पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६९

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फरुखासबर ६३ भाव और वर्षाका आगमन देख कर नगरके निकट फरुखसियरका कोई स्वाधीन मत नहीं था । उनका अपेक्षा करने लगे। इसी समय उन्हें बहादुरशाहका लालन पालन बङ्गालमें ही हुआ था । वहां दूसरेके मृत्यु-संवाद मिला। उन्होंने झटसे अपने पिताके नाम- इच्छानुसार ही उन्हें सभी कार्य करने होते थे, इस पर खुतवापाठ और मुद्राका प्रचार कर दिया। उस कारण उनको स्वाधीन प्रवृत्तिका आभास प्रकट होने समय पटनाके सैयद हुसेन अलीखाँ बाड़ा आजिम-उस नहीं पाता था। कच्ची उमरमें वे दिल्लीके सिंहासन पर शानके नायव थे । सैयदका साहस और प्रतिभा देख कर अधिष्ठित हुए थे, राजकार्यमें उनकी उतनी दक्षता न थी। फरुखसियरने उन्हें अपने पक्षमें खींच लिया । फरुख सैयद अबदुल्लाको वजीर बना कर उन्होंने राजकार्य का सियरकी माताने भी हुसेनअलीको पुत्र पक्षावलम्बन कुल दारमदार उसी पर सौंप दिया था। इस अवि. करनेके लिये विशेष अनुरोध किया था। मृण्यकारिताका फल उन्हें पीछे अच्छी तरह भुगताना इसके बाद आजिम उस-शानकी मृत्यु और जहान पड़ा। दार-शाहकी विजयवार्ता पटना पहुंची। अभी (११२३ मीरजुमला बादशाहके अतिप्रिय पात्र हो उठे थे । हिजरी, रवि उल् अब्बल ) फरुखसियरने अपने नाम पर वे एक विचक्षण, कर्मदक्ष और उदारपुरुष थे। सैयद मुद्रा प्रचार और खुतवा पाठ करनेका हुक्म दिया। भाई आ कर एक प्रकारसे मुगल साम्राज्यको पास कर हुसेन अलीके भाई सैयद अबदुल्ला खाँ उस समय इलाहा रहे हैं, यह देख कर उन्हें भारी दुःख हुआ था। अब वे बादके सूबादार थे। उन्होंने भी फरुखसियरका साथ | ही सैयद भाइयोंको जन साधारणके निकट हेय और अप- दिया। इस समय बङ्गालका समस्त राजकोप फरुख दस्थ करनेके लिये कौशलक्रमसे उन्हींके द्वारा दिल्लोके सियरने अपना लिया। प्राचीन अमीर और उमराव लोगोंकी हत्या करने लगे। फरुखसियरने विश्वस्त सेनापति और २५००० अश्वा- इस समय दुत्त सैयदोंके हाथसे अमीर उल उमरा रोहीके साथ दिल्लीकी ओर यात्रा कर दी। सैयद भाई जुलफिकर खा आदि सम्भ्रान्त व्यक्तिगण अति घृणित- उनकी यथेष्ट सहायता कर रहे थे। इलाहाबादमें बहु- भावसे मारे गये। अमीर उल-उमराके दीवान राजा संख्यक सेना इकट्ठी करके फरुखसियरने आगरेमें जहान- शुभचादको जीभ काट डाली गई, जहानदार शाहके पुत्र दारशाह पर एकाएक हमला कर दिया। इस भीषण अजोजउद्दीन, आजिमशाहके पुत्र अली तबर और फरुतु- युद्धमें हुसेनअली गुरुतररूपसे आहत हुए थे, किन्तु सियरके कनिष्ठ हुमायुन वखत् उत्तप्त लौहशलाका द्वारा जहानदारको ही पराजय स्वीकार करनी पड़ी। नेत्रहीन किये गये थे। ____ रात तो जहानदारने किसी तरह आगरेमें ही बिताई, | सैयद अबदुल्लाने रतनचाँद नामक एक शस्यविक्रेता- सबेरे होते ही वे जुलफिकर खाँके साथ बड़े सतर्कसे को दीवान बनाया। यह व्यक्ति तथा सैयद भाइयोंकी दिल्ली आये । उनका भाग्य परिवत्तन हुआ जान आसद्- उदरपूर्ति किये बिना किसीका भी कोई काम नहीं करता होलाने उन्हें दुर्गमें कैद कर लिया। था। फरुखसियर सैयदके आचरणसे अच्छी तरह जान- ___ सात दिन विश्रामके बाद फरुखसियरने दिल्लीकी कार थे। उन्होंने मीरजुमलाको अपना प्रतिनिधि बनाया। ओर यात्रा की। ११२४ हिजरी ( १७१२ ई०में ) ११वीं सही मोहर आदि कुल बादशाही कामका भार उसी पर महरमको वे दिल्लोमें आ धमके। जहानदारशाह निहत सौंपा गया इसीसे वजीरको क्षमता बहुत कुछ ह्रास हो हुए। २०वीं जेलहजको फरुखसियर दिल्लीके सिंहासन गई। अब सैयद बादशाह और मीरजुमलाके अनिष्ट- पर अधिरूढ़ हुए । सैयद अबदुल्लाखल्ने 'कुतब-उल-मुल्क' साधनमें लग गये। मीरजुमला सैयद भाइयोंको कैद की उपाधि और सात हजारी मन्सव (दो अस्पस् और करनेके लिये बादशाहसे बार बार अनुरोध करने लगे। से अस्पस्) हुलेन अली खांने 'अमीर उल-उमरा फिरोज- बादशाहकी माता सैयद अबदुल्लाको बहुत चाहती थी। जङ्ग की उपाधि और सात हजारी तथा इसीके साथ उन्होंने सैयदको किसी तरह इन सब बातोंसे सतर्क कर साबमीर-बक्सीका पद प्राप्त किया। दिया।