पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६५३

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प्रामीभनुष्टुप-भ ब्राह्मोभनुष्टुप ( स० पु०) एक वैदिक छन्द । इसमें सब जिसमें इङ्गलैण्ड और स्काटलैण्ड हैं । २ इङ्गलिस्तानका, मिला कर ४८ वर्ण होते हैं। अंगरेजी। ब्राह्मोउष्णिक (सं० पु०) एक वैदिक छन्द । इसमें सब घोड़ा ( हिं० लो० ) बीड़ा देखो। . 'मिलाकर ४२ वर्ण होते हैं। विवियर ( ०.पु० ) एक प्रकारका छोटा टाइप । यह ब्राह्मीकन्द (संपु० ) ब्रहम्योः कन्द इव कन्दो यस्य। आठ प्वाइटका अर्थात् पाइका होता है। वाराहीकन्द। ग्रीहि ( हिं० पु० ) व्रीहि देखो। ब्राह्मीकुण्ड ( स० क्लो० ) स्कन्दपुराणोक्त तीर्थभेद। ववत (सं० वि०) ब्रवीतोति व्र शत् । वक्ता, वोलने- ब्राह्मोगायत्रो ( स० स्त्री० ) ३६ वर्णवाला एक वैदिक वाला। छन्द । व वाण (म त्रि०) व ते इति ब्र-शानच । वक्ता, वोलने- ग्रामीजगती (म० स्त्री०) ७२ वर्ण-वाला एक वैदिक वाला। बुश ( अं० पु० ) वालोंका बना हुआ कुंचा। इससे रोपी ब्राह्मोत्रिष्टुप ( स० पु० ) ६६ वर्ण-वाला एक प्रकारका या जूते इत्यादि माफ किये जाते हैं। वैदिक छन्द। व्र हम ( अं० स्त्री०) एक प्रकारकी घोडागाड़ी । इसे ब्राह्मीपंक्ति (सं० स्त्री०) ६० वर्ण-वाला एक वैदिक छन्द। हम साहबने पहले पहल निकाला था, इसोसे ब्रहम ब्राह्मोवृहती (सं० स्त्री०) ५४ वण-वाला एक वैदिक छन्द। नाम पड़ा। इसमें एक और डाकृरके बैठनेका और ब्राह्मौदनिक (सं० वि०) ब्राह्मणोंकी पाकाग्नि। उमके सामने दूसरी ओर केवल दवाओंका वेग रखनेका ब्राह्मा ( स० क्लो० ) १ विस्मय । २ दृश्य । ब्राह्मण इद- स्थान होता है। ब्राह्मन् व्यञ्। (त्रि०) ३ ब्रह्मसंवन्धो। वेवरी (हि. स्त्री. ) एक प्रकारका बढ़िया कश्मीरी ब्रिगेड (अं० पु० ) सेनाका एक समूह । नवाकृ। ब्रिगेडियर जनरल (अ० पु० ) एक सैनिक कर्मचारी जो ब्लाक ( अपु.) १ ठप्पा जिस पर कोई चित्र छापा एक विग्रेड भरका संचालक होता है। जाय । २ भूमिका कोई चौकोर टुकड़ा। ब्रिटिश ( वि.)१ उस द्वीपके सम्बन्ध रखनेवाला दलेक (संपु०) जल। भ-हिन्दी वर्णमालाका चौवीसवाँ और पवर्गका चौथा वर्ण। इसका उच्चारण स्थान ओष्ठ है । उच्चारण-कालमें ओष्ठके साथ जिह्वाका अग्रभाग स्पर्श होता है, इसीसे यह स्पर्शवर्ण है। इसका प्रयत्न सवार, नाद और घोष है। यह महाप्राण है और इसका अल्पप्राण 'व' है। भकारका खरूप- "भकारं शृणु चागि स्वयं परमकुण्डली । महामन्तिप्रदं वर्ण तरुयादित्य संप्रभम् । पञ्चप्राणमयं वर्ण पञ्चदेवमयं सदा ॥" (कामधेनुत०) यह वर्ण परमकुण्डली स्वरूप, महामोक्षप्रद, तरुण आदित्यसङ्काश, पञ्चप्राण और पञ्चदेवमय है। ध्यान पूर्णक इस वर्णका दश वार अप करनेसे समस्त ममीष्ट सिद्ध होते हैं। इसका ध्यान--