भग्नावशेष-भङ्गास्वन
भग्नावशेष (सं० पु० ) १ किसी टूटे-फूटे मकान या उजड़ी विशेष, एक प्रकाकी मछली। पर्याय-दीर्घजङ्गल ।
दुई बस्तीका बचा अंश, खंडहर । २ किसी टूटे हुए पदार्थ- भङ्गारी (सं. स्त्री०) भङ्कारो पृषोदरादित्वात् साधुः ।
के बचे हुए टुकड़े।
रा मच्छड़।
भग्नाश (सं० त्रि०) भग्ना आशा यस्य । जिसकी आशा भङ्गास्वन-एक राजा। इन्होंने पुत्रको कामनासे इन्द्र-
भंग हो गई हो, हताश।
द्विष्ट अग्निष्टुंन् यज्ञका अनुष्ठान किया। यज्ञके फल-
भग्नी (सं० स्त्री० ) भगिनी पृषोदरादित्वात् साधुः। से उनके एक सौ पुत्र हुए। किसी कारणसे इन्द्र उन
भगिनी, बहम।
पर बड़े कुपित हुए और बदला लेनेका मौका दृढ़ने लगे।
भकारी (सं० स्त्री० ) भमित्यव्यक्तशब्द करोतीति कृ-अन्, एक दिन राजा जब शिकारको बाहर गये, तब इन्द्रने
गैरादित्वात् डिए । दंश, मच्छड़।
मायाजाल फैला कर उन्हें मोह लिया। जब राजा माया-
भक्त (स. स्त्री०) भन्ज-कर्तरि तृण । भङ्गकर्ता, | मोहित हो इधर उधर भ्रमण करते करते बहुत थक गये
तोड़ने फोड़नेवाला।
तब प्यास बुझानेको इच्छासे एक तालाबके किनारे उप-
भङ्ग (स० पु०) भज्यते इति भञ्ज-कर्मणि घत्र । १ तरङ्ग, स्थित हुए। तालाबमें ज्यों ही उन्होंने डूब लगाया,
लहर । २ पराजय, हार । ३ खण्ड । ४ रोगविशेष । ५ भेद । त्यों ही वे स्त्री-रूपमें परिणत हो गये। अब वे घर लौट
६ कौटिल्य, कुटिलता । ७ भय, डर । ८ विच्छित्ति, बाधा। अपने पुत्रोंके ऊपर राज्यभार सौंप निश्चिन्त मनसे जङ्गल
६ रोगमात्र । १० निगम । ११ गमन । १२ एक नागका को चल दिये । वहां एक तपस्सीके साथ उनकी मुलाकात
नाम। १३ टूटनेका भाव, विनाश। १४ टेढ़े होने या हुई। दोनोंके सहवाससे स्त्रीरूपी राजाके गर्भसे पुनः
झुकनेका भाव । १५ लकवा नामक रोग। इसमें रोगीके सौ पुत्र उत्पन्न हुए । राजाने इन पुत्रोंको औरसपुत्रोंके
अंग टेढ़े और बेकाम हो जाते हैं।
साथ सुखसे रहनेका हुकुम दिया। इन सब राजकुमारों-
भङ्गकार ( स० पु०) १ अविक्षित् नृपपुत्रभेद । २ सला- को एक साथ रहते देख इन्द्रने उनके बीच भ्रातृविरोध
जित् पुनभेद।
पैदा कर दिया। उस विरोधने ऐसा भयंकररूप धारण
भगक्षत्रिय -उत्तर और पूर्वबङ्गवासो राजवंशी और पलोया कियों, कि ये सबके सब एक दूसरेके हाथ मारे
लोगोंकी एक सगा।
गये। यह संवाद पा कर राजा रोदन करने लगे। इस
भगवास (स० वि० भङ्गन वासः सौरभमस्याः । हरिद्रा, । समय ब्राह्मणरूपमें पहुंच कर इन्द्रने उनसे कहा, 'तुमने
हलदी।
अनादर करके मेरे विद्विष्ट अम्निष्टुन् यक्षका अनुष्ठान
भगसार्थ (सत्रि०) भङ्ग वक्रभावं अनार्जवत्वमित्यर्थः किया था। उसीके फलसे तुम्हारे सभी पुत्र विनष्ट
स्यति व्यवस्थति यत् या क्रिया इति यावत्, भङ्गसमर्थय-, हुए हैं। अब इन्द्र के चरणों में गिर कर राजाने उन्हें प्रसन्न
तीति अर्थ-अच, कौटिल्यव्यवसायक्रियार्थित्वादस्य किया। इंद्र बोले; 'मैं तुम्हारे दो सौ पुत्रों से केवल
तथात्वं । कुटिल।
एक सौको प्राणदान करूंगा, सो तुम पुरुषावस्थाके या
भगा (सं० स्त्री० ) भज्यते इति भन्ज-( हलश्च । पा ३।३।। स्त्री-अवस्थाके सौ पुलोंका प्राणदान चाहते हो, साफ
१२१) इति बाहुलकात् घन , टाप् । वृक्षविशेष, भांग। साफ कहो।' उत्तरमें राजाने स्त्री-अवस्थाके सौ पुत्रोंके
पर्याय-गजा, मातुलानी,मादिनी, विजया, जया । गुण- प्राणदानके लिये प्रार्थना की। 'के इसका कारण
कफकर, तिक्त, प्राहक, पाचक, लघु, तीक्ष्णोष्ण, पित्तवद्ध क, पूछने पर राजाने कहा, 'स्त्रियोंको संतानस्नेह पुरुषकी
मोह, मन्दवायु और भग्निवद्धक (भावप्रकाश पू०) सिद्धि देखो। अपेक्षा बहुत ज्यादा है, इसीसे मैं अङ्गनावस्थाके पुत्रों के
भङ्गाकट (सक्लो०) भङ्गायाः रजः भङ्गा-रजसि कटच ।। प्राणके लिये प्रार्थना करता हूं।' इस पर इंद्रने उनके
भङ्गोषध।
सभी पुत्रों को जिला दिया और बाद में राजासे पूछा, 'तुम
भागन (स० पु०) भङ्गेन अनिति इति अन्-अच् । मत्स्य- | अभी पुरुष वा सो इनमें से किस रूपमें रहना चाहते हो?
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६९७
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