पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६२२

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ब्रह्महत्या ब्रह्महन् प्रहमहत्या, सुरापान, स्तेय, गुरुपनी-गमन और प्रायश्चित्त विधेय है। इच्छापूर्वक ब्राह्महत्या करनेसे उसे इनका संसर्ग भी महापातक है। पूर्वोक्त प्रायश्चित्तसे दूना करना होगा। ब्रहमहत्याधिष्ठात्री देवताका स्वरूप ब्रह मवैवर्त- वैश्य अकामतः यदि ब्रह्महत्या करे, तो उसे छत्तीस पुराणमें इस प्रकार वर्णित है,- वर्ष व्रत करना होगा। यदि उसमें अशक्त हो, तो ५४० "रक्तवस्त्रपरीधाना वृद्धास्त्रीवेशधारिणी। धेनुदान और उसके भी अभावमें १६२० कार्षापण दान सप्ततालप्रमाणा सा शुष्ककपठोष्ठतालुका ॥ और ४०० कार्षापण दक्षिणा अवश्य दे। इच्छापूर्वक ईशाप्रमाणदशना महाभीतञ्च कातरम् । करनेसे उसको ७२ वर्ष व्रतानुष्ठान करना होगा। धावन्तं परिधावन्ती बलिष्ठा हतचेतनम् ॥ इसमें असमर्थ होनेसे १०८० धेनुदान और उसके अभाव- खड्गहस्तो हतास्त्र तं दयाहीना च मूच्छितम् ।। में ३२४० कार्षापण दान और ४०० कार्षापण दक्षिणा द्रो दृष्ट्वा च तां घोरां स्मारं स्मारं गुरोःपदम् । दे। शूद्र यदि अज्ञानतः ब्रह्महत्या करे, ते उसे ४८ वर्ष विवेश मानससरो मृणालसूदमसूत्रतः ॥" व्रत करना होगा। असमर्थके लिये ७२० धेनुदान और __(बूड्मवैवर्तपु. श्रीकृष्ण-जन्मख० ४७ अ. ) उसके अभावमें २१६० कार्षापण उत्सर्ग तथा ४०० कार्षा- ब्राहमहत्याजनित महापातककी निवृत्तिके लिये प्राय पण दक्षिणा देना विधेय है। ज्ञानपूर्वक करनेसे इसके श्चित करना विधेय है । इस प्रायश्चित्तका विषय दूने प्रायश्चित्तका अनुष्ठान आवश्यक है। प्रायश्चित्त-विवेकमें विस्तृत भावसे वर्णित है। ब्राह मण (प्रायश्चित्त-विवेक) यदि बिना जाने ब्राह्मणबध करे, तो उसे पापशान्तिके ब्रह्मवैवर्त पुराणमें आतिदेशिक ब्रह्महत्याका विषय लिये बारह वर्ष व्रतानुष्ठान करना चाहिये। प्रायश्चित्त इस प्रकार लिखा है : -- विवेकमें लिखा है- श्रीकृष्ण, शिव, गणेश और सूर्य आदि देवताओंकी "बड्महा द्वादशाब्दानि कुटीं कृत्वा वने बसेत् । पूजामें जो भेद समझता है, उसे ब्रह्महत्याका पाप लगता भैयाण्यात्मविशुद्ध्यर्थं कृत्वा शवशिरोध्वजम् ॥ है। गुरु, इष्टदेवता, जन्मदाता, पिता और माता भिक्षाशी विचरेद्यामं वन्यैर्यदि न जीवति ॥" आदि गुरु जनके प्रतिभेद समझनेसे भी ब्रह्महत्याका पाप (मनु १११७३) होता है। जो हरिके पादोदकके साथ अन्य देवताके यदि इस द्वादश वार्षिक व्रतका अनुष्ठान करने में | पादोदककी तुलना करते और विष्णु, विष्णूपासक तथा असमर्थ हो, तो १८० धेनुदान करना चाहिये और यदि सर्वशक्तिस्वरूपा प्रकृतिको निन्दा करते हैं उन भी वह भी न कर सके, तो चूर्णीदान करना आवश्यक है। ब्रह्महत्याका पाप लगता है। भारतवर्षमें अम्बुवाची इसमें ५४० कार्षापण उत्सर्ग और १०० कार्षापण दक्षिणा दिनमें भूखनन, जलमें शौचादित्याग, गुरु, माता, पिता, देनी होती है। अनन्तर प्रायश्चित्तके विधानानुसार साध्वी स्त्री और अनाथाका पालन पोषण नहीं करनेसे प्रायश्चित्त करना होगा। शास्त्रविहित इस प्रकार प्राय- | ब्रह्महत्यापातक होता है। श्चित्तानुष्ठान करनेसे ग्रह महत्यापातक जाता रहता है। ब्रह्मवैवर्तपुराणके प्रकृतिखण्ड-३०वें अध्यायमें __ ग्राहमण यदि शानपूर्वक ब्रहमहत्या करे, तो उसे | इसका विस्तृत विवरण लिखा है। विस्तार हो जाने- द्विगुण द्वादशवार्षिक व्रतका अनुष्ठान करना होगा। यदि | के भयसे यहां कुलका उल्लेख नहीं किया गया। उतना न कर सके, तो ३६० धेनुदान, उसके अभावमें ब्रह्मान् ( स० पु० ) ब्रह्माणं ब्राह्मणं हतवान् ब्रह्म-इन १०८० कार्षापण उत्सर्ग और २०० कार्षापण दक्षिणा (ब्रह्मभ्र णवृत्रषु विप् । पा ३।२।८७) इति क्वि । अवश्य दे। अनन्तर वे प्रायश्चित्तके विधानानुसार ब्रह्मन, ब्राह्मणकी हत्या करनेवाला। ब्रह्महत्या देखो। प्रायश्चित्त करे। क्षत्रिय यदि अक्षानतः ब्राह्मणहत्या करे, | ब्रह्महत्यादि महापातककारी अनेकों वर्ष नरकका तो उसके लिये ब्राह्मण कत्तुक वधके प्रायश्चित्तसे दूना भोग करके पीछे कुत्त, सूअर, गदहे, ऊंट, बकरे, भेड़े,