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भङ्गीभीर दीक्षित-भजाना
वकलता।
अनुकरण करने पर भी उनके अन्य आचार व्यवहार | चैत्य (गुहामन्दिर)-का निदर्शन पाया जाता है।
प्रायः उत्तर पश्चिमभारतके भ'गियोंके अनुरूप हैं। भजक (सं० वि०) भजतीति भज-ण्वुल । १ भजनकारी,
भङ्गोभीर दीक्षित--सोमप्रयोग नामक ग्रन्थके प्रणेता। भजनेवाला । २ विभाजक, विभाग करनेवाला।
भङ्गील (स क्ल' ० ) शानेन्द्रियकी विकलता। भजग ( स० पु० ) रोमक सिद्धांत-वर्णित जनपदभेद ।
भङ्ग र (सं० वि० ) भज्यने स्वयमेवेति भन्ज ( भलभास- भजत् (सं० त्रि०) भजति विभजतीति वा भज-लट-शत् । १
भिदोघुरन् । पा ३।२।१६१ ) इति कर्मकर्तरि घुरच, घित्त्वात् भागकर्ता, विभाग करनेवाला। २ सेवक, भजन करने-
कुत्वमिति काशिका । १ स्वयं भञ्जनशील, नाश वाला।
वान् । २ कुटिल, टेढ़ा। (पु० ) ३ नदीका मोड़ या भजन (सं० क्ली०) भज-भावे ल्युट् । १ भाग, खंड । २ सेवा,
घुमाव ।
पूजा । वैष्णवोंका भजन साधनाका एक अङ्ग है । देवादि-
भङ्ग रा (सं० स्त्री० ) भंगुर-टाप् । १ अतिविषा, अतीस। के उद्देशसे जो गीत और स्तव किया जाता है, उसे
२ प्रियंगु।
| भजन कहते हैं । ३ बारवार किसो पूज्य या देवता आदि
भङ्ग रता (सं० स्त्री० ) भगुरस्य भावः तल टा" । भंगुर का नाम लेना, स्मरण ।
का भाव।
| भजनता ( सं० स्त्री० ) भजनस्य भावः तल-टाप । भजनका
भङ्ग रायन् ( म त्रि०) १ पापी, राक्षसादि । २ अनव- भाव या धर्म।
स्थिचित्तवृत्ति।
भजना (हिं० क्रि० ) १ सेवा करना। २ आश्रय लेना,
भङ्गोद-मन्द्राज प्रदेशके विशाखपत्तन जिलान्तर्गत एक आश्रित होना । ३ देवता आदिका नाम रटना । ४ भागना
भूमिभाग। यहां खोएडजातिका वास है। पहले यहां भाग जाना । ५ प्राप्त होना, पहुंचना।
नरबलि होती थी। विसंमकटक देखो।
भजनानन्द-. अद्वैतदर्पणके रचयिता। ये भुजाराम नामसे
भङ्गा (सं० को०) भङ्गाया भवनं क्षेत्रमिति भङ्ग (विभा- भी प्रसिद्ध थे।
पातिलमापामागङ्गागा-यः। पा ॥२॥४) इति पक्षे यत् । भजनानन्द (सं० पु० ) वह आनन्द जो परमेश्वरका नाम
१ भङ्ग क्षेत्र, वह ग्वेन जिसमें भांग होतो हो। (त्रि.)। स्मरण करनेसे प्राप्त होता है, भजनसे मिलनेवाला
भङ्गमहतोनि भङ्ग दतादित्वात् यन्। २ भङ्गाह, टूटने आनन्द ।
लायक।
भजनानन्दी ( स० पु० ) वह जो दिनरात भजन करनेमें
भड़ा-अयोध्याप्रदेशके बहराइच जिलान्तर्गत एक नगर। मस्त रहता हो, भजन गा कर सदा प्रसन्न रहनेवाला।
यह रातो और भाकला नदीके दोआवके ऊपर अवस्थित । भजनी ( हिं० पु. ) भजन गानेवाला।
है। इसके चारों ओर विस्तीर्ण आम्रवन है। भजनीय , सं० वि०) भज-अनोयर । १ भजनयोग्य, विभाग
भचक ( हिं० स्त्रो०) भचक कर चलनेका भाव, लंगड़ा करने लायक । २ सेवनीय, सेवा करने लायक । ३ आश्रय
पन ।
लेने योग्य ।
भवकना ( हिं० क्रि० ) १ आश्चर्यमें निमग्न हो कर रह भजमान (सं० त्रि०) भजते फलमनुवनानतीति भज-ताच्छि-
जाना। २ चलनेके समय पैरका इस प्रकार रुक कर ल्पवयोयचनशक्तिषु चानश् । पा १।२।१२६) इति आनश,
या टेढा पड़नः कि देखनेमें लंगड़ापन मालूम हो। शानज् वा । १ न्याय। २ न्यायागत द्रष्यादि । ३ भज-
भचक्र (स० को०) भाणां राशीनां चक्र १ राशिचक ।२ कर्तरि शानच। ३ विभागकारी, भाग करनेवाला।
नक्षत्रचक्र। ३ नक्षत्रसमूह ।
४ सेवक, सेवा करनेवाला । पु०) सास्वतनृपके एक
भज--पश्चिमघाट पर्वतमालाके अन्तर्गत एक प्राचीन पुत्रका नाम । ( भाग० ६।२४।६)
स्थान। यह भोरघानसे दो कोस दक्षिण में अवस्थित भजाना (हिं० कि० ) १ दौड़ना, भागना। २ भगाना,
है। यहां पर ईसा जन्मके पहलेके बने हुए एक प्राचीन दूर कर देना।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७०६
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