पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६९३

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. भगवानमित्र-भगीरथमेघ ६८७ भगवानमिन-बङ्गालके प्रथम तथा प्रधान कानूनगो। भगं योनिरस्या अस्तीति भग-इनि डोप । २त्रीमान । कांटोयाके निकटवत्तों खजूरडिहीके मित्रवंश तथा उत्तर-। मनुमें लिखा है, कि पर स्त्री अथवा जिस स्त्रीके साथ राढ़ीय कायस्थ कुल में इनका जन्म हुआ था। भगवान्के। किसी प्रकारका सम्बन्ध नहीं है, उसे भवति, सुभगे वा बाद उनके छोटे भाई वङ्गविनोद वहुत दिनों तक कानूनगो भगिनिसे सम्बोधन करना उचित है। पद पर प्रतिष्ठित रहे। विनोद उदार-प्रकृतिक मनुष्य थे, परस्त्री तु या स्त्री स्यादसम्बन्धा च योनितः । भात्मीय-स्वजनका प्रतिपालन करना उनके जीवनका महा- तां ब्र याद्भवतीत्येवं सुभगे भगिनीति च ॥" (मनु २।१२६) घ्रत था। उनके ही मानगुणसे मित्रवंशने वङ्गाधिकारी' भगिनीपति ( स० पु० ) भगिन्याः पतिः । स्वसभर्ता, आख्या प्राप्त की उनके स्वनामचिह्नित विनोदनगर : बहनोई। पर्याय-- आवृत्त, भाव । भौर औरङ्गाबाद परगना वङ्गाधिकारीवंशकी प्राचीन भगिनीय ( स० पु० ) १ भगिनी सम्बन्धीय वा भगिनी- भूसम्पत्ति है। जात-पुत्र । २ भागिनेय, भान्जा। भगवानसिंह -- नाभावंशके एक राजा। नाभा देखो। भगीरथ ( स० पु. ) भ ज्योतिष्क मण्डलं गीर्वाङ मयं भगवेदन ( सं त्रि०) ऐश्वर्य ज्ञापक । तब रथ इन्द्रियाणि रथ इच यस्य । सूर्यवंशीय नृपभेद । भगशास्त्र ( स० क्ली० ) भगव्यापारबोधक शास्त्रं मध्य ये सूर्यवंशीय अंशुमानके लड़के दिलीपके पुत्र थे। पदलोपि कर्मधा। कामशास्त्र । कपिल के शापसे जल जानेके कारण सगरवंशीय भगस् (स' क्लो० ) भग, योनि । राजाओंने गंगाको पृथ्वी पर लानेका बहुत प्रयत्न किया भगहन ( स० पु० ) भग ऐश्वर्य संहारकाले हन्ति हन- था, पर उनका सफलता नहीं हुई। अन्तमें भगीरथ क्विप् । विष्णु । घोर तपस्या करके गङ्गाको पृथ्वी पर लाये थे। इस भगहारी । सं० न०) शिव, महादेव । प्रकार उन्होंने अपने पुरखाओंका उद्धार किया था। इसी- भगाक्षिहन् ( सत्रि०) शिव । लिये गङ्गाका एक नाम भागीरथी भो है। भगाङ्क र ( स० पु०) भगे गुह्यस्थाने अंकुर इव । अर्श ( मत्स्यपु० १२ अ० रामा० ११४२, ४३, ४४ स० ) रोग, बवासीर। गला और भागीरथी देखो। भगाधान (सं० क्ली०) भगस्य आधानं। १ माहात्म्याधान । (त्रि०) २ भगीरथकी तपस्याके समान भारी, २सौभाग्य। बहुत बड़ा। जैसे भगीरथ प्रयत्न । भगाना (हिं क्रि० ) १ किसी दूसरेको भगानेमें प्रवृत्त भगीरथ अवस्थि ...एक विख्यात टीकाकार । ये पीतमुण्डी करना, दौड़ाना। २ हटाना, खदेड़ना। वंशोय श्रीहर्षदेवके पुत्र और बलभद्र पण्डिनके वंशधर भगाल ( स० क्लो० ) भजति मुखदुःखादिकं कमजन्य- थे। कुर्माचलाधिप जगश्चन्द्र के आश्रयमें रह कर इन्होंने मनेनेति भज्यतेऽनेनेति वा भज ( पीयुक्वणिभ्यां कालनिति अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। ये काव्यादर्शटीका, किराता- उण ३७६ ) इति बाहुलकात् भजेरपोति उज्वलदत्तः जुनोयटीका, विजयादेवीमाहात्म्यटीका, नैषधीयटीका, इति कालन्, न्यङ्कवादित्वात् कुत्वञ्च । नृ-करोटि, महिम्नस्तवटीका, तत्त्वदीपिका नामक मेघदूतटीका, जग- आदमीकी खोपडी। इन्द्रदीपिका नामक रघुवंश टोका और शिशुपालवधकी भगालिन् (स.पु.) भगालं नृकपालं भूपणत्वेनास्त्य-! टीका लिख गये हैं। स्पेति इनि। १ नृकपालधारी, आदमीकी खोपड़ी भगीरथमिश्र-वल्लमाचार्यकृत न्याय लीलावतीकी टीकाके धारण करनेवाला। २शिव, महादेव । रचयिता। भगास्त्र (स.पु०) प्राचीन कालका एक अस्त्र। भगीरथमेघ--एक प्रथकार, ये रामचन्द्रके पुत्र और भगिनी (सस्त्री०) भग यत्नः पित्रादितो द्रव्वदाने जयदेवके पौत्र थे। लोग इन्हें भगीरथ ठक्कुर भी विद्यतेऽस्यो इति इनि, ततो जीप् । १ सहोदरा, बहन । कहा करते थे। जयदेव पण्डितके निकट इन्होंने विद्या