पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६४५

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ब्राह्मसमाज

राममोहनराय भारतभूमिसे जन्मभरके लिए विदा ले: हुगली जिलेके अन्तर्गत मालापाड़ाः प्राममें

कर उत्तमाशा अन्तरीप वेष्टनपूर्णक छः मास समुद्रपथके रामचंद्र विद्यावागीशका जन्म हुआ था। उन ज्येष्ठ कष्टको सहते हुए ८वी अप्रेलको इंग्लैण्ड पहुंचे थे। भ्राता तांत्रिक साधक थे, नाम था हरिहरानन्द तीर्थः यहां उन्हें तीन वर्ष रहना पड़ा था। आश्विन शुक्ला स्वारी कुलावधीत ।* तीर्थस्वामी राममोहन रायके चतुथीं, शक सं० १७५५ ता० २७ सेप्नेम्बर १८३३ ई०को तन्त्रोपदेष्टा थे। उनके अनुज रामचन्द्र विद्यावागीश ब्रिष्टल नगरमें आपने देहत्याग किया था। मृत्यु-समय । राममोहन रायके कलकत्ता-वासमें प्रारम्भसे ले कर में उनकी अवस्था ५६ या ६१ वर्षकी भी। आश्विर तक छायाको तरह उनके अतवतीं थे। उन्होंने . ब्राह्मसमाजके इतिहासमें राममोहनरायके इंग्लैगड. , प्रथमतः अपने प्रतिष्ठित वेद चतुणाणीमें वेदान्तशास्त्रका .वासके विषयमें दो विषय जानने योग्य हैं। . एक तो यह, अध्यापन किया । बादमें संस्कृत कालेजमें स्मृतिशास्त्रके कि वहांके एकेश्वरवादियोंका कहना था, कि यदि अध्यापक नियुक्त हुए। इस कार्यमें नियुक्त रहने पर राममोहनराय तीन वर्ष रह कर वहांके विद्वानोंके भा विद्यावागःश महाशय ब्राह्मसमाजके नेताओंमें एक साथ धर्मालोचना न करने, तो वहांको यूनिटेरियन संग्र-: प्रधान व्यक्ति समझे जाते थे। सर्वत्र उनका आदर दाय इतनी जल्दी परिपुष्ट न होती। दुमग विषय यह था। हिंदू-कालेजके अंतर्गत बङ्गला पाठशालाके छालों- है कि, सहमरणप्रथा निवारित होने पर भी प्रवर्तकोंकी को भी आप नियमितरूपसे नोतिशिक्षा दिया करते थे। आहुनिके प्रभावसे उसके पुनरुज्जीवनको सम्भावना होने शक सं० १७९०से १७६५ तक पंद्रह वर्ष आप ब्राह्मसमाज- लगी थी, परन्तु राममोहन रायने प्रिवी कौन्सिल तक के आचार्य पद पर समारूढ़ रहे । इस वर्ष श्रीमहे । 'समुत्थित हो कर १८३२ ई०को ११वी जुलाईको इसको देवे द्रनाथ प्रमुख कुछ उत्साही युवकोंके ग्राह्मसमाजके "अपील नाम जर" करा दी थी। बिधवा हिन्द रमणियों- सर्वाङ्गोन उन्नतिमाधनमें वती होने पर उनके जीवनका का मनूक्त ब्रह्मचर्य-गौरव सुदूर विलायत तक विघोषित : कार्य समाप्त हुआ था। इसके कुछ दिन बाद ही आप हुआ था। पीड़ित हो कर शय्याशायी हुए। अंतमें काशीयात्रा की राममोहन रायके सम्पूर्ण जीवनके कार्यो से ब्राह्म-; और मार्ग में हो १७६६ शाब्दमें फाल्गुन मासमें आप- समाजका कुछ न कुछ सम्पर्क अवश्य है *। अब ब्राह्म- की मृत्यु हुई। समाज सङ्कटोंमें गिरता पड़ता किस तरह क्रमशः वृद्विको इमके याद ब्राह्मसमाजका कार्य भार श्रीमद्देवेंद्रनाथ प्राप्त हुआ इस बातका वर्णन किया जाना चाहिए। ठाकुर पर सौंपा गया। देवेन्द्रनाथ ठाकुर देखो। उपयुक्त वादविवाद और अन्यान्य प्रतिकूल घटनाओं- १७६० शकाब्दमें, इकोस वाको उम्र में ही देवेंदनाथ मेंसे राममोहनरायके अवर्तमानमें ब्रह्मसभाको रक्षा : ठाकुरका धर्गभाव उद्दीप्त हुआ था। एक दिन सहसा करना एक दुष्कर कार्य था। इससे पहले करीब ५०६० गममोहन राय द्वारा प्रचारित ईशोपनिषद् प्रथके एक व्यक्ति सभाको उपासनाके समय उपस्थित होते थे। छिन्न पत्रमें 'ईशावास्यमिदं सर्व' इस ब्रह्ममंत्रको पढ़ सदस्यगण बदनामी होने के कारण क्रमशः सभाका सम्पर्क कर आप परम पुलकित हुये थे। यही उनकों नवोभूत छोड़ने लगे। परन्तु राममोहन रायके चिरसहाय महा सावित्रीमंत्रदीक्षा है। तभोसे, केवल त्रिसंध्या में ही महोपाध्याय रामचन्द्र विद्यावागीशने इस सभाके प्रथम क्यों, किंतु दिन और रातको भी वेदोपनिषदुक्के मंत्र दिन जो आचार्यका आसन ग्रहण किया था, उससे वे उनको रसनामें विलास करते रहते थे। .... किसी भी तरह विचलित न हुए। ब्रह्मसमाजके इति- ...हासमें इस महात्माका नाम और गुणावली विशेष * अवधीताश्रम ग्रहणके पहले इनका नाम नन्दुकमाए। .. उल्लेखनीय है। न इस समय आपने ब्राह्मसमाजमें जो व्याख्यान दिये थे,

  • राममोहन राय' शब्दमें सम्पूर्ण विवरण लिखा गया है। उनमें से १७ दिनके व्याख्यान बार बार छपे थे।