पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७२३

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भद्रधास्वामी ७१७ और उपनयन संस्कार काराया। एक दिन बालक भद्र- निद भङ्ग होने पर उनका हृदय बहुत ही उद्वेलित हो बाहु अपने साथियोंके साथ कोड़ा कर रहे थे, कि उसी उठा। किसी प्रकार भी उनका चित्त स्थिर नहीं हुआ। समय महामुनि गोवद्ध नस्वामी, नन्दिमित्र और अपरा. प्रातः कृत्यादि-सम्पन्न करके वे मन्त्रणागृहमें चुपचाप .जित नामक चार श्रुतिकेवली ५ सौ शिष्योंके साथ जा बैठे। इतनेमें प्रतिहाराने आ कर संवाद दिया कि, जम्बूस्वामीके समाधि-सन्दर्शनको काटिकपुर आये | भद्रबाहुमुनि नाना दिग्देशोंमें परिभ्रमण करते हुए राजो महामुनि गोवद्धनने बालक भद्रबाहके शभनिनों को देख द्यानमें आ पहचे हैं। राजा अमात्यवर्ग से परिवृत हो कर अनुमान किया कि यहो बालक अन्तिम श्रुतिकेवली कर मुनिके समीप उपस्थित हुए । राजाको अभिवन्दनासे होगा। अतएव इसके लिए शिक्षाविधानको आवश्य- मन्तुष्ट हो कर मुनिश्री ने उन्हें धर्मापदेश दिया। तद. कता है। ऐसा विचार कर वे बालकका हाथ पकड़ न्तर राजाने अपने १६ स्वप्नोंका हाल सुनाया, जिनका कर उसे सोमशर्माके पास ले गये और बालकको शिक्षा फल मुनिने इस प्रकार कहा, १सम्यग्यान तमसाच्छन्न का भार अपने ऊपर लेनेका अभिप्राय प्रकट किया। होगा, २ जैनधर्मकी अवनति होगी और तुम्हारे वंशधर- पिताको पहले से ही मालूम था कि पुत्र जैनधर्मका प्रचा- गण सिंहासन पर बैठे हुए ही दीक्षा ग्रहण करेंगे, ३ रक होगा। गोवद्ध नस्वामीके शुभागमनसे उनके हृदय देवतागण अब भारतवर्ष में नहीं आवेंगे, ४ जैनगण में पूर्वस्मृति जाग उठी। उन्होंने गद्गद् कण्ठसे प्रणनि- विभिन्न सम्प्रदायोंमें विभक्त हो जायगे, ५ वर्षाके मेघ पूर्वक आचार्यवरकी आज्ञा स्वीकार की। परन्तु माता जलचर्षण न करेंगे और उसी अनावृष्टिके कारण शस्यादि- सोमश्रीने दीक्षाके पहले एक बार पुत्रदर्शनको प्रार्थना की उत्पत्ति नहीं होगी, ६ सत्यज्ञान लोपको प्राप्त होगा की थी। दोनों के वाक्य और सम्मनिसे संतुष्ट हाँ कर और कई एक क्षाणज्योतिः इतस्ततः विकीर्ण होगी, ७ गोवद्ध नस्वामी भद्रबाहुको ले कर अक्षश्रावकके घर आर्यखण्डमे जैनधर्मका प्रसार नहुलतासे न होगा, ८ पहुंचे और वहां उनके अवस्थान, भाजन और अध्ययन-: असतको प्रतिष्ठा और मनका लोप होगा, ६ लक्ष्मी की व्यवस्था कर दी। निम्नगामिनी होगी, १० राजा राजस्वके षष्टांशसे तृप्त न स्वामीजीके तत्वावधानमें रह कर भद्रबाहुने शीघ ही हो कर अलोलुप होंगे और अधिक लाभको आशासे योगिनी, सङ्गिनी, प्रज्ञा और प्रशस्ति नामक वेदोंके चारों प्रजाकी पीड़ावृद्धि करेंगे, ११ मनुष्य यौवनवस्थामें धर्म- अनुयोग, व्याकरण और चतुर्दश विज्ञानका अभ्यास कर प्राण हो कर वाद्ध क्यमें सब कुछ बिसर्जन कर देंगे, लिया। ज्ञान मार्गमें जितना ही वे अप्रसर होने लगे, १२ उच्चवंशीय राजा नीचा के सहवाससे कलुषित होंगे, उतना ही उन्हें सांसारिक विषयोंसे विरक्ति बढ़ने लगी। १३ नीच उच्चको नएभष्ट कर समता प्रतिपादनका प्रयास दीक्षाग्रहणके बाद वे यथाक्रमसे ज्ञान, ध्यान, तप और करेंगे, १४ राजागण अयथा कर ग्रहण कर प्रजाको संयमादिमें अभ्यस्त हो कर आचार्यों में परिगणित हो दुदशा ग्रस्त करेंगे, १५ निम्नश्रेणाके मनुष्य अन्तःसार- गये। इनके आचार्यपद प्राप्त करनेके वाद गोवर्द्धन श्रुतिकेवलीका तिरोधान हुआ। दे रहे हैं, ७ एक तालाब सूखा पड़ा है, ८ आकाश धूमाच्छन्न . एक दिन पाटलिपुत्रके राजा चन्द गुप्तने कार्तिकको हो गया है, ६ बानर सिंहासन पर बैठा हुआ है, १० वर्णपात्रमें पूर्णिमा रात्रिको निद्राके आवेशमें १६ स्वप्न देखे *। कुक्कुर खीर खा रहे है, ११ बैल लड़ रहे हैं, १२ क्षत्रिय गधे पर भ्रमण कर रहे हैं, १३ वानर मरालोको भगा रहे हैं, १४ ___* १ सूर्य अस्त हो रहे हैं, २ कल्पवृक्षकी शाखा टूट कर गायके बछड़े समुद्र में कृद रहे हैं, १५ फरुपान्न वृद्ध बैलोको मार गिर पड़ी है, ३ स्वर्गीय रथ शून्यमें अवतीर्ण हुआ है और रहे हैं और १६ एक सर्प बाहर फोंको फैला कर अग्रसर हा रहा ऊपरको जा रहा है, ४ चन्द्रमण्डल मानो इतस्ततः भिन्न हो गया है। चन्द्रगुप्त देखो। है, ५ दो काले हाथी लड़ रहे हैं, ६ ऊषालोकमें खद्योत दीप्ति दिगम्बर मतानुसार १४ स्वप्न देखे थे । Vol. xv. 180