पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६१०

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प्रादे छोड़ कर भाग चले, इस प्रकार जहां ही अङ्रेजी-सेना अन्तर्निहित क्रोधाग्नि न बुझा। फिर कई एक छोटे छोरे घुसती, वहीं जनशून्य तथा खाद्यादिविहीन स्थान उनके युद्ध के बाद १८२६ ई०की हवीं फरवरीको याम्दाबुकी हाथ लगते। जुलाईसे अगस्त तक कई एक छोटो छोटी सन्धि हुई। बाद दोनोंमें मेल हो गया। लड़ाइयां तो हुई, पर आवा और थराक्तीराज की सेना राजा फगि-दौ (नौङ्ग-दौगि) अगरेजोंके साथ भागने पर हो गई थी। उरके मारे छिटो हुई ब्रह्मसेनाः सन्धि कर ब्रह्मराज पर शासन करने लगे। कौनबौड़ा- के साथ किसी विशेष युद्धकी आशंका न देख कैम्पवेलने । मेन नामक उनके एक भाईने १८३७ ई०में बलपूर्वक सिंहा. बहमाधिकृत टाभय और मागुई प्रदेश तथा सारा तेना- सन पर अधिकार जमाया और अङ्ग्रेजोंका विश्वास सेरिम उपकूल पर दखल जमाया। उसी वर्ष के अक्टूबर : न कर वे ब्रह्मसैन्यकी सहायतासे उनके घोर विरोधी महीने में उन्होंने पेगुनदीके मुहाने पर स्थित पुर्तगोजोंका । हुए। उक्त वर्षके अङ्गरेज-प्रतिनिधि मेजर बानि (Ma. प्राचीन सिरियम दुर्ग तथा कोठी और मार्क्सवान प्रदेश. jor Burney ) और १८४० ई०में सेनापति मैकलिवड भधिकार कर यमराज्यमें अगरेज-प्रभाव विस्तार किया। आवानगरसे लौट आये। धीरे धीरे ब्रह्मराज्यमें अगरेजोंके सेनासमूहको ऐसी भीति और रणविमुखता देख प्रति अत्याचार होने लगा। अपने पोतनाश,, भाविकोंकी कर भावाराजने प्रसिद्ध बूढ़े सेनापति महाबन्दुलाको लांछना, सेनाविनाश और राजकर्मचारियों को अव- अधिनायक बनाया । बुन्दलाने दलबलके साथ आ. माननासे अङ्गरेज गवर्मेण्ट तंग तंग आ गई । १८४६ कर अगरेजसेनादलको तो घेर लिया था, पर इस वृद्धा- ई०में राजा पगानमेङ्ग पितृसिंहासन पर बैठे। घे ऊपर- वस्था में उनका भधारण करना वृथा हुआ । अङ्रेजी- सेतो मित्रका-सा भाव दिखाते, पर भीतरसे अगरेज सेमाके सामने ठहरने में असमर्थ जान कर ब्रह्मसेना तितर के घोर शत्र थे। पिताके किये अत्याचारका प्रतिकार बितर हो गई। बुन्दलाने विशेष रणनिपुणता के साथ करने में उनके अस्वीकार करने पर अगरेजोंने ब्रह्मपतिके अपनी सेना एकल करनेकी चेष्टा को, किंतु बन्दूकके भयसे विरुद्ध युद्ध घोषणा कर दी जिसमें पेगुप्रदेश उनके हाथ ब्राह्मगण रणस्थल में क्षण भर भी न ठहर सके । वे प्राण लगा। उसी वर्षकी २०वीं दिसम्बरको लार्ड डलहौसी ले कर भागे। यह घटना १५वी दिसम्बरको घटी थी। के अदेशानुसार यह भारतवर्ष में मिला लिया गया। ब्रह्मपराजयसे उत्साहित हो कर कैम्पवेल साहव इधर राजसरकारमें घोर विप्लव उपस्थित हुआ। प्रोमनगरकी ओर बढ़े। १८२५ ई०के फरवरी महीनेमें ब्रह्मराज पगानमेङ्ग अपने निष्ठुर अत्याचारके कारण उन्होंने सेनाको दलमें बांट कर स्थल और जलपथसे राज्यच्युत हुए और उनके भाई मेङ्गदूनराजने अपनी दोनष्यूमगर पर चढ़ाई कर दी। यहां उक्त बूढा ब्रह्मसेना- रक्षाके लिये उन्हें १८५३ ई में बन्दी कर सिंहासन पर पति बन्दुला अगरेजोंको गोलीके शिकार बने । अङ्गरेजोंने अधिकार जमाया। उक्त राजा मेङ्गदूनभेड़के अंगरेजोंके प्रोमनगर में वर्षाकाल बिताया। शरत्कालमें एक महीनेके प्रति दाम्भिकता दिखलाने पर भो भारत गवर्मेटके लिए युद्ध बन्द रहा। इधर भारत में रह कर अक्षरेजोंने साथ उनका कोई विलक्षण भाव नहीं देखा जाता। आसामसे ब्रह्मवासियोंको भगा दिया और आराकान १८५५ ईमें उन्होंने लार्ड डलहौसीसे मित्रता-भाव प्रदेश जीत कर सेनापति मोरीसन (General Aft.rricn)रखनेके लिये दूत भेजा ; तदनुसार भारतप्रतिनिधिने ने ब्रह्मराज्यमें अङ्गरेज प्रभाव फैलाया । भी पेगुके शासनकर्ता अर्थर फेरोको उनके निकट ____ अक्टूबर महीनेमें ब्रह्मसैन्यने पुनः युद्धको तैयारी भेजा। उनके साथ सेनापति यूल ( Colone II Yule) कर प्रोमनगरके अङ्करेजों पर तीन ओरसे चढ़ाई कर दो : ' और भूतत्त्वविद् बलहम भी गए थे। १८६२ ई०में बहम- किन्तु अङ्गारेज-सेनापतिने विशेष दक्षतासे उसे बचाया। राजने अंगरेजोंको वाणिज्य करनेका अधिकार दिया। अन्तमें ब्रह्मराज अङ्ग्रेजोंके साथ सन्धि करनेमें बाध्य ब्रह्मदेशको नदियों में वाणिज्यपोत चलानेके लिये १८६७ हुए। सन्धिपत्र पर दस्तखत करने पर भी ब्रह्मराजको ईमें उन्हें आदेशपत्र और भामो आदि प्रधान शहरों में