पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७६०

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७५४ भरलुक बहुल चमड़े से ही बनाया करते हैं । बर्फ पर भ्रमण करते | बोधशक्ति इतनी तीक्ष्ण होती.है कि, एक बार कोई बात समय पैर फिसल जानेके 'डरसे ये जूतेसे लगा कर सिर उसे सिखाई जाय तो फिर वह उसे कभी नहीं भूलता । तक ढक जाय ऐसी एक पोशाक पहनते हैं, वह भी इसी । परन्तु जब दुर्बुद्धिता-वश अवाध्य हो जाता है, तब लाठी भालूके चमड़ेसे बनती है। भालूका कोमल मांस- मारने पर भी वह सीधा नहीं होता। भल्लु कोकी क्रीड़ा पिण्ड और चरवी उनका उपादेय खाद्य है। इसके सिवा अतीव कौतुहलोहोपक होती है। कठोर परिश्रमके बाद इसके पेटको नाड़ियों से वे एक प्रकारका मुहदान बनाने भल्ल ककी क्रीडा देखनेसे चित्त प्रसन्न हो जाता है। हैं, जो वसन्तकी प्रग्बर सूर्यरश्मि और शीतके प्रभावसे इसका नाच और अन्यान्य शिक्षित विषयोंका अनुकरण मुख और चक्ष को रक्षा करता है और वह होता भी इतना तश प्रतिक्षणमें ज्वर, कम्पन आदि बड़ा ही हास्यकर है। साफ है कि उनके भीनमें अनायाम ही सब चीजें नजर सिफ भारतमें ही नहीं, बल्कि विलायतमें भालू के नाच आती है। कालों कांच की जगह भी उसका व्यवहार आदिका आदर है। महाराणी एलिजावेथके समयमें किया जाना पड जागी इम्म ईश्वरका कुत्ता जान इंग्लेण्डमें भल्लुक-क्रीडाका समादर था। उस समय कर इसकी विशेष भनि. करते हैं। नौरवेके लोगोंका इस खेलको देखने के लिए लार्ड, आलं आदि बड़े आदमी विश्वास है कि एक भालूमें १० मनुष्यों का बल और १२ भी भालू पाला करते थे। विश्रामके समय वे क्रोडा. मनुष्योंका बुद्धि है। इसीलिए वे भूल कर भी उनके स्थल में जा कर आमोद उपभोग य.रते थे ।* लिए "गोझा ( II. 11: भल्लुक संज्ञावाचक) शब्दक प्राचीन रोमनोंमें भी भल्लुकका आदर था। वे दुष्ट ध्यवहार नहीं करते। उन्हें डर है, कि कहीं वे इस प्रकार व्यक्तियोंको वन्य भल्लुकोंके साथ लड़ाया करते थे। ऐसा किये गये अपमानका नदला न ले बैठे। डरसे समझो, कठोर दण्ड संभवतः उस समय और किसी सभ्य जाति- चाहे भक्तिसे, भल्लुकको देखते ही ! yeadlini jgu के अन्दर न था। वह आदमी यदि भल्लुकको मार कर अर्थात् रोमाच्छादित वृद्ध मनुष्य कह कर उनका सम्मान सुस्थ वा क्षतविक्षत हो कर लौट आये, तो उसे फांसीको करते हैं। मजा माफ कर दो जाती थी। पहले ही कहा जा चुका है, कि निजनता-प्रिय यह यूरोपमें धूसरवर्णके भल्लुक । 'rsus mger भल्लुक जाति सन्तान-प्रसवके समय वृक्ष कोटर अथवा (opi.clus ) के सिवा पिरिनिज और अष्टुरिरस पर्वतकन्दराओंमें आश्रय लेती है । परन्तु जब वे स्वभाव पर्वत पर विचरण करनेवाले पोले और सफेद रंगके भालू निर्दिष्ट निवासक सन्धानमें अक्षम होते हैं, तब अपने ।'. Iretton से भिन्न जातिके मालूम होते हैं। अमे- तीखे नाखूनों से जमीन खोद कर अथवा डाली आदिसे रिकाके भल्लु क (I'. Americanus) उक्त दोनों श्रेणियोंसे कुटोर बना लेते हैं। ज्येष्ट मासके दारुण ग्रीष्ममें भल्लु- : क्षुद्राकार हैं । अमेरिका महादेशके करीब करीव कियों के गर्भ रहता है। उस समय वे आनन्दसे बिहार सभी परतों और जंगलोंमें यह पाया जाता है। अमे- करतीं और आहारादिमे शरीरको पुष्टि करती हुई शीता रिका-वासी इण्डियन लोग भल्लुकों पर विशेष भक्ति गममें अपने अपने निर्दिष्ट स्थानों में पड़ी रहती हैं। वहां रखते हैं। वे भालुओंको बृडीमैया ( पितामही ) कहते बच्चे देनेके बाद भल्लु को और भल्लु क निश्चेष्ट और हैं। चिलिके समीपवतो आन्दीज पर्वतमालामें निद्रित रह कर अनाहारमें ही दिन बिताते हैं। प्रसवा- ' • En:, cyelo. .vat. llist, vol 1. p. 403 वस्थामें इनके बच्चे कुत्तेके पिल्ले जैसे दीखते हैं । भल्ल क मार्शलने ओजस्वी भाषामें इस वीभत्स घटनाका चित्र की आयु ३१से ४७ वर्ष तक होती है । स्थूलाकार होने अङ्कित किया है । लौरेओनस नामक एक दोषी व्यक्तिको भीषया- पर भी ये तैरनेमें तेज होते हैं। । दर्शन एक भल्लुकके सामने छोड़ दिया गया था। भल्लुकको शिक्षा देने पर वह अपने प्रभुके सिखाये ना हेनरी साहबने एक भालूको गोलीसे मारा था। वे हुए विषयोंको सहजमें अभ्यास कर सकता है । - इसकी जिस मकान में रहते थे उसकी मालकिन एक इण्डियन स्त्री थी।