पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६५१

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ब्राह्मसमाज . नास्तिक्य और यथेच्छाचारको नष्ट करनेके लिये उन्होंने जो वाहापूजाके बदले मानस पूजाका विधान करते हैं, जो विधिनियम चलाए, ब्राह्मसमाजमें उनका प्रचार न जो श्रवणकीत नादि प्रकरण और भक्तिमार्गमें एक सर्व- होते देख वे "नवविधान" नामसे आत्म मत प्रकाशित करके प्रति निष्ठावान होने जा नीतिपालनको अध्यक्त करने लगे। ईश्वरकी ए आराधना मना हैं जो योगमार्गमें ___ वर्तमान नवविधान मत पर विश्वास रखनेवाले परमात्मा लिन्त्रिका माया करते हैं। ऐने सभी व्यक्ति इन सार सत्यों में सन्देह और तर्क न करें, स्थिर व्यक्ति आदिवासालमाजके मतका अनुवर्तन करते हैं, विश्वाससे ऐहिक और पारत्रिक कल्याणकर कार्यों का अथवा आदिवासमाजका कार्य करते हैं, ऐसा सम- अनुष्ठान करते रहें, येही नवविधानका तात्पर्य है। झना चाहिए। अनाव नविधानी और साधारणी __नवविधानाचार्य केशवचंद्रने मर्वधर्म सारभूत इन , ब्रालाके माथ मह परमानानिष्ठ व्यक्तिवर्ग आदि ब्राह्म तत्त्वोंको पत्तनस्वरूप कर, पूर्वापर साधकों में ज्ञान, भक्ति, समाज अन्न पा मगइली परिगणित हो योग और वैराग्यके समन्वयकी चेष्टा की है। वे अपने समाते । सम्प्रदायमें हिन्दुओंका होम, ईसाइयोंका जलमजन, ! प्रशासमाजको निहार में एक विषय और भी दृष्थ्य सिखोंका दरबार भजन, वैष्णवोंका सङ्कीर्तन और शानों- है: की 'मा' 'मा' वाणी, यह सब कुछ सन्निविष्ट कर गये । देवेन्द्रनाथके माथ केशवचंद्रके विच्छे दकं समय हैं। इस मतके साधक ब्राह्मगण मुमलमानधम प्रति- दोनोंक भिन्न संस्कारांने जो प्रबलता धारण की थी, उस- ष्ठाता महम्मदकी तरह केशवचन्द्रको नविधानप्रवत्तक का वर्णन हम पहले ही कर चुके हैं। देवेन्द्रनाथने देखा "आचार्य" मानते हैं। सम्प्रति ब्राहा नामसे जो मप्र- कि, केशवचंद्रकं भाव ईमाईधर्मानुगत है और गति विजा- दाय गठित है, उस संप्रदायके सभी व्यक्ति उपयुक तीय हुई जा रही है । इससे वे जातीय भावको उद्दीपनामें विशेष विधानमें एक मत न होने र भी केशवचंद्रको प्रवृत्त हुए ! इस समय स्वदेश, म्बजाति और हिंदुधर्मके अपना मूल स्वीकार करते हैं। ' नामसे उन्नत्तिसाधक बहुतमी सगासमिति और प्रथादि- इस प्रकारसे इस समय "ब्राह्मसमाज" शब्दमे दो . का प्रकाशन होने लगा । हिन्दु गनिनातिमें जितना उत्कृष्ट प्रकारकी अर्थसङ्गति की जाती है-१) ब्राहम नामधारी और निदाच अंश, उनको रक्षा लिए आदि वाहा ध्यक्तियोंका संप्रदाय और २) ब्रह्मोपासकों की मण्डली। समाजमें दृढ़ना उत्पन्न हुई। ब्रमशः केशवचंद्रमें अस्थि- आदि ब्राह्मसमाज द्वारा ब्राह्मसमाजमें ब्रह्मोपासक मज्जागत हिमाल पारफुटित होने लगा । उन्होंने हिंदुओं- मण्डलीकी अधिक वृद्धिको चेष्टा हो रही है। उसमें . के शुद्धाचार धारण किये। बहुत वचपनस हो व निरा. ऐसे ही व्यक्ति अधिक हैं, जो व्यवस्थापूव क देवताओंके : मिप आहार करते थे। उनके प्रभावसे ग्राहों में मत्स्य- बहुत्वको एकत्वमें अर्थात् परब्रह्ममें समावेश करते है, मांसादि आहारको प्रसक्ति खर्व हो गई । विलायत. प्रवासी हमारे देशके गवकीम, स्वदेशीय रीतिनोति पालम- शक सं० १८०१ माघमासमें नवविधान घोषित हुआ। के लिए श्रीमती महाराणा भारतेश्वरा विकृरिया द्वारा (१) ईश्वर हैं, (२) वे पिता हैं और हम लोग पुत्र, (३) ईश्वर । . पवित्र हैं, हमें पापोंका त्याग कर पवित्र होना चाहिए, (४) सम्पूर्ण * चन्द्रनाथ ब्राहमयी प्रयक उपनिषदंशका तात्पर्स धर्मोंसे सार और सत्य ग्रहण करना चाहिए, (५) विश्वासियोंमें विशुद्ध संस्कृतभाषामें अदिता कर अध्यापक वाहाण पण्डितों एकताका बन्धन दृढ़ करना होगा, (६) महापुरुषगण एक एक . और बेदापनि पद सेवियोग, ब्रहमशान उद्दोपनके लिये वितरण विधान ले कर आये हैं, उन्हे मननपूर्वक समझना होगा, और कराया था। ममोहनराय ब्राहममभाजकी प्रतिष्ठाक दिन (बंगला (७) सर्वविधानोंकी समष्ठिमें विधान पूर्ण होता है, यह मननपूर्वाव, ता.६ भाद्रको ) मांबल्गरिक निशान ब्राहमण पण्डितोंको जतत्को पूर्णब्रह्मकी सत्ता पूर्ण देखना होगा। अर्जदान देते थे। Vol. xv. 162,