पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७६६

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भेद। भवदेवभट्ट-भवनो . . शासन प्राम प्राप्त हुआ था। उनमें रादनेशका सिद्धल । भवद मिश्र-१ वृहन्छन्ग रबटीकाके प्रणेता। २ सुबो- प्राम सर्व प्रथम है । जिन्होंने सिद्धल प्राम प्राप्त धिनी नामक रघुवंशटीकाके रचयिता। ३ विख्यात किया था, उनके तलवशमें महादेव, भवदेव और पण्डित कृष्णदेषके पुत्र इन्होंने १६४६ ६०में पट्टनमें रह अट्टहास नामके तीन महात्माओं का जन्म हुआ। भव-! कर पातञ्जलीयाभिनवभाष्य आदि प्रन्थ लिखें हैं। देवने विद्या ओर बुद्धि में गण्यमान्य हो कर गौड़ाधिपसे भवहेव (सं० पु०) स्मृतिकौस्तुभवर्णित एक पण्डि । हस्तिनी प्राम प्राप्त किया था। उन भवदेवके रथाङ्ग भवधरण ( स० पु० ) संसारको धारण करनेवाला, पर- आदि आठ पुत्र उत्पन्न हुए । रथाङ्गके पुत्र अत्यङ्ग और मेश्वर । उनके पुत्र आदिदेव ये। आदिदेव वङ्गाधिपतिके विश्राम भवन ( स० क्ली०) भवत्यस्मिन्निति, भू-अधिकरणे ल्य र । सचिव, महामन्त्री, महापात्र और मन्धिविप्रहिक थे। १ गृह, धर। २ प्रासाद, महल । भू-भावे ल्य ट् । ३ इनके पुत्र गोवद्धनने वन्द्यघटो-कुलोद्भवा एक धार्मिष्ठा- तर्कशास्त्रम भाव । ४ जन्म । ५ सत्ता। ६ छप्पयका एक का पाणिग्रहण किया था । उन्होंके गर्भसे भवदेव भट्टका जन्म हुआ था। इन भवदेवको मन्त्रणाके प्रभावसे राजा भवन ( हि० पु.) १ जगत् , संसार। २ कोहके चारों हरिवर्मदेव और उनके पुत्रने बहुन दिनों तक राज्यभोग ओरका वह चक्कर जिसमें बैल घूमते हैं। किया था। वौद्धशास्त्रका मथन कर इन्होंने पाषण्ड और भवनद (स.पु. ) भवसागर, संसारसमुद्र । वैतण्डिकोंके मतका खण्डन किया था। सिद्धान्त, तन्त्र भवनन्द ( स० पु० ) एक प्राचीन अभिनेता। और गणितशास्त्र में इनकी विशेष व्युत्पत्ति थी। पूर्वोक्त भवनन्दिन ( स० पु० ) भवका पुत्र । धर्मशास्त्र के निबन्धोंका उद्धार करनेके सिवा इन्होंने नवीन भवनपति ( स० पु० ) भवनस्य पतिः ६ तत्। १ गृह होराशास्त्र, भट्टोक्त मोमांसानोति और न्यायशास्त्रकी: स्वामी, घरका म लिक । २ राश्यधीश, राशिचक्रके किसी रचना को थो। आयुर्वेदादि शास्त्रोंमें भी इनका अपूर्व । घरका स्वामी। ३ जैनियोंके दस देवताओंका एक वर्ग। पाण्डित्य था । इनका अपर नाम 'बालबलभीभुजङ्ग' . इनके नाम ये हैं--असुर कुमार, नागकुमार, तडित्कुमार, था। राढ़ देशके नाना स्थानों में जलाभावको दूर करने । सुवर्णकुमार, वहिकुमार, अनिलकुमार, स्तनित्कुमार, के लिए आपने जलाशय प्रतिष्ठित किये थे। उक्त अनन्त उदधिकुमार, द्वीपकुमार और दिषकुमार । वासुदेवको मन्दिर इन्हीं महात्माकी कोर्ति है और उस भवनाग---अश्वलायनसूत्रभाष्य वा प्रयोग भाष्यके प्रणेता । मन्दिरके पाव स्थित सरोवर भी उन्हींके प्रयत्नसे २भारशिव जातिके एक अधिपति । वना था। भवनाथ--खएडनखण्डखाद्य-टीकाके रचयिता। इन भवदेवभट्ट बालवलभीभुजङ्गकी पद्धतिके अनुसार भवनाथमिश्र--१ अनर्घराघवटोकाके प्रणेता । २ मोमांसा- अब भी राढ़ देशके ब्राह्मसमाजमें संस्कारादि सम्पन्न होते. नयविवेक रचयिता । ३ भावप्रकाशके रचयिता भाषमिश्र- हैं। इन्होंने छन्दोगपद्धतिकी भी रचना की थी। का एक नाम ।

  • भत्रदेवकी यह कुलप्रशस्ति ईसाकी १०वीं या ११वीं शताब्दी- भचनाधीश ( स० पु०) भवनस्य अधांशः। भवनपति,

में उत्कीर्ण हुई थी। इससे मालूम होता है कि उनके वृद्धाति- गृहस्वामो, घरका मालिक । वृद्ध पितामह १म भवदेव अवश्य ही ८वीं वा हवीं शताब्दीके थे, भवनाशिनो ( स० स्त्री०) भवं संसारं जन्मादिकंवा इसलिये सिद्धल ग्रामका प्राप्त करना और पञ्च ब्राह्मणोंका गौड़में नाशयति उत्सादयति नाशयितुं शीलमस्येति वा नश- आना उससे पहले संघटित हुआ था, इसमें कोई सन्देह नहीं रह णिच-णिनि। सरयूनदी। इस नदीमें स्नान करनेसे जाता। फिरसे जन्म नहीं लेना पड़ता, इसीसे इसको भवनाशिनी "वसर जातीय इतिहास" नामक बंगला प्रन्थके ब्राह्मण- कहते हैं। (पुराण) कापडमें कुलप्रशस्तिका पाठ दिया गया है। भवनी ( हिं० स्त्री० ) गृहिणी, भार्या, स्त्री।