पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६१८

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६१२ ब्रह्मराज-ब्रह्मलोक का धन अपहरण करता है, वही ब्रह्मराक्षस होता है। है। दैवपरिमाण चार हजार वर्षका सत्ययुग होता है। रामायणमें लिखा है, कि ब्रह्मराक्षस यमके विघ्नोत्पादक इस युगके चार सौ वर्ष सन्ध्या और चार सौ वर्ष होते हैं। (रामा० ११११ अ०) सन्ध्यांश है। तीन हजार वर्णमें त्रेतायग कल्पित ___ २ महादेवका गणविशेष । पारिभाषिक प्रयोगमें मूख, ! हुआ है। उसकी संध्या और संध्यांशका परिमाणा स्त्रो, कच्छप, बाजी और बधिर इन पांचोंको ब्रह्मराक्षस | तीन सौ वर्ष है। द्वापर युग दो हजार वर्ष और कलियुग कहते हैं। हजार वर्ष इनकी संध्या है और सन्ध्यांश एक पक सौ "मूर्खः स्त्री कच्छप श्चैव बाजी बधिर एक्च । वर्षे कम है । मनुष्यों को जो चार युगोंकी संध्या निरूपित गृहीतार्थ न मुञ्चन्ति पञ्चैते ब्रह्मराक्षसाः ॥" हुई, उसके बारह हजार वर्णका देवताओंका एक युग होता (व्यवहारप्र०) है। इस प्रकार दैवपरिमाण सहस्रयुगका एक दिन और ब्रह्मराज (सं० पु०) १ राजपुत्रभेद । २ ब्रह्मदेशका अधिपति। उतने ही समयकी उनको एक रात होती है । (मनु १ भ०) ब्रह्मरात ( स० क्ली० ) ब्रह्म तज्ज्ञान रात यस्मै। ब्रह्मराशि ( स० पु० ) १ पवित्र ज्ञानराशि। २ पवित्र १ शुकदेव । २ याज्ञवल्क्य मुनि । इन्होंने जनकसे ब्रह्म ग्रन्थसमूह। ३ परशुरामका नामान्तर । ४ वृहस्पति विद्या सीखी थी। गृहदारण्य उपनिषदमें यह उपाख्यान | कत्तक आक्रान्त श्रवणा नक्षत्र। वणित है। ब्रह्मरीति ( स० स्त्री० ) ब्रह्मवर्णा रीतिः। १ पित्तलभेद, ब्रह्मरान ( स० पु० ) रावेरय रात्रः, ब्रिह्मणो रानः। ब्रह्म- एक प्रकारका पीतल । २ ब्रह्मा वा ब्राह्मणकी रीति । मुहूर्त, रात्रिका शेष चार दण्ड। इस समय सबोंको ब्रह्मरूपक ( स० पु०) एक प्रकारका छन्द । इसके प्रत्येक विछावन परसे उठना चाहिये। चरणमें गुरुलघुके क्रमसे १६ अक्षर होते हैं । इसे चञ्चला "ब्रह्मरात्र उपावृत्त (वासुदेवानु मोदिताः। और चित्र भी कहते हैं। अनिच्छत्यो ययुर्गोप्यः स्वगृहान् भगवत्प्रियाः ॥" ब्रह्मरूपिणी ( स० स्त्री०) १ वंदा, बांदा। २ ब्रह्मस्व- (भागवत १०।३३।४६) रूपा। ब्रायराति (सं० पु०) १ याज्ञवल्क्य मुनि। ये ब्रह्मज्ञान ब्रह्मरेखा ( स० स्त्री० ) भाग्य वा अभाग्यका लेख । इसके देते हैं, इसीसे इनका ब्रह्मरात्रि नाम पड़ा है। हेमचन्द्र विषयमें कहा जाता है, कि ब्रह्मा किसी जीवके गर्भमें टीकामें इनकी व्युत्पत्ति इस प्रकार लिखी है। ब्रह्मशान | आते ही उसके मस्तक पर लिख देते हैं। राति ददाति यः, ब्रह्मशब्दात् राधातोर्नाम्नीति त्रिप्रत्ययनिष्पन्नोऽयम् ब्रह्महर्षि (सं० पु.) ब्रह्मा ब्राह्मणः ऋषिः वा ब्रह्मा घेखें ( हेमटीका ) (स्त्री०) २ ब्रह्माकी रात्रि। मनुमें इस परब्रह्म वा ऋषति वेत्ति। वशिष्टादि मुनिगण । ब्रह्मरात्रिका परिमाण इस प्रकार बतलाया है-अठारह ब्रह्मर्षिदेश ( स० पु० ) ब्रह्मर्षीणां देशः बासयोग्यस्थान। निमिष अर्थात् चक्षुके पलककी एक काठा, तीस काष्ठाको कुरुक्षेत्रादि चार देश, वह भूभाग जिसके अन्तर्गत कुरु- एक कला, तोस कलाका एक मुहर्स और तीस मुहूर्त्तको क्षेत्र, मत्स्य, पाञ्चाल और शरसेनकशन . एक दिन रात होती है। मनुष्योंके लिये दिवाभागमें | देशसम्भूत ब्राह्मणोंसे पृथ्वीके सभी लोगोंको सदाचार जागरण और रात्रिकालमें निद्रा बतलाई गई है । मनुष्यका | सोखना चाहिये। एक मास पिलोकको एक दिनरात होता है। उनमेंसे ब्रह्मलिखित (सं० पु. ) ब्रह्मलेख, मानवकी अष्टलिपि । कृष्णपक्ष उनका दिन और शुक्लपक्ष रात होता है। ब्रह्मलोक (सं० पु० ) ब्रह्मणो लोकः भुवनं । ब्रह्माधिष्ठान कृष्णपक्ष काम करनेका और शुक्लपक्ष सोनेका समय भुवन, सत्यलोक । ब्रह्मा इस लोकमें अवस्थान करते हैं। है। मनुष्यका एक वर्ष देवताओंकी एक दिन रात "सत्यस्तु सप्तमो लोकः झपुनर्भववासिनाम् । माना गया है। फिर उनके भी इस प्रकार विभाग हैं.-| ब्रह्मलोकः समाख्यातो प्रतीघातलक्षणः॥" उत्तरायण देवताओंका दिन और दक्षिणायन उनको रात्रि । ( देवीपुराण