व्यसन-बध्न
२ लेन देन करनेवाला।' ३ जिसके साथ लेन देन हो। व्योतना (हिं० कि०) १ मारना, काटना । २ कोई पहनावा-
४ जिसके साथ प्रेमका व्यवहार हो।
बनानेके लिये कपड़े को माप कर काटना छांटना, नापसे
व्यसन (सं० पु०) व्यसन देखो।
करना।
व्यसनी (सं० वि०) व्यसनी देखो।
व्योताना ( हिं० क्रि० ) दरजोसे नापके अनुसार कपड़ा
म्याज (हि. पु०) १ वृद्धि, सूद । २ व्याज देग्यो । कटाना।
व्याध (हिं० पु० ) व्याध देखो।
ध्योपार ( हिं० पु० ) व्यापार देखा।
न्याधा (सं० स्त्री०) व्याधि देखा ।
ध्योपारी ( हिं० पु० ) व्यापारी देग्यो ।
व्याधि (सं० स्त्री० ) व्याधि देखो ।
ज्योरना ( हिं० क्रि० ) १ सूत या तागेके रूपकी उलझी
व्याना (हिं० कि०) उत्पन्न करना, पैदा करना।
हुई वस्तुओंके तार तार अलग करना । २ गुथे या उलझे
व्यापार (सं० पु०) व्यापार देग्यो ।
हुए बालोंको अलग अलग करना।
प्यारी (हिं० स्त्री०) १ रातका भोजन, व्यालू । २ वह भोजन
जो रातके लिये हो।
घ्योरा ( हिं• पु०) १ विवरण, तफसील । २ किमी विषय-
म्याल (सं० पु०) माल देखो।
का अंग प्रत्यंग, किसी एक विषयके भीतरकी सारी
ब्याली (हिं॰ स्त्री० ) १ मर्पिणी, नागिन ।२ मर्पोको
बात। ३ वृत्तान्त, समाचार ।
धारण करने वाला।
योमाय ! हिं० पु० ) व्यवसाय देखो ।
ज्यालू ( हिं० पु. ) व्यारी, रातका भोजन।
प्योहर ( हिं० पु०) रुपया ऋण देना, लेन देनका व्यापार ।
ब्याह (हिं. पु०) विवाह । विवाह देखो ।
घ्योहरा ( हिं० पु० ) सूद पर रुपया देनेवाला, हुडी
ध्याहता ( हिं० वि० ) १ जिसके साथ विवाह हुआ हो । : चलानेवाला।
(पु.) २ पति।
घ्योहरिया ( हिं० पु० ) महाजनी करनेवाला ।
व्याहना ( हि० क्रि० ) किसीका किसीके साथ विवाह-
घ्योहार (हिं० पु० ) व्यवहार देखो।
संबंध कर देना।
ध्यौहर (हिं० पु० । ब्योहर देखो।
ब्यूँगा (हिं० पु०) चमारका एक यन्त्र जो लकड़ीका ..
घ्यौहरिया (हिं० पु. ) व्योरिया देग्यो ।
बना होता है। इससे वे चमड़े को रगड़ा दे कर सुलझाते ,
त ध्यौहार (हिं० पु. , ब्याहार देखा
हैं। इसका आकार स्पीके आकार मा होता है, पर
। व्रज (सं० पु० ) अज देग्यो।
अगला भाग अधिक चौड़ा होता है।
म्योंचना ( हिं० कि० ) १ किसी अंगका एकबरागी इधर
व्रजवादनी ( हिं० पु० ) एक प्रकारका आम । इसका पेड़
उधर मुड़ जाना जिससे पीड़ा हो। र हाथ, पैर उगलो .
- लताके रूपका होता है। इसका दूसरा नाम राजवल्ली
गरदन आदि धड़से अतिरिक्त किसी अंगके एकबारगी ..
भी है।
झोंकेके साथ मुड जानेसे नसोंका स्थानसे हट जाना। अध्न ( से० पु०) बन्ध-बन्धने ( बन्धं अधिबुधीच उण् ।
म्योंत ( हिं० पु०) १ विवरण, माजरा । २ युक्ति, उपाय।: ३१५) इति न क बधादेशश्च । १ सूर्य। २ वृक्षमूल ।
३ उपक्रम, आयोजन। ४ साधारण-प्रणाली, तरीका। ३ अर्क, आकका पौधा। ४ शिव । ५ दिन। ६ अश्व,
५ प्रबंध, इंतजाम। ६ संयोग, अवसर। ७ पहनावा घोड़ा। ७ चौदहवें मनु चैत्यके पुत्रका नाम । ८ रोग
बनानेके लिये कपड़े की काट छांट, तराश । ८ प्राप्त विशेष । इसका लक्षण ----
सामग्रीसे कार्यके साधनको व्यवस्था, काम पूरा उतारने "यस्य वायुः प्रकुपितः शोकशूलकरश्चरम् ।,
का हिसाब किताब । ६ साधन या सामग्री भादिकी वड्यात् वृषणौ याति व्रध्नस्तयोपजायते ॥"
सीमा।
(चरक १८ अ०)
Vat. xv. 149
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५७५
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