पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७४१

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, भरतपुर ७३५ • बदनसिंहके पुत्र सूर्यमलके राजत्वकालमें भरतपुरका मृत्युके बाद सिन्दराजने इस राज्यको फतह किया। धीरत्व-गौरव चारों ओर फैल गया था। सूर्यमलने उन्होंने रणजित्को वयोवृद्ध माताके प्रार्थनानुसार उक जयपुर राज्यको सहायतासे दोगराज्य पर अधिकार सम्पत्ति पुनः उसे लौटा दी। अंगरेज सेनापति पोरों 'जमाया था। ! (General rerron )की मदद पहुंचानेके कारण भङ्ग १७३० ई०से भरतपुर-दुर्गकी दुर्भेद्यता और जाट रेजराजने पारितोषिक स्वरूप उन्हें तोन परगने दान सैनिकोंको वीरत्व-काहिनो विघोषित होती आ रही है। दिये। १७५४ ई० में सूर्य मल्लने अकेले वजीर गाजीउद्दीन, महा- उत्तर-भारतके मध्य एकमात्र रणजिसिंह हो एक राष्ट्र और जयपुरराजकी सेनावाहिनीको एकत्रित शक्तिको ऐसे थे जिन्होंने अगरेजोंके साथ मित्रता की थी। परास्त किया था। इस युद्ध में फिरसे जब उन्होंने अपने : लासवारीके युद्धमै सिन्द राजके साथ अङ्रेजोंकी जो अधिक बलक्षयकी सम्भावना देखी, तब ७ लाख रुपये दे . तलवार चलो थी उसमें रणजित् अश्वारोही सेनादलने कर मेल कर लिया। इसके ६ वर्ष बाद उन्होंने महा- लार्ड लेकको विशेष सहायता पहुंचाई थी। अङ्रेज- राष्ट्र-सेनापति शिवदास भावके साथ मिल कर अह्मद-: राज महाराष्ट्र युद्ध के प्रारम्भ ( १८०३ ई० ) में कृतज्ञता शाह दुराणोके विरुद्ध कृच किया। किन्तु महाराष्ट्र- स्वरूप उन्हें सात लाख रुपये राजस्वके पांच जिले दिये सेनापतिकी अवाध्यता और सेनापरिचालन शक्तिकी थे; किन्तु होलकर-राजके साथ अगरेजोंका जो युद्ध हुआ अकर्मण्यता देख कर वे लौट जानेको वाध्य हुए। था उसमें सहायताकी बात तो दूर रहे, वरन् उनसे शत्रुता ___ इधर पानीपतको लड़ाई में जब सभी उलझे हुए थे, ही की थी। होलकर सेनादलके लड़ाई में पीठ दिखाने उसी समय सूर्यामलने आगरेको अधिकार कर लिया, पर अगरेजी-सेनाने उनका पीछा किया। इस समय किन्तु उनके भाग्यमें इस सुख-राज्यका भोग अधिक दिन दोग-दुर्गमें रह कर उनकी सेना अङ्गरेजों पर न बदा था। १७६३ ईमें वे आक्रान्त और निहत हुए। गोला बरसाने लगो। भरतपुर-राजके ऐसे आचरणसे उनके पांच पुत्रों से तीनने यथाक्रम भरतपुरके सिंहासन- विरक्त हो लार्ड लेक दीगको अधिकार कर भरतपुरकी का सुशोभित किया । ३य पुत्र नवालसिंहके राजत्वकाल- ओर बढ़े। यहां उन्होंने जाट लोगों पर लगातार चार मेंउनके भतीजे रणजिसिंह बागी हो गये। रणजितके। बार आक्रमण कर दिया, किन्तु जाटसेनाका एक बाल मुगलसेनापात नजफ खाँसे मदद मांगने पर, नजफने भो बाँका न हुआ । उस दुद्धर्ण सेनादलके सामने ठहर कर आ कर आगरे पर अधिकार कर लिया। उन्हें अगरेजी सेनाको नगर प्राचीर भेदनेका साहस न हुआ। रोहिला-विद्रोह-दमनमें जाना था, इस कारण वेशी दिन इस युद्ध में अगरेजसेनापति पराजित और विशेष क्षति- हर न सकेनवालसिंहने भी मौका पाकर शव नजफ ग्रस्त हुए। इस समय कालूघोष नामक किसी बंगाली खाँके राज्य पर चढ़ाई कर दी। नजफको इसकी खबर कायस्थने अगरेजोंको ओरसे लड़ कर विशेष वोरताका लगते ही वे आगबबूला हो गये और रणजिसिंहको परिचय दिया था। कालुघोष देखा। साथ ले भरतपुर राज्य पर टूट पड़े। भरतपुर उनके ___ राजाकी जीत तो हुई, पर अंगरेजोंका डर उनके हाथ लगा, साथ साथ नगद रुपये भी काफो मिले। हृदयसे दूर नहीं हुआ था। अब दोनोंमें शान्ति स्थापन- भरतपुर-दुर्ग और ह लाखको सम्पत्ति रणजित्को मिलो के लिये सन्धिको बात छिड़ी। रणजित्सिंहने लडाईके और बाकी सभी स्थान नजफने अपना लिये। नजफको क्षतिपूरण स्वरूप अगरेजोंके हाथ दीगदुर्गको समर्पण किया। ___* सौभाग्य बलसे उन्होंने लौट कर दुराणीके हाथसे रक्षा १८०५ ई०में रणजित्की मृत्यु हुई। उनके बड़े लड़के पाई थी, नहीं तो पानीपतकी लड़ाई में महाराष्ट्र-सेनाके शिकार बन रणधीरने १८ वर्ष और पीछे मंझले बलदेवसिंहने १८ जाते। मास राज्य किया। बलदेवकी मृत्युके बाद उनके लड़के