पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७२९

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भद्राव-भद्रिका ७२३ स्वाभाविक योगेश्वर्यको धारण करते हैं। इसके सिवा । भद्रशालयनसे सुशोभित यह वर्ष अवस्थित है। यहांके उक्त स्थानमें चार उत्कृष्ट उद्यान भी हैं, जिनका नाम पुरुष श्व तवर्ण और स्त्रियां कुमुदवा हैं। इस वर्षमु । नन्दन, चैत्ररथ, वैभाजक और सातोभद्र है । इन उपवनों शैलवर्ण पर्वत, मालापर्वात, वरजस्व, त्रिपर्ण और नील + में प्रधान देवगण और उत्तमा रमणोगण विहार करती नामक ५ कुलपर्णत हैं। यहां सीता, सुवाहिनी, हंस- वती, कावेरी, मुरसा, शाखावली, इन्द्रनदी, अङ्गनरवाहिनी,

मंदर पर्वत पर देवचूत नामक एक वृक्ष है, जो ग्यारह हरितोया, सोमावर्ता, शतहदा, वनमाली, वसुमती,

सौ योजन ऊंचा और सर्वदा भूरि भूरि अमृततुल्य फलों हंसा, पर्णा, पञ्चाङ्ग, धनुष्मती, मगिवा, सुब्रह्मभागा, से सुशोभित रहता है । ये फल पर्वतशृङ्गके समान विलासिनो, कृष्णतोया, पुण्योदा, नागवती, शिवा, शैवा. स्थूल और अपने आप गिरते हैं। उन फलोंके रमसे एक लिनो, मणितटा, क्षीरोदा, वरुणावती, विष्णुपदी, महा- अरुणोदा नामक नदो उत्पन्न हुई है, जो मंदरपर्वतके शिखर नदो, हिरण्यस्कन्धवाहा, सुरावती, वामोदा आदि प्रधान से निकाल कर पूर्वको आर इलायत वर्ष तक विस्तृत है। नदियां हैं, तथा इनके सिवा बहुत मी छोटी छोटी नदियां इस नदीका जल सेवन करनेसे भवानोकी अनुचरी यक्षाङ्ग- भी हैं। ( बराहपु . ) नाओंके अङ्ग सुगन्धित होते हैं। पवन इस सुगंधको दश २ सह्याद्रिखण्डोक्त पांच राजा। (सह्याद्रिख० ३३। योजन फैलाती है। इसी प्रकार जम्बूफलोंके रमसे जम्बू ४४, ७७, ६५, १४० १५३ ) नदीको उत्पत्ति हुई है। यह नदो मेरुमन्दरके शिखरसे भद्रासन ( स० क्ली । भदाय लोकहिताय आस्यते आस- निकल कर अयुत योजन अन्तरमें पृथिवी पर गिरी है, आधारे ल्युट ! १ नृपासन, राजासन, अभिषेकके समय जिससे समग्र इलाव नवर्ष ध्याप्त हो रहा है। राजाको जिस आसन पर बिठा कर अभिषेक किया जाता - इस नदीके दोनों किनारेको मिट्टो प्रवाहित जल और है, उसे भद्रासन कहते हैं। वृहत्संहितामें लिखा है,- रससे अनुविद्ध हो कर वायु और सूयके संयोगसे प्रशस्त लक्षण युक्त वृषचर्ग पूर्वाको ओर दे कर उस पर विशेष पाकको प्राप्त हुई है, जिससे जम्बूनद नामक सुवर्ण सिंह और वृषचर्मका आस्तरण करना चाहिए, फिर उस उत्पन्न हुआ है। पर कनक, रजत और ताम्र द्वारा प्रस्तुत आसन वा क्षीर- सुपार्शापर्वतके पार्श्व देशमें महाकदम्य नामका जो तरुनिर्मित आसन रखना चाहिए। यह आसन तोन प्रकाण्ड कदम्यतरु है, उसके कोटरोंसे पांच मधु-धाराए प्रकार परिमाणविशिष्ट होता है . एकहस्त प्रमाण, पादा- निकली हैं, जो उस पर्वतके शिखरदेशको निषिक्त करती धिक एकहस्त-प्रमाण और डेढ़ हस्त प्रमाण । इस प्रकार- हुई पश्चिममें अपनी सुगन्ध द्वारा इलावृतवर्षको आमो का आसन भद्रासन कहलाता है। दित कर रही हैं। कुमुदपर्वत पर शतवर्ण नामक जो . २ तन्त्रसारोक्त योगियोंका एक आसन। दोनों एक विस्तीर्ण वट-विटपी है, उसके स्कन्धसे अधोमुख । गुल्फोंको स्थिर कर उन्हें सीवनीके पाव में रखनेसे यह उक्त पर्वतके अग्रभागसे दधि, दुग्ध, घृत, मधु, गुड़, अन्न आसन बन जाता है। तथा वसन भूषण शयन आसनादि समस्त अभिलषित । ३ वासगृह, वह घर जिसमें वास किया जाता है, वस्तुओंको देनेवाले नद निकले हैं। इसलिये यहांके रहनेका घर। वास्तु देखो। लोगोंको कभी अङ्गठौकल्य, क्लान्ति, धर्म, जरा, रोग, अप- भद्राह ( स० क्ली० ) भद्र अहः कर्मधा० । पुण्याह, पुण्य मृत्यु, शीत वा उष्णजन्य वैवण्यं तथा अन्यान्य उपसर्ग। दिन । नहीं सहने पड़ते। वे यावजोवन केवल सुख-सम्भोगमें भद्रि---अयोध्याप्रदेशके प्रतापगढ़ जिलेका एक नगर । ही काल व्यतीत करते हैं। ( भागवत० ५।१६ अ०) यहां एक प्राचीन दुर्गका ध्वंसावशेष देखा.. जाता है। बराहपुराणके मतसे यह जम्बूद्वीपके अन्तर्गत नव भद्रिका ( स. स्त्रो०) भद्रा स्वार्थे कन् टाप् । १ भद्रा- वोंमें एक वर्ष है। माल्यवान् पर्वतके पूर्वपार्श्व में | तिथि। २ योगिनी दशान्तर्गत पञ्चमी दशा। . .