पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७०१

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पितृसिंहासन प्राप्त किया। परन्तु मिसल-परिचालना- परिचयोंसे साहिबसिंहकी वीरत्वप्रभा किसी समय का भार उनकी माता और मुसम्मात सुखान पर दिया समप्र पजाबप्रदेशमें विभासित हो गई थी। परन्तु गया। भङ्गियोंके अमृतसर-दुर्गकी अभिलाषासे रणजित्- धीरे धीरे घोर मदिरासक्त होकर वे इतने निकम्मे बन सिंह विवादके लिए छिद्रान्वेषण करने लगे। आखिर गये कि उनका उद्यम, साहस, वीरत्व आदि एक साथ अमजमा तोप मांगी, और उसके न मिलने पर भङ्गी-दुर्ग ही लुप्त हो गया। प्रतिद्वन्द्वी सामन्त और सरदारों के पर धावा बोल दिया। भङ्गी-सेनादल ५ घण्टा तक युद्ध विरोधी हो कर वे अपना ही वल घटाने लगे। रणजित् करनेके बाद रणमें भंग डाल कर भाग गया। रानीमाता सिंहने मौका समझ उनको समस्त सम्पत्ति पर आक्रमण निरुपाय देख कर पुत्र गुरुदोतको ले रामगढ़ भाग गई । किया और उनका सर्वस्व अपने नव-साम्राज्यमें मिला ( १८०२ ई०)। लिया । १८१० ई० में साहिबसिंहकी माता लछमीमाई- लाहोर विजयके बाद गूजरसिंहने दलयल साहत की प्रार्थना पर रणजिसिंहने उनके भरणपोषणके लिए उत्तरकी ओर प्रस्थान किया। उनकी वीर-बाहिनीने साहिबसिंहको एक लाख रुपयेकी जागीर दे दी। मुल- विशेष उद्यमके साथ एक एक कर क्रमशः गुजरात, जम्मू, तान-विजयके बाद, उन्होने उक्त महात्माका तान-विजयके बाद, उन्होंने उक्त महात्माको बिधवा पत्नी इसलामगढ़, पञ्च और देव भताला, गरुड़, भीमवेर और दयाकुमारो और रतनकुमारीके साथ चादरान्दजी-प्रथासे माझा प्रदेश अधिकारपूर्वक लूटे। बादमें भक्करोंके विवाह किया। गूजरसिंहके कनिष्ठ पुतने कपूरथलाके प्रसिद्ध रोहतास (रोटस ) दुर्गको जीत कर अपना अहलूवलिया सरदारके अधीन कर्मप्रहण किया। उनके प्रसिद्धि की। इनके मध्यमपुत्र साहबसिंहके साथ एकमात्र वंशधर जयमल्लसिंहने पितृसम्पत्तिसे पञ्चित शुकेर्चिकिया चरतसिंहकी कन्या राजकौरका विवाह रह कर रामगढ़में जीवन विताया। इस प्रकार पक्षाव- हुआ। ज्येष्ठपुत्र सूखासिंह पिताके साथ कलहमें मारे केशरी रणजिसिंहके अभ्युदयसे यह महाप्रभावशाली गये और मध्यमपुत्र अपने साले महासिंहके लिए पिता भङ्गीसम्प्रदाय छत्रभङ्ग हो कर लोपको प्राप्ति हुआ। अपमान करनेके कारण पितस्नेहसे वश्चित रहे। वद्ध भडी.. उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-भारतवासी एक निकष्ट गूजरसिंह अन्तमें कनिष्ठ फतेसिंहको अपनी सम्पत्तिका जाति । भाड़,दारीका काम ही इनका जातीय व्यवसाय उत्तराधिकारी स्थिर कर लाहोर लौट आये। वहां १८८८ है। इस जातिको उत्पत्तिके विषयमें विशेष मतभेद है। कोई ई० में उनकी मृत्यु हुई। कोई मेहतर, चण्डाल वा डोमसे इस जातिको उत्पत्ति ___ अब पितृ-सम्पसिके लिए दोनों भाइयोंमें विवाद मानते हैं। मुसलमानोंके अधिकारमें ये लोग मेहतर, उपस्थित होते देख, महासिंहने फतेसिंहका पक्ष लिया। हलालखोर, खाकरोंब, दाहरवाला, मुसल्ली आदि नामों- इस सूत्रमें साले बहनोई दोनों में झगड़ा उठ खड़ा हुआ। से पुकारे जाते थे। पाबप्रदेशके भङ्गी लोग छुहारा करीब २ वर्ष इसी प्रकार मनोमालिन्यमें बोतने पर, नामसे प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा लोलबेगी, शेख १७६२ ई० में दोनों शत्रुओंके हृदयोहोप्त अग्नि प्रज्वलित आदि स्वतन्त्र भङ्गियोंके धर्मसम्प्रदाय वा उनके प्रवर्तकों- हो उठी। महासिंहने दलसहित ओ कर सोधरादुर्गमें के नामसे पैदा हुए हैं। किसीका मत है कि, भङ्ग साहबसिंहको घेर लिया, परन्तु दैववशात् उनको मृत्यु पोनेके कारण इनका नाम भङ्गी पड़ा है। बनारसके होने पर भी भागियींकी ही विजय हुई। १७६८ में रहनेवाले झाड़ दारों का कहना है, कि 'सर्व भङ्ग अर्थात् जब शाह जमानने चौथी बार पञ्जाब पर आक्रमण किया, । सम्पूर्णरूपले हिन्दू समाजसे विज्युत, इस अथसे भगी तब भी इस सिखसम्प्रदायने विशेष रणनिपुणताका | नाम पड़ा है। परिचय दिया था। बनारसके लालबेगी लोग ४र्थ पाण्डव नकुलमें ही शाह अमानके भेजे हुए दुर्रानी सेनापति सहित ५ अपने पूर्व पुरुषकी कल्पना करते हैं। इस उद्देशकी हजार सेना नष्ट कर देने और अन्यान्य साहसिकताके सिद्धि के लिये उन्होंने पाण्डवका महाप्रस्थान, बादमें