पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६४९

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ब्रामसयाज . ६४३ चंद्रने (अपौसलिक ) ब्राह्मधर्मानुसार एक वैद्यजातीय। केशवचंद्रकी सहायतार्थ रुपये आने लगे। वे बिना घरके साथ कायस्थजातीय एक विधवाकन्याका विवाह- पूजोके ईश्वर-सहाय हो कर घरसे निकले, परंतु सवल कार्य सम्पन्न कराया था। इससे उनके मनोभावका ही सफलकाम हुए । "ब्रह्मकृपाहि केवलं” इत्यादि कुछ अंश प्रस्फुटित हो चुका था। उनकी आंतरिक नामाङ्कित ध्वजा उड़ाते हुए वे अतुलं अर्थ सञ्चयपूर्वक चेष्टा थी, कि समस्त ब्राह्मसमाजके सदस्यगण एकमत कलकत्ता लौटे । उनका ब्राह्मधर्म प्रचार बाहुल्यतासे होने हो कर इसी आदर्श देशकी कुरीतियों और कुसंस्कारोंको लगा। अनेक व्यक्ति अपने परिवारसे सम्बन्ध हटा कर जड़मूलसे उखाड़ कर फेंकते रहें। उनके समाजमें प्रविष्ट हो गये। १८६६ ई०को ठी मार्च को कहना व्यर्थ है, कि इस प्रकार आदर्शसे कार्य करना "भारतवर्षीय ब्राह्मसमाज”के स्वतन्त्र उपासना मन्दिरका देवेंद्रनाथके अभिप्रायसे विरुद्ध न था; इसलिए समस्त द्वार उन्मुक्त हुआ । ब्राह्मसमाजके प्रतिनिधिओंका बुलाना और उनमें मतैक्य ____ केशवचंद्र हिन्दुओं द्वारा पोषित कुसंस्कार और सम्पादन करना कुछ भी सुसाध्य न हआ। उपधर्म के दुर्गको तोड़नेके लिए शुद्ध भावसे पारिवारिक परन्तु केशवचन्द्रको विश्वास था, कि इस प्रकार और सामाजिक क्रिया निर्वाह करनेकी प्रतिज्ञाके कारण किये बिना ब्राह्मधम प्रतिपालित नहीं होता। इस आदि ब्राह्मसमाजसे पृथक् हुए थे। उनका कार्य भी लिये उन्होंने अपनी कोशिशसे स्वमतावलम्बी सदस्यों इस प्रकारसे निष्पन्न होने चला। परंतु फिर भी एक द्वारा इस प्रकारसे ब्राह्मधर्मका अनुष्ठान और ब्राह्मधर्म बलवत् अन्तराय रह गया। वह यह, कि नवीन ब्राह्मविवाह- प्रचार निर्वाह करनेका संकल्प कर तदनुसार प्रचार पद्धति कानून नजायज सिद्ध विना किये इस स्वतंत्र कार्यादि पृथक् रूपसे करना शुरू कर दिया। दूसरे हो, सम्प्रदायको किसी तरह भी रक्षाका उपाय न देख वे वर्ष १७८७ शताब्दमें देवेन्द्रनाथ द्वारा परिचालित आदि भारतके बड़े लाटके शरणापन्न हुए । स्वयं गवर्नर जन- बाह्मसमाजसे सर्वथा विच्छिन्न ब्राह्मसमाज स्थापनके : रल लाड लारेन्स बहादुर केशवचंद्रके उपासनालयमें लिए उद्योग करने लगे। आया करते थे और उनको आदरकी दृष्टिसे देखते थे। केशवचंद्रके आदि-ब्राह्मसमाजका सम्बन्ध छोड़ केशवचंद्रने उनसे एक संशुद्ध विवाह कानूनकी पाण्डुलिपि कर नूतन उपासनालयके आयोजनमें व्यस्त होने पर तयार करवाई। उस पर सर्वसाधारण जनताके आपति महात्मा राजनारायण वसुने उक्त आदि-वाह्मसमाजका करने पर सिर्फ ब्राह्मीके लिए 'ब्राह्म' नामसे इस कानून परिचालक-पद ग्रहण किया। को विधिबद्ध करानेकी चेष्टा की गई । पर आदि ब्राह्म- केशवचंद्रने अपने अभिप्रायानुकूल बाह्मसमाजको समाज और तदनुगत अन्यान्य समाजके सभ्योंने उस स्थापनाके लिए जनसाधारणसे सहायता मांगी थी *। पर भी आपत्ति की। इससे वह भी रद हो गया। जाति, वर्ण और सम्प्रदाय निर्विशेषसे जिस बाह्मसमाज बादमें रजिष्टरी द्वारा सिविलविवाहका कानून विधिवद्ध की स्थापना हुई है वहां किसी जातिका चिह्न रहना हुआ। इस रजिष्टरी-कार्यके अव्यवहित पूर्वमें वा बादमें उचित नहीं; यह संस्कार बलीयान् होने पर भारतके ब्रह्मोपासना और पिताके पक्षसे कन्यादानादि कार्य करने-

  • केशवचन्द्रने भारतवर्ष के समस्त ब्राह्मणसमाजोंको एक इससे मालूम होता है कि, बामसमाज कहनेसे एक

सूत्रमें गूथनेके उद्देशसे अपने द्वारा स्थापित इस समाजका नाम मकान और उसके भीतरके आदमी ही नहीं समझना चाहिए, रखा-'भारतवर्षीय ब्राह्मसमाज । १८६६ ई०के नवेम्बर मासमें | बल्कि ब्राहमसमाजका अर्थ सम्पूर्ण ब्रहमोपासकों के समूहसे है। उन्होंने ब्राह्मधर्मानुरागी व्यक्तिमात्रसे प्रार्थना की कि, उनके उपासनाभमनको ब्रमका उपासना मंदिर वा ब्रममंदिर कहना प्रचार कार्यमें तथा विशुद्ध आदर्शभूत इस ब्राहमसमाजे स्थापनमें | चाहिए। कलकत्तामें ८९ नं० मछुआबाजार 'ट्रीटमें केशवचन्द्रका सभीको अर्थ द्वारा सहायता पहुँचाना चाहिए। नवविधान समाज प्रतिष्ठित है।