृश्य देख कर + Dr. Oldficld's Nepal, vol. II, P, 264.