पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७४०

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भरतपुवक-भरतपुर ये सब दल बांध कर रहना पसन्द करते हैं। यूरो- इस राज्यमें ऐसी एक भी नदी नहीं जिसमें नाव पीय 'स्काईलार्क में जो सब गुण पाये जाते हैं, भारतके आ जा सके। वाणगङ्ग वा उत्सङ्गन, रूपरेल, गम्भीरा भरतपक्षीमें उन सब गुणोंका अभाव नहीं है । शीतकालमें और काकन्द नामक नदी प्रधान हैं । जब कभी इन नदियों में धानके खेतोंमें ये असर पाये जाते हैं। ये अनाजके | बाढ़ जाती है, उस समय भी पैदल पार कर सकते हैं। कन और कीड़े मकोड़े को खाना बहुत पसन्द करते हैं। . बाणगङ्गानदी भरतपुरके मध्य हो कर बह गई है। इस भरतपुत्रक (सपु०) भरतम्य नाट्यशास्त्रप्रणेतुः पुत्रकः । राज्यमें ७ शहर और १२९५ ग्राम लगते हैं। जनसंख्या नाटकमें नाटय करनेवाला परुष. नट । साढ़े छः लाखके करीब है जिनमेंसे सैकड़े पोछे ८१ भरतपुर--राजपुतानेके अन्तर्गत एक हिंदूराज्य । यह अक्षा० हिंदू १८ मुसलमान और शेषमें अन्यान्य जातियां हैं। २६४३ से २७५० उ० और देशा० ७६ ५३ से ७७°४६ यहांको भाषा बज है। पू०के मध्य विस्तृत है। भूपरिमाण १६४२ वर्गमील है। __इतिहास पढ़नेसे मालूम होता है, कि यहां एक समय इसके उत्तरमें अगरेजाधिकृत गुरुगांव जिला, पूर्व में मथुरा जाट लोगों ने अपना आधिपत्य फैलाया था । किन्तु और आगरा, दक्षिणमें ढोलपुर, कदौली और जयपुरराज्य यथार्थमें किस समयसे उन्होंने यहांका शासनदण्ड तथा पश्चिममें अलवारप्रदेश है। धारण किया था. इसका कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता • समुद्रपृष्ठसे इस स्थानकी ऊचाई प्रायः ६०० फुट है फिरिस्तामें लिखा है. कि गजनीपति महमूदके १०२६ ई. में सब जगह प्रायः समतल है, केवल उत्तर, दक्षिण, पूर्व। गुजरातसे लौटते समय जाट-दलने उन पर चढ़ाई कर दी। और पश्चिम सीमान्तदेशमें गण्डमालाके विराजित रहने- १३६७ ई०में दिल्ली आक्रमणकालमें तैमूरलङ्गने जाटदस्यु- से देशका प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बन आता है। सारा गणके साथ युद्ध किया। इस युद्ध में जाट लोग दल- स्थान पलिमय होने पर भी यहां वनमालाका अभाव नहीं बल समेत मारे गये। १५६६ ई में जार लोगोंने मुगल- है। वह पलिमय मट्टी कठिन और सखी है तथा कहीं सम्राट् बाबरको पञ्जावप्रदेशमें तंग तग कर दिया । जाट- कहीं मरुभूमि-सदृश बालुकाराशिसे परिपूर्ण है। देशीय सरदारोंके ऐसे उपद्रवसे उत्यक्त हो कर मुगल-सम्राटने अधिवासियोंके यत्नसे ऐसे स्थानमें भी प्रचुर शस्यादि । कठोर शासनसे उन्हें दमन किया था। किंतु औरङ्गजेब- उत्पन्न होता है। वृष्टिके समय बाढ़ इतनी उमड़ आती को मृत्युके बाद जब राज्यमें विप्लव खड़ा हुआ, तव है, कि भास पासके निम्नतम स्थान जलमग्न हो जाते हैं। जाट लोगोंने पुनः अपना मस्तक उठाया । इस समय जाट भरतपुर, फिरोजपुर, झलवार, गोपालगढ़ और सरदार चूडामनने मुगल-सम्राट आलमगीरके दाक्षि. पहाड़ी आदि स्थानोंके निकटवत्ती उत्तर दक्षिणमें विस्तृत णात्यगामी सेनादलको लूट कर मोटी रकम इकट्ठी की। गिरिमालाके कई एक शृङ्ग बहुत उन्नत हैं। कालापहाड़ उस रकमसे वे थुन, सिनसिनिवार और भरतपुरमें दुर्ग नामक पर्वतका आलिपुर शिखर (१३५१ फुट) भरतपुर- बना कर दलबल समेत आत्मरक्षा करनेको प्रस्तुत हुए । में सबसे ऊंचा है। अलावा इसके अलवारका छपरा उनकी इस प्रकारको वीरता पर प्रसन्न हो कर जाट १२२२ फुट, दमदमा १२१५, रसिया १०५६, मधोना लोगोंने उन्हें दलपति बनाया। उनके वंशघरोंने राजाकी ७१४ भौर उषेराटङ्ग ८१७ फुट ऊंचा है। उषेरामें उपाधिसे भूषित हो भरतपुर राज्यका शासन किया था। घंशी-पहाड़पुरका विख्यात पत्थर अवस्थित है। चूड़ामनके भाई बदनसिंहको प्ररोचनासे जाटदलने यहाँके पर्वतों पर गृहनिर्माणयोग्य पत्थरके अलावा अन्य चूड़ामनका प्रभुत्व त्याग दिया । उन लोगोंकी सहायता- कोई भी मूल्यवान् पत्थर नहीं है। मुगलबादशाहोंके से बदनसिहने 'ठाकुर'-की उपाधि प्रहण कर दोग नगरमें मागरा, दिल्ली और. फतेपुर-सिकरीके कोर्नस्तम्भ तथा स्वतन्त्र राजपाट बसाया। १७२० ई०में सम्राट मदम्मद शाह और कुतब-उल-मुल्क सैयद अवउल्ला खाँके युद्ध में मथुरा, दोग और भरतपुरकी अट्टालिकादि यहांके संगृहीत चूडामन मारे गये। पोछे उनके लड़के बदनसिंह भरत- प्रस्तर स्तवकसे बनाई गई हैं। पुरके सिंहासन पर बैठे।