पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६४३

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प्रामसमाज रायका इस नव-प्रतिष्ठित सभाके कार्यमें वैदिक लक्षण "Society of Vedanta, Unitarian Theophilanth- यथासम्भव प्रोथित हुए थे, यह भी उनको उपयुक्त ropism. Ilindu Theism" इत्यादि नामसे इस सभाका निरपेक्षतासे जान सकते हैं। यह एक निर्विरोध और तथा उसके प्रचारित धर्म का परिचय होता था। "ब्राह्म- सार्वभौमिक उपासनाका स्थान है, इस बातको राममोहन समाज” नाम पहले कहीं कहों उलिखित होता था, पोछे रायने अपने पहले ही ध्याख्यानमें समझा दिया था। यही नाम स्थायी रह गया। इस प्रकार सभाका कार्य चलने लगा। दूसरे वर्ष उसी आत्मीय सभा और ब्राह्मसमाजमें जो राममोहन के नियामकरूपमें द्रष्टडीड लिखी गई थी। रायके सहयोगी थे, उनमेंसे कितने हो व्यक्तियोंके नाम प्रथम व्याख्यानका आशय इस प्रकार है:- उपलब्ध हैं, यथा - अध्यापक हरनाथतर्क भूषण, रामचन्द्र "जैसे मनुष्यके पलङ्ग पर वा मकान में वा वृक्षके विद्यावागोश, रघुराम शिरोमणि, अवधौत हरिहरानन्द ऊपर शयन करने पर परम्परासे उसके शयनका आधार तीर्थ स्वामी, पण्डित शिवप्रसाद मिश्र, उत्सवानन्द पृथिवी ही है, उसी तरह किसीके वृक्ष वा नदी अथवा विद्यावागीश, राजा वदनचंद राय, कालीशङ्कर घोषाल, मूर्तिविशेषकी पूजा करने पर भी वह परम्परासे ईश्वरकी गोपीमोहन ठाकुर, द्वारकानाथ ठाकुर, प्रसनकुमार ठाकुर ही उपासना होती है। अतएव किसी भी उपासकके व्रजमोहन मजुमदार, मथुरानाथ मल्लिक, वैद्यनाथ मुखो- प्रति द्वष वा ग्लानि करना शास्त्रतः और युक्तितः पाध्याय, जयकृष्ण सिंह, कालीनाथ मल्लिक, वृन्दावनमिन, अयोग्य है। * * * * * गोपीनाथ मुन्शो, ताराचंद चक्रवत्तों, चन्द्रशेकरदेव,

  • * परम्परा उपासनाकी अपेक्षा साक्षात् उपा नन्दकिशोर बसु, राजनारायण सेन, रामनृसिंह मुखो-

सना सर्वथा श्रेष्ठ है। * * * * नाम पाध्याय, हलधरवसु, अन्नदाप्रसाद बन्धोपाध्याय, मदन रूपादिके निर्देशसे परस्परमें मत-विरोध होता है । अतएव मोहन मजुमदार, गोविन्द माला, कृष्णमोहनमजुमदार, तटस्थ लक्षणसे अर्थात् जगत्के स्थिति-भङ्गादिके कारण नीलमणि घोष, नोलरतन हलदार, गौरमोहन सरकार, स्वरूप ईश्वरकी उपासना विहित है। * * * निमाईचरण मित्र, भैरवचन्द्रदत्त, रामधन दत्त और इन सब मतोंमें वेदवेदान्त मन्वादि स्मृति तथा समस्त चौधरी कालनाथराय मुन्शी। इन महाशयोंको ब्राह्म- शास्त्रोंकी एकवाक्यता पाई जाती है। समाजकी मूलभित्ति कहा जाय, तो भी अत्युक्ति न होगी; • यह निर्विरोध सार्वभौमिक धर्म हिन्दूधम के साथ कारण इन लोगोंने इस समाजको उन्नतिके लिए सर्वान्तः नितान्त सुसङ्गत है। इस बातको प्रमाणित करनेके करणसे सहायता की थी। लिए राममोहन रायने गोविन्दाचार्यकी कारिकासे प्रमाण इनमेंसे शेषोक्त ८ व्यक्ति साधन-सम्पन्न थे। उन्होंने स्वरूपमें वचन उद्धत किये थे। इसके अतिरिक्त उच्चभावके ब्रह्मसङ्गीतकी रचना की। राममोहन राय उन्होंने उच्चावच स्थानस्थित मनुष्यके एक भूमि-आश्रय स्वयं भी सङ्गोत-रचना करते थे। का जो उदाहरण दिखाया है, वह भी श्रीमद्भागवतके ___* ये सङ्गीत एकत्र मुद्रित हो कर पूचारित भी हुए थे। दशम स्कन्धके ८७वें अध्यायके १२वें श्लोकको प्रति- उसमें रचयितांक नामका आद्यक्षर अंतमें लिखा रहता था। राम- ध्वनि मान है। मोहन रायके निज-रचित सङ्गीतमें किसी प्रकारका संकेत नहीं रहता ___ राममोहन प्रथम वयसमें श्रीमद्भागवतका नियमित था। जो लोग राममोहन रायके गुणग्राही थे, वे स्वयं भी किसी रूपसे पाठ करते थे । उस समयके 'सत्यं परं धीमहि | न किसी असामान्य गुणसे संयुक्त थे। वे प्रायः उनके साथ एकत्र इत्यादि श्लोकके पाठने उन्हें इस सत्य पर पहुंचाया था. हो कर वा खतंत्ररूपसे ब्राह्मसमाजकी एक एक अंशमें सहायता इस भजनालयका विशेष कोई नामकरण न हुआ था। करते थे। उनका जीवनचरित्र वा कीर्ति-विवरण संग्रहीत नहीं इसकी प्रकृति देख कर जो जैसा समझे, वे उसी रूपमें है। जो कुछ भी उपलब्ध है, भावभ्यकतानुसार उसका उल्लेख इसका नामोल्लेख करने लगे। "ब्रह्मसभा" "वेदांतसभा" } किया जोयगा । Vol, xv. 160.