पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७१

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फर्रुखाबाद (फरकाबाद) कोशिशसे बादशाह रोगमुक्त हुए और शीघ्र ही महा प्राचीन कन्नोजराज्य इस जिलेके अन्तर्मुक्त होनेके समारोहसे राजपूतवालाके साथ उनका परिणयकार्य कारण यह स्थान प्रत्नतत्त्वविदोंका हृदयग्राही हुआ है। सम्पन्न हुआ। । १७१६ ई०में ) अङ्गरेज-चिकित्सकके। कान्यकुम देखो। वर्तमान फरुखाबाद नगर मुसलमान प्रार्थनानुसार अगरेजवणिकने बादशाहसे बङ्गालमें बेरोक- राजाओंके समय बसाया गया। नगरके भीतर टोक वाणिज्य करनेका फरमान और ३७ ग्राम खरीदनेकी और बाहर स्थति-विद्या ( भग्नावशेष अट्टालि- अनुमति पाई थी। इधर सैयद भाइयोंके साथ उनका कादिके )-के जो सब निदर्शन देखनेमें आते हैं, विरोध घोरे धीरे बढ़ता जा रहा था। अबदुल्ला वे मुसलमानी ढंग पर बने हुए हैं। वर्तमानकालमें हुसेन अलीको दिल्ली आनेके लिये बार बार पत्र लिखा गङ्गासे २ कोस(१) दूर कालीनदीके वामकूल पर करते थे । अजितसिंह आदि बड़े बड़े मनुष्य बादशाहके फर्रुखाबादनगर वसा हुआ था । प्राचीन नगरके ध्वंसा- सहायक थे। यदि ये चाहते, तो कब उस कण्टकको वशेषमें प्रायः ५ ग्राम विस्तृत है। चारों ओर ईटोंकी दूर कर सकते थे। पर अपनी निबुद्धिता और अल । दीवार पड़ी हुई हैं। यहांके लोग उस ध्वंसस्तूपमेसे सतासे उन्होंने ऐसा किया नहीं, जिससे पीछे उन्हें हाथ ईट ले कर अपना घर द्वार बनाते हैं। प्राचीन नगरकी मल मल कर रहना पड़ा। हुसेन भाईके साथ आ मिले। गौरव कीर्ति धीरे धीरे लोप होती जा रही है। दोनोंके कौशलसे अनुचरों ने राजान्तःपुरसे बादशाहको हिन्दूकीत्तियों में एक मात्र राजा अजयपालका बाहर कर उनकी दोनों आंखें निकल लों और पीछे उन्हें पवित्र क्षेत्र देखने लायक है । आज भी बहुत सी मुस. कारगारमें कैद कर रखा (१७१६ ई०की १८वीं फरवरी)। लमानकीर्तियां विद्यमान हैं। दोनों सैयद भाइयोंने तैमुरवंशीय एक बालकको वादशाह गुप्तराजाओं ने ३१ से ५७५ ई० तक इस स्थानका खड़ा कर ११३१ हिजरी, ६ रजब ( १७१६ ई० १६वीं मई) शासन किया था। उनकी प्रचलित मुद्रा और अपरापर को नृशंसरूपसे फरुखसियरके प्राण ले लिये। दिल्लोस्थ कीर्तिस्तम्भ आज भी इस जिलेके मध्य इधर उधर पड़े हुमायुनके समाधिमन्दिरमें उनकी कब्र हुई। सैयदोंने दिखाई देते हैं। भारजाति ही यहांको आदिम अधिवासी पहले जिस बालकको बादशाही दी थी, उसका नाम था है। ठाकुरव शधर उनका उच्छे दसाधन करके आर्य रफी उद् दर्जात । उपनिवेश बसा गये हैं। कन्नोजराज जयचांदके अधि फरुखाबाद (फरक्काबाद)-युक्त प्रदेशके आगरा विभाग- कारकालमें कालीनदीका दक्षिणांश लोगों से परिपूर्ण का एक जिला । यह अक्षा० २६ ५६ से २७ ४३ उ० हो गया। मुसलमान कर्तृक तुवर राजाओं के पराजित और देशा० ७ से ८०१ पू०के मध्य अवस्थित है। होनेके बहुत बाद इसका उत्तरांश वर्तमान अधिवासि भूपरिमाण १६८५ वर्गमील है । इसके उत्तरमें शाहजहान- यो के हाथ लगा । १८वीं शताब्दीमें फर्रुखाबादके नवाब पुर और बदाऊँ, पूर्व में हरदोई जिला, दक्षिणमें कानपुर ही यहांके सर्वमय कर्ता हुए। १७५१ ई०में रोहिला- और पतावा तथा पश्चिममें मैनपुरी और एटा है। फते- सरदार अली महम्मदको मृत्यु हुई। सम्राट्ने हाफिज- गढ़ नगर इसका विचार-विभागीय सदर है, किन्तु गङ्गाके रहमत-खांको अलीका उत्तराधिकारी कबूल नहीं किया। पश्चिम कूलवत्ती फर्रुखाबाद नगरमें ही लोगोंका वास सम्राटके आदेशसे फरुखाबादके नवाब दलबलके साथ अधिक है। हाफिजको दमन करनेके लिये अग्रसर हुए। युद्धमें दोआबके मध्यभागमें यह जिला अवस्थित है। नवाब साहब पराजित और निहत हुए। इसी समय मध्यभाग और भागोंसे निम्न है। इस कारण प्रति वर्ष अयोध्याके वजीर सफदर जङ्गन्ने फरुखाबादको लूटा, इस बाढ़से यह स्थान जलमग्न हो जाता है । गङ्गाके तीर कारण फरकावादी रोहिला और वरेलीके दलमें एकस वत्ती भूमि पर पंक पड़ जानेके कारण फसल अच्छो लगती है। शेष सभी स्थान जगलसे पूर्ण है। (१) पहले गंगा नदी फरुखाबाद निम्न हो कर पहती थी। Vol. xv. 17