पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६०८

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६०२ ब्रह्मदेश ११ वीसे १३वीं शताब्दी तक ब्रह्मसाम्राज्य उन्नति-! वाध्य हुए। उस समय सम्राट अलौङ्गपया श्यामवासी. की चरम सीमा पर पहुंच गया था। उस समय पगान- के आक्रमण और प्रजाविद्रोहसे अपने देशकी रक्षा नगरको वर्तमान ध्वंसावशिष्ट कीर्तियां शोभायमान करनेमें लगे थे ; अतः वे पेगुवासियोंका पीछा न कर थों। कुवलय खाँके राजत्वकालमें चीन ( मङ्गोलिया ) सके। कुछ दिन तक सुस्थिर चित्तसे उक्त दुर्गमें वास मैन्यके आक्रमणमे उक्त नगर तथा वहांके राजवंश काल करने पर भी, उनको सुखनिद्रा बहुत जल्द टूट गई । मुख में पतित हुए। इसके बाद वह मसाम्राज्यका ह्रास सम्राट अलौङ्गपयाने श्यामयुद्धमे विजय प्राप्त कर लौटने- होने लगा और शानवंशने मध्यब्रह्ममें अधिकार जमाया। के समय सिरियम दुर्ग घेर लिया ; अपनी रक्षाका कोई १.५वीं शताब्दीके प्रारम्भमें तौङ्ग-गु ( पेगुसे उत्तरपूर्व उपाय न देख पेगुवासियोंने डरके मारे शत्रु को दुर्ग छोड़ अवस्थित ) प्रदेशके राजाने अपने बाहुबलसे पेगु, आवा दिया। इस युद्धमें फरासीने पेगुको और अंगरेज- और आराकान राज्य जीत कर शासन फैलाया । नाविकोंने ब्रह्मको सहायता पहुंचाई थी। डूप्ले द्वारा भेजे १६वीं शताब्दीके भमणकारियोंसे उनका पूरा विवरण हुए फरासी जंगीजहाज नदीपथमें आने पर ब्रह्मराज- मिलता है। सैन्योंने उन्हें लूट लिया। उसी समय एक जहाज पेगुको राजशक्तिका ह्रास होने पर आवानगरमें नाविकके साथ नदीमें डूब गया था। नूतन गजवंशकी प्रतिष्ठा हुई। पेगुराज्य जीत कर दूसरेकी सहायतासे वञ्चित और नदीतीर- आवाराजवंशधरोंने १७वी और १८वो शताब्दीके वत्तौ स्थान ब्रह्मराजके अधिकृत होने पर पेगुवासियों मध्यकाल तक राज्यशासन किया । दाद तैलङ्गोंने ने सहज हीमें वश्यता स्वोकार की। १७५७ ई०में सम्राट विद्रोही हो कर आवापतिको कैद कर लिया। राज- अलौङ्गपयाने छलपूर्वक नगरद्वार खोलवाया और उसे धानी दखल करनेके बाद धीरे धीरे सारा ब्रह्मराज्य अपने अधिकारमें कर लिया। बाद उन्मत्त सेनादल अपने शासनाधीन कर लिये। मौत्शेवो (श्वेवो) प्रामके नगरमें लूटपाट मचाने लगे। अधिपति आलोम्पा । अलौङ्गपया )-ने तैलङ्गोंसे अपने दूसरे वष अधीनताकी येड़ीसे छुटकारा पाने के लिए राज्यका उद्धार करनेको इच्छासे दलबल इकट्ठा कर पेगुवासी ध्यर्थं चेष्टा करने लगे। टाभय विजय करने १७५३ ई में राजधानी जीत ली। १७५४ ईमें पेगु- पर उन्होंने श्यामराजके विरुद्ध युद्धयाना की और मागुई वासियोंने पुनः आवानगर पर चढ़ाई करनेके लिए जंगी तथा तेनासरिमको अपने अधिकारमें कर लिया । श्याम- जहाज ले कर राजधानोकी ओर चल दिये, किन्तु वे राजधानी पर चढ़ाई करनेके समय वे पीड़ित हो गए आलोम्प्राके युद्धमें पराजित, विध्वस्त तथा विताड़ित और उसी हालतमें स्वदेश लौटते समय रास्ते हीमें १७६० हुए। इधर उद्धत ब्रह्मवासियोंने प्रोम, दोनव्य, आदि ई०को ५० वर्षकी उम्रमें उन्होंने मानवलीला संवरण नगरसे तैलङ्गोको मार भगाया। उक्त वषमें ही पेगु. की। वे लगभग आठ वर्ष राज्य करके ही उतने बड़े राजने फिरसे प्रोम अवरोध किया , अलौङ्गपयाने दल- साम्राज्य स्थापनमें समर्थ हुए थे। मृत्युके एक वष बलके साथ वहां जा कर उनका सामना किया। इस पहले वे अंगरेजोंको पेगुके सहायक समझ कर उनके प्रकार बारम्बार बह्मवासियोंसे पराजित हो कर वे लोग विरुद्धाचारी बने थे। इस भित्तिशून्य भ्रममें पड़ कर उत्तरवा छोड़ दक्षिणकी ओर चले गए और समुद्रके उन्होंने नेग्रिसमन्दरके अंगरेजोंकी हत्या की थी। किनारे तथा नदीके मुहानेके पाश्ववत्तों वाणिज्यस्थान- उनको मृत्युके बाद उनके बड़े लड़के नौगदयौग्यि समूह पर अधिकार जमाया। राजा हुए। इनके छोटे भाई हसिन-फयू-इन कुछ सेनाके १७५५ ई०में पेगुराजके भाईने फिरसे ब्रह्मराजके साथ इनके राजत्वकालमें विद्रोही हो कर राज्यमें उत्पात विरुद्ध युद-यात्रा की। किन्तु घे शत्रुके हाथसे पराजित मचाने लगे। तीन वर्ष राज्य कर वे कराल कालके हो कर दलबल के साथ सिरियम दुर्गमें माश्रय लेनेको गालमें फंस गए। नाबालिग भतीजेको सिंहासन पर