पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७५१

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भरोच. परि नामक मुसलमानी इतिहास पढ़नेसे मालूम होता है, हास हुआ। १३९१-१५६२ ई० तक यह स्थान अहमदा कि अहमदनगरराज सुलतान बहादुरको आज्ञासे १५२६ / वादके मुसलमान राजवंशके अन्तर्भुत रहा । उसमेसे ईमें यहांका गढ़ और परिखा आदि निर्मित हुए थे। १५३४-३६ ई. दो वर्ष तक सम्राट हुमायूं का एक सेनापति . १६६०-६०में मुगल सम्राट औरङ्गजेबने नगर प्राचीर नए यहांका शासनकर्ता हुआ था। उस समय १५३६ और कर दिया था। इसके २५ वर्ष बाद मराठीसेनाके १५४६ ई०में पुसँगोजो'ने दो बार इस नगरको लूटा# 1 आक्रमणसे नगर-रक्षाके लिये उन्होंने फिर इस प्राचीरका १५७३ ई०में अहमदनगरके अन्तिम मुसलमानराज ३य मुज- पुनानम्माण कराया था। भूमिभागके प्राकारादि-कालक्रमसे फ्फरशाहने सम्राट अकबर शाहको भरोच सपुर्द किया। विलय हो गया है, यहां तक कि कहीं कहीं उसका चिह्न- दश वर्षे वाद मुजफ्फर स्वाधीन होने पर भी मोगल- मात्र भी नहीं है। नदोकी बाढ़से नगररक्षार्थ दक्षिणको राजके करायत्त हुए । १६१६ ईमें अगरेज वणिकोंने तथा भोर जो प्राचीर है वह प्रायः ४० फुट ऊंचा और १ १६१७में ओलन्दाज-वणिकोंने यहां कोठी खोलो । औरङ्ग- मोल लम्बा है। वह प्रस्तर प्राचीर अब भी पूर्णसंस्कारमें ! जेबके समय मुगलशक्ति हीन होती देख महाराष्ट्रोंने है। इसका कोई स्थान भंग नहीं हुआ है । इस प्राचीरमें १६१५ और १६८६ ई में इस स्थान पर आक्रमण किया पांच बड़े द्वार हैं। प्राचीरका उपविभाग ऐसा प्रशस्त और लूटा । दूसरी बार उनकी चढ़ाई के बाद सन्नाट औरङ्ग- है, कि इसके ऊपर आ जा सकते हैं। इस दीवारका जेबने इसके प्रकारादि पुनर्निर्माणको आशा दी। नगरक मध्यस्थल ६०से लेकर ८० फुट ऊंचा है। संस्कृत होनेसे उ होंने इसका सुखावाद नाम रखा था। किंवदन्ती इस प्रकार है, कि भृगु नामक एक महा- निजाम-उल-मुल्कने १७३६ ई०में भरोचके मुसलमान मुनि यहां वास करते थे। उन्होंके नामानुमार यह स्थान . शासनकर्ताको नयाबकी उपाधिसे भूपित किया। १७७१ भृगुपुर नामले ख्यात है *। ई०में विफलमनोरथ हो पुनः नव उनद्यमसे अंगरेजोंने १ली शताब्दीमें यह स्थान बरुगजा या बड़गज १७७२ ई०में भरोच बन्दरको दखल किया । १७८३ ई० में नामसे घोषित हुआ। उस समय यह नगर पश्चमी अंगरेजोंने सिन्देशजके हाथ इसे समर्पण कर फिर भारतमें एक प्रधान बन्दरगाह और राजधानीरूपमें परि. १८०३ ईमें छीन लिया। गणित था। रो शताब्दीके बाद यहां राजपूत राज- समद्रतीरवती इस भरुकच्छनगरने बहुत प्राचीन- वंशका राजपाट स्थापित हुआ । ७वों शताब्दीमें चीन- - कालसे वैदेशिक वाणिज्यमें विशेष उन्नति की थी। ईसा परिव्राजक यूएनचुअङ्गको वर्णनासे ज्ञात होता है, कि यहां जन्मके बहुत पहलेसे पश्चिम एशियाके साथ भारतीय १० बौद्धसङ्घाराम, १० मन्दिर और ३ सौ भिक्षु रहने वाणिज्यका संस्रव था । इस भरोच नगरसे पण्यद्रव्यादि- थे। इसके अद्ध शताब्दीके बाद भरोच नगरका समृद्धि की जहाज द्वारा पश्चिममें आदेन और लालसागर तोर- गौरव चारों तरफ फैल गया । वाणिज्यसमृद्धिके वत्ती बन्दरोंमें तथा पूर्व-बंगाल, यवद्वीप, सुमात्रा और लोभमें पड़ कर मुसलमानोंने उस समय पश्चिम-भारतमें बहुत दूर चीन तक रसनो होती थी। अभी बम्बई, सुराष्ट्र युद्धके लिये प्रस्थान किया । अनहिलबाड़के राज- और कच्छदेशके माण्डवी बन्दर तक भरोचके जलपथका पूतराजाओं के राजत्वकाल (७४६-१३०० ई० )में वाणिज्य फैला हुआ है। सूतो कपड़े, लौह, काष्ठ, सुपारी इसका वाणिज्य-प्रभाव अक्षुण्ण था। अनहिलबाड़राज- बंशका अधःपतन होनेसे भरोचराज्य विभिन्न राजाओंके ;

  • पुर्तगीजगण इस नगरकी समृद्धिकी कथा उल्लेख कर

हाथ लगा तथा उस विशृङ्खलताके समय वाणिज्यका भी गये हैं । यह नगर अट्टालिकाओंसे परिशाभित तथा हस्तिदन्त द्वारा निर्मित चिकने द्रव्य और सूक्ष्मवस्त्रसमूहोंसे पूर्ण था। यहां बहुसंख्यक भार्गर ब्राह्मणों का बास है। वे अपनेको इस समय यहांके जुलाहे उत्कृष्ट बन बुन समते थे।.. महर्षि भृगुके वंशधर बतलाते हैं। Decadas de conto. v, P, 325 Vol. XV, 187