पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७३३

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भयवाद-भर ७२७ वाला । कर हो मान ले और जिसका निर्णय किसी दूसरेको न भय्य ( स० क्लो०) भी-भावे यत्, वेदे मिपातनात् साधुः। करना पड़ा हो। भय, डर । भयवाद ( हिं० पु. एक ही गोत्र या बंशके लोग, भाई- भय्या ( हि.पु. ) भैया देखो। बन्द। २ बिरादरीका आदमी, सजातीय । भर ( स० वि० ) भरतीति भृ-पचाय च। १ अतिशय, भयव्यूह ( स० पु० ) भये सति व्यूहः । राजाओंका. बहुत। २ भरणकर्ता, भरणपोषण करनेकाला। (पु०) व्यूहभेद । युद्धकालमें भयव्यूह रचना चाहिये, क्योंकि ३ भार, बोझ । ४ संग्राम । ५ दो सौ पलका एक परि- भय उपस्थित होने पर इस व्यूहमें आश्रय ले कर प्राण- माण। रक्षा की जा सकती है। व्यूह देखो। भर ( हिं० पु० ) १ भार, बोझ। २ पुष्टि, मोटाई । (वि०) भयहरण ( स०नि०) भयका नाश करनेवाला, भय दूर ३ कुल, पूरा, तमाम । करनेवाला । भर-युक्तप्रदेश, अयोध्या और पश्चिम बङ्गाल-वास भयहारी ( हिं० वि० ) डर छुड़ानेवाला, डर दूर करने- निम्नश्रेणीको एक क्षत्रिय जाति । जातितत्त्वविगण इस जातिको द्राविडोय शाखाके अन्तर्गत समझते हैं । भया ( स० स्त्री० ) एक राक्षसी जो कालकी बहन और इस जातिके लोग साधारणतः राजभर, भरत वा भरत- हेतिकी स्त्री थी। विद्युत्श इसीके गर्भसे उत्पन्न पुत्र नामसे परिचित होते हैं। हुआ था। इस जातिको उत्पत्तिके सम्बन्धमें नाना स्थानोंमें भयाकुल ( स० पु०) भयरी प्याकुल, डरसे घबराया : नाना प्रकारको किम्बदन्तियां प्रसिद्ध हैं। सामाजिक हुआ। और कौलिक आचारादिमें समुन्नत हो कर ये क्रमशः भयातिसार ( स० पु० ) अतिसारका एक भेद । इसमें उच्चश्रेणोके हिंदू समझे जाने लगे हैं। कोई कोई कहते केवल भयके कारण दस्त आने लगते हैं। । हैं, कि ये क्षत्रियराज भरद्वाजके वंशधर हैं। अयोध्या भयातुर ( स० त्रि०) भयातुर, डरसे घबराया हुआ। . और युद्धप्रदेशके भरोका कहना है, कि, उनके पूर्वपुरुष भयानक ( स० पु०) विभेत्यस्मादिति भी-( शीङ् भियः। अयोध्याके पूर्वाशमें राज्य करते थे। अयोध्याके उस उण् ।८२ ) इति आनक। १ व्याघ, वाघ । २ राहु। ३ शृङ्गारादि आठ रसोंके अन्तर्गत छठा रस। इसमें * अनार्य आवृति-विशिष्ट इस जातिन किसी समय भारतक्षेत्रमें भीषण दृश्यों (जैसे-पृथ्वीके हिलने वा फटने, समुद्रमें प्रतिष्ठा प्राप्त की थी, इसका काई विशेष प्रमाण नहीं मिलता। तूफान माने आदि ) का वर्णन होता है। इसका वर्ण पुराणादिमें भी इस भर जातिकी प्रतिष्ठाका कोई उल्लेख नहीं है। श्याम, अधिष्ठाता देवता यम, आलम्बन भयङ्कर दर्शन, जातितत्त्वविदोंका अनुमान है कि, यह जाति टलेभी द्वारा वर्णित उद्दीपन उसके घोर कर्म और अनुभाव कंप, स्वेद, वरई (hurrhti) वा प्लिनीकी उवारी ( Uharae) होगी। रोमामादि माने गये हैं। जुगुप्सा, वेग, संमोह, किन्हींने ब्रह्मपराण-वर्णित जयध्वज वंशावतंश भारतोंको अथवा संवास, ग्लानि, दीनता, शङ्का, अपस्मार, भ्रान्ति और ' महाभारतोक्त भीमसेन द्वारा पराजित भर्गजातिको वर्तमान मृत्यु भादि इस रसके व्यवभिचारिभाव हैं। भरजातिका पूर्वपुरुष माना है। और कोई कोई कहते हैं, कि (त्रि.) भयङ्कर, डरावना।। पार्वतीय भरत ( शबर बर्बर आदि ) जातिसे भरजातिका मभ्यु- भयापह (सं. पु०) भयंअपहन्तीति हन् (अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते । दय स्वीकार करते हैं। शेरिंग सा०ने लिखा है कि हिन्दूशास्त्रों- पा ११२।१०३) इति । १ राजा। त्रि०) २ भयनाशक । में दस्यु और असुर शब्दसे अनार्य जातिका उल्लेख हुमा है। भयावह ( स० लि०) आवहतीति आ-वह अच् भयस्य। अनार्य द्वारा विताड़ित हो कर आर्योका इतस्ततः गमन और उप- भावहः। भयङ्कर, डरावना। वेशन स्थापन उनाव प्रदेशके इतिहास-वर्णित कनकसेनका पराभव भयाबहा.(सस्त्री०)रात्रि, रात । और पलायन उसका समर्थन कर रहा है। .