पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७६३

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. भवचक ७५७ भवचक-बौद्धमतानुसार जीवात्माको जन्मान्तर परिग्रह- करते हैं, उसीका इसमें वर्णन किया जाता है। तिब्बत- रूप चक्र-विशेष । जगत्में जीवोंको विभिन्नरूपमें उत्पत्ति देशके लासा नगरस्थ 'द्गे लुगम -प' नामक दौसम्प्र- और निवृत्ति देख कर वौद्धोंने जीवात्माके रूपान्तरग्रहण दायमें, सिक्किमके 'तपि-दिङ्ग' बजारममें नया अजन्ता और 'का-विकाशको ही जीवजन्मके उत्कर्षायकर्षका गुहा-मन्दिरमै उक्त भवचक्रको प्रतिकृति पायी जाती है बोधक मान कर उसे एक चक्र * रूपमें निर्दिष्ट किया है। उनमें परस्पर सामान्य प्रभेद होने पर भी, अर्थानुगति जो किस प्रकार मूषिक-जन्मसे शकर और शकरसे गो प्रायः एक सी ही है। महिष आदि क्रमसे दुर्लभ मनुष्य-जन्मसे बुद्धत्व प्राप्त नरशिर ३ अन्ध मनुष्य अविद्यारूप कुम्भकार संस्काररूप बानर विज्ञानरूप नौकारोही नर नारी नामरूप नरलोक शववाही | सूरलोक सूरलोक शववाही मरणरूप । असुरलोक शून्यअट्टालिका पड़ायतनरूप दगोनि सुगति मन्तान-प्रमा जाति वा जन्म तिर्याक्लोक मालिंगनवद्ध प्रतलोक पुत्रीस्पर्शरूप यमलोक गर्भाधान चित्र कामना पूलुब्ध सञ्चयो-पुरुष मयप नरनारी तीरविद्धचक्षु पु मूर्ति भवरूप उपादानरूप तृष्णारूप वेदनारूप व्याघ्र-पुच्छ, महायान-मतावलम्बियोंका कहना है, कि महमिका घा: अहित-साधनमें रत रहता है, इसलिए मानवमात्रको मात्मवाद पिशाच साश है । यह सर्वदा ही मानवके । चाहिए कि वह इस ममलकर प्रेतरूपी पिचाशको

  • बौद्धधर्ममें 'चक्र' शब्दसे सोपान, स्तर वा क्रम अर्थ निकाला लीलामें प्रवृत्त जीवात्मा किस प्रकार कर्मफझसे एक देहसे दूसरी

गया है। उनके 'धर्मचक्र' और 'मसारचक्र'-से ऐसा हो अर्थ देहमें गमन वा ग्रहण करता है । ( Transmigratory महीत हुभा है। इस भवधाममें जीवात्मा किस प्रकार परिभ्रामि . Existenerc) इस बातको जनसाधारणको ज्ञात करानेके लिए होता है, भवचक्रमें उसीका प्रदर्शन कराया गया है। संसार-। इस भवचक्रकी कल्पना की गई है। ___Vol. xv. 190