पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६९९

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किया था। दूसरे वष वे पटियाला-राज अमरसिंहके से वे सेना-सहित जम्मूकी तरफ अग्रसर हुए। यहां की विरुद्ध युद्ध करते समय मारे गये। दिन तक घोरतर युद्ध होने के बाद चरत्सिंह और खुद हरिसिंहके दो स्त्री थीं। पहली स्त्रीसे झण्डासिंह उनको मृत्यु हो जानेसे ॥ जयसिंहने जयपताका फहराई। तथा दूसरीसे छरतसिंह, दीवानसिंह और बासुसिंह, झण्डासिंहको हत्याके बाद उनके भाई गएडासिंह इस तरह पांच पुत्र थे। झण्डासिंहने दलपतित्व ग्रहण दल-पति चुने गये। इन्होंने अपने दलकी विशेष अध्य- कर चारों भाइयों तथा साहबसिंह, रायसिंह, भागसिंह, वसायसे पुष्टि की। इन्हींके उद्यमसे भङ्गी दुर्गका निर्माण- सुधासिंह, दोधिया और निधानसिंह आदि सरदारोंकी | कार्य सम्पादित हुआ और अमृतसरनगरी सौधमालासे सहायताले भंगि-शक्तिको शीर्ष स्थान तक पहुंचा दिया। विभूषित हुई। १७६६ ई०में झण्डासिंह बहुत सेनाके साथ मूलदान ___ कन्हिया सरदार जयसिंहकी विश्वासघातकतासे के शासनकर्ता सुजा खां और बहवलपुरके दाउद-पुत्रोंके अपने भाईको मृत्यु पर गण्डासिंहके हृदयकी आग जोरोंसे साथ शतद्रु, नदीके किनारे इनका जो युद्ध हुआ था, धधक रही थी। वे विवादके किए छिद्रान्वेषण करने उसमें पाकपसन तक स्थान सिख-राज्यकी सीमा स्थिरो लगे। आखिर पठानकोटजागीरके सम्बधमें भगड़ा कृत हुई थी। वादमें कसूरके पठानोंको पर जित कर खड़ा हुआ।+ पठानकोट लौटाया नहीं गया, यह देख उन्होंने पुनः १०७१ ईमें मूलतोन आक्रमण किया। सेना सहित पठान-कोटकी तरफ अग्रसर हुए। करीब डेड मास तक मुलतान-दुर्ग घेरे रहनेके वाद ये ____तारासिंह उनके आनेकी लवर पा कर बड़े घबणाचे भाग आनेके लिए बाध्य हुए । उस समय अफ़गान और अपने दल पति गुरुबक्ससिंहकी सहायतासे माता- सेनापति जहान खो और दाउद-पुत्रों ने विशेष रण रक्षाकी चेष्टा करने लगे। दीनानगरके सामने दोनों निपुणताका परिचय दिया था। दलोंमें १० दिन तक भारी युद्ध हुआ, परन्तु सहसा १७७२ ईमें झण्डासिंहने लहनासिंह आदि गण्डासिंहकी मृत्यु हो जानेसे युद्धको फल-मिल्पसिकहो सिखसरदारों के सहयोगसे पुनः मूलतान आक्रमण सकी। उनके पुत्र देशासिंह नाबालिग थे, मत मतीजे किया और वहांके शासनकर्ता और दाऊद पुत्रोको चरत्सिंहने अधिनायकता ग्रहण की । इस युद्ध में शत्नुर्ने पराजित कर मुलतान प्रदेश अपनेमें बांट कर के हाथसे वरत्सिंहको मृत्यु होने पर भङ्गी दल छामङ्ग दोघानसिंहको किलेदार बना दिया। मूलतानसे होकर पठानकोट छोड़ गया। ब्बैट कर इन्होंने बेलूच प्रदेश, झङ्ग, मानखेड़ा और काल अमृतसरमें जा कर भङ्गो-दलने बालक. देशासिंहको बाग अधिकार किया। उसके बाद वे अमृतसर देखने । अपना सरदार घोषित किया । कीर हरिसिंह और गाएका गरे, तो वहां भङ्गो किला * और एक बाजार बसा गये। सिंह द्वारा परिचालित भङ्गि-सेना और सारबारमाण फिर रामनगरकी तरफ अग्रसर हो कर इन्होंने छह लोगोंसे क्रमशः बालककी अधीनताकी उपेक्षा करते हुए साधीन प्रसिद्ध जमजमा ' नामक तोप पर कब्जा किया । जम्मूके होनेके चेष्टा करने लगे। १७७७ ई० में मूलतानके राजा सुको किया सरदार चरसिह और कन्हियापति जयसिंह प्रजराजवेषके पक्ष में हो कर उनके विपक्ष आचरण करने ना अपने ही एक सैनिकसे मृत्यु हुई थी। + भण्डासिंहमे नन्दसिंह नामक एक मिसनदासको पठान

  • लोन-मयडीके पीछे अब भी उस ध्वंसावशिष्ठ किलेका | कोट दिया था। उसकी विधवा स्त्रीने तारासिंह कहियाको अपनी

चिह पाया जाता है। कन्या समर्पित की थी। इसलिए, शीघ्र ही वह सम्पत्ति जमाई के साथ +अंग्रेज-सेनापति सर हेनरी हाडिखने १८४५ ईमें फिरोज लगी। मनीकी सम्पत्ति कनहियाओं के हाथ मते, देख कर माता शहरके युद्धमें यह तोप प्राप्त की थी। लाहोरके :सेन्टूर-म्युजियमके | सरदारने उसे लौटा देनेको कहा। इसी सबसे दोनों में विवादो सामनेके दरखाने पर अब भी वह रखी गई है। गया। Vol. xv, 174