पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७०२

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सीताको खोजमें रामचन्द्रके साथ नकुलक्का इस भंगीजातिकी हिन्दूशाखामें १३५६ और मुसल- साक्षात्कार, रामानुचर द्वारा नकुलकी पूजा, नकुल- मानशाखामें ४७ थोक हैं, ऐसी प्रसिद्धि पाई जाती है। का ब्राह्मणषध और चण्डाल-ख्याति तथा चण्डालरूपी उनमें बागड़ो, वाई, बाइसवार, बालकचमरिया, बडगूजर, मकुलको पापमुक्तिके लिए गुरुनानकका मस्यंगमन भदौरिया, विसेनशोव, बुन्देलिया, चमरिया, चन्देला, आदि विवध प्रसंगोंकी अवतारणा की है। जहां पर वह चौहान, छोपी, धेलफोड़, गदरिया, जादोन, यदुवंशी, चण्डाल ईश्वर-चिन्तामें रत था, वही स्थान चण्डाल जैसवार, जोगिया, कछवाह, कायस्थवंशी, किन्नर, सकर- गढ़ ( वर्तमान चुनार ) नामसे प्रसिद्ध हुआ । मुसलमान वार, टांक, ठाकुरवाई, तुर्किया, अन्तर्वेदी, विलखरिया, लोग उन्हें गद नामसे पुकारते हैं। उनका आस्थाना बनौध, बरनवार, भोजपुरी, रावत, गाजीपुरी-रावत, गदपहाड़ मुसलमान और भंगियों का पवित्र तीर्थ स्थान | जमालपुरिया, जमुनापारी, जनकपुरी, जौनपुरी, कानपुरी, कनपुरिया, काठोरिया, मंगलौरो, मुलतानी, नानकपुरी, उस चण्डालके कालू और जीवन नामके दो पुत्र थे। सैयदपुरी, शरिया, उज्जैनवाल, बदलान, पारलेग, कालूके वंशधर लोग डोम और चण्डाल कहलाये, तथा नानकशाही, चहिया, भिलौर, मचाल, देशवाल, गह- जोवनके वंशसे भंगियों की उत्पत्ति हुई । लालवेग लोत, सोद, वचनधार, भगवतिया, भोकर, चौहेला, नामक एक साधुपुरुषको कृपासे जीवनको ७ पुत्रों की चुनार, धकौलिया, गरौठिया, जघारे, जष्णुवली, नौरतन, प्राप्ति हुई । साधुपुरुषके कृपालब्ध होनेसे उसको सन्तान निरवानी, पानवाडी, फूलपानधार, राठी, रोलपाल, सेखा- परम्परा लालबेगो कहलाई । किम्बदन्ती इस प्रकार है-- वत, तरखारिया, चुतेले, कलावत, खरौतिया, कोठिया, माकिदन-वीर आलेकसन्दरके भारतमें किसी अभावनीय कौशिकिया, मथुरिया, पथरवाड, चुरेली पथरघोटी, कारणसे जीवनको उत्पीडित करने पर जोवन अपने दङ्कमर्दन, राजौरिया, गंगावनी, वरची, भूमियान, बसोर, पुत्रों सहित भागा। उसका प्रथम पुत्र प्रोक-चीर द्वारा डोमर, सूपभगत, औसियार, देशी डोम, वांसफोड और यधन-धर्ममें दीक्षित होने पर उसके वंशधर शेख वा तुरैहा इत्यादि शाखाएं ही प्रधान हैं। मुसलमान भंगी, द्वितीयका पुत्रगण रावतभंगी, तृतीय- इनमें हिन्दू और मुसलमानका निर्णय करना कठिन का वंश धानुक, चतुर्थ का वंश बांसफाड़, पञ्चमको है। लालवेगो और शेख-मेहतर लोग अपनेको हिन्दू वा सन्तान हेला, छठेकी सन्तति हाड़ी और सातवेंका वंश मुसलमान बतलाने पर भी मन्दिर या मसजिदमें प्रवेश लालबेगो नामले परिचित हुआ । इसके सिवा इनकी | नहीं कर पाते। धर्ममतके प्रभेदके कारण इनमें भी उत्पत्तिकी और भी अनेक किम्बदन्तियां हैं। थोड़ा बहुत मतपार्थक्य देखा जाता है। मजहबी नामके मगियों की उत्पत्तिके विषयों में जो आख्यान सुनने नानकशाहो लालयेगी भंगी शेख-मेहतरोंके साथ वैठ कर में भाते हैं, उनसे अनुमान होता है, कि यह झाड़ दार भोजन करते हैं। ये सभी हिन्दू और मुसलमानों का घंश पहले हिन्दू था, बादमें कोई कोई मुसलमानों के | जूठा खा सकते हैं। अपनेसे भिन श्रेणीमें ये अपक्व अधिकार-कालमें इसलामधर्म में दीक्षित हुआ है। यही द्रव्य ग्रहण करते हैं और अपनी श्रेणोमें कच्ची रसोई कारण है, कि इनके उपाख्यानों में हिन्दू और बौद्ध पुरा खानेमें कोई दोष नहीं मानते। मुसलमानो स्वक-छेदन णोक पाण्डव, दाल्मीकि, शिव, गोरक्षनाथ, मत्स्ये- ( सुन्नत ) कराते हैं और सूअरका मांस अस्पृश्य न्द्रनाथ, शर्कन्दनाथ आदि नाम और मुसलमान इतिहा- समझते हैं। हेल-भगी कुत्तों को महों छते । सोक्त गजनीराज, पीराण पोर, अबदुल कादेरजिलानी, लोलबेगी और शेख-मेहतर लोग अन्य हीन सम्प्रदायके सेखसरम आदिके प्रसंग पाये जाते हैं। लोगोंको अपनी श्रेणीमें मिला सकते हैं। ये लोग साधारणतः दूसरोंके मुर्दे को नहीं जलाते, परन्तु दिल्लीके .. एकएक थोको विषयमें ऐसे ही पृथक् आख्यान हैं। पश्चिममें रहनेवाले भंगी शवदाह और झाड़ वारके कामसे