पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फलचमस-फलना ७१ होता है। यह स्त्रीरोगाधिकारमें एक उत्कृष्ट औषध है। साताराके राजाने इस पर अधिकार किया। १८२७ ई०- स्वयं अश्विनीकुमारने इस घृतका उपदेश दिया है। इसे में उन्होंने नजराना ले फर बालाजी नायकको पितृसिंहा- फलकल्याणधृत भी कहते हैं। (भैषज्यरत्ना० स्त्रीरोगाधि) सन पर बैठनेकी अनुमति दी। १८२८ से १८४१ ई० तक फलचमस ( स० पु०) दधिमिश्रित वटत्वक् चूर्ण, एक फलतान फिरसे साताराके शासनाधीन रहा। पीछे मृत प्रकारका पुराना व्यञ्जन जो बड़की छालको कूट कर उसके राजाकी विधवा पत्नीने गोद लेनेका अधिकार पाया। चूर्णको दहीमें मिला कर बनाया जाता था। ये हिन्दू और जातिके क्षत्रिय हैं। इन्हें दत्तक लेनेका फलचारक (सं० पु०) १ फलविभाजक. फलविभागकारी। अधिकार है। बड़े लड़के हो राज्यके उत्तराधिकारी २ बौद्धमतके अनुसार प्राचीनकालके एक कर्मचारोके : होते हैं। पदका नाम । २ उक्त सामन्तराज्यका प्रधान नगर । यह अक्षा०१७ फलचोरक ( स० पु० ) फलं चोर इव यस्य कन्। चोरक . ५६ उ० और देशा० ७४२८ पू० सातारासे ३७ मोल मामक गन्ध दध्य। । उत्तर-पूर्व में अवस्थित है। जनसंख्या दश हजारके लगभग फलच्छदम ( स० क्ली० ) काष्ठनिर्मित गृह। है। १८वीं शताब्दीमें राजा निम्बराजने यह नगर बसाया । फलजलवासुदेव (सं० पु० ) एक प्राचीन कवि। यहांकी सड़क परिष्कार, परिच्छन्न और वृक्षच्छायायुक्त फलजाति सं० स्त्री० ) जातीफलवृक्ष। है। १८६८ ई०में म्युनिसिपलिटी स्थापित हुई। फलतः ( स० अध्य० ) फलस्वरूप, इसलिये। : फलत्रय ( स० क्ली० ) फलस्य लय ६तत् । १ द्राक्षा, फलता -बङ्गालके २४ परगनेके अन्तर्गत एक प्राम। यह पुरुष और काश्मय ये तीनों फल। २ हड़, बहेड़ा और अक्षा० २२१८ उ० और देशा० ८८ १० पू०, हुगली आंवला इन तीनोंका समूह। नदीके किनारे अवस्थित है। इसके ठीक दूसरे किनारे फलत्रिक ( स क्ली० ) फलस्य त्रिकम् । १ भावप्रकाश- दामोदरनदी आ कर गङ्गामें मिल गई है। पहले यहां के अनुसार सोंठ, पीपल और काली मिर। २ त्रिफला, ओलन्दाजोंकी एक कोठी थी। नवाब सिराज-उद्दौलाने हड़, बहेड़ा और आंवला। जब कलकत्ते पर आक्रमण किया, तब अङ्गरेज रणतर' ले फलद ( स० पु० ) फल ददातीति दा-(आतोऽनुपम । कर ड्रेक साहव यहीं पर रहते थे। यहां पहले एक छोटा पा ३,२२३) इति-क। वृक्ष, पेड़। (त्रि०) २ फल- दुर्ग था जो अभी छोड़ दिया गया है। दाता, फल देनेवाला। फलतान -दाक्षिणात्यके सातारा अधिकारमुक्त एक फलदान ( हिं० पु० ) १ हिन्दुओंकी एक रीति जो विवाह सामन्तराज्य। यह अना० १७५६ से १८६ उ० और · होनेके पहले उस समय होती है जब कोई व्यक्ति अपनी देशा० ७४१६ से ७४४४ पू०के मध्य अवस्थित है। कन्याका विवाह किसीके लड़केके साथ करना निश्चित इसके उत्तर पूना जिला और तीन ओर सातारा-राज्य करता है। इसमें कन्याका पिता रुपये, मिठाई, अक्षत, है। भूपरिमाण ३६७ वर्गमील है। उत्पन्न शस्यादिके फूल आदि लोक-प्रथाके अनुसार शुभ मुहूर्तमें वरके घर अलावा यहां तेल, कपास और रेशमी वस्त्र बुनने तथा भेजता है। उस समय विवाह निश्चित मान लिया पत्थरको मूर्ति बनानेका विस्तृत कारवार है। जाता है। इसका दूसरा नाम वररक्षा भी है। २ विवाह- यहांके सरदार राजपूत हैं। इस वंशके पदकला सम्बन्धी टोकेकी रसम । जगदेव नामक कोई व्यक्ति दिल्लीदरबारमें नौकरी करत फलदार ( हिं० वि० ) १ फलवाला, जिसमें फल लगे हों। थे। १३२० ई०के युद्ध में उनकी मृत्यु हुई। विश्वासी २ जो फले, जिसमें फल लगे। भृत्यकी मृत्युसे व्यथित हो सम्राट्ने उनके लड़के निम्ब- फलदू ( हिं० पु०) धौली नामका एक वृक्ष । राजको नायकको उपाधि और जागीर दी। १३४६ ई०- | फलद्र म ( स० पु० ) फलितक्ष, फला हुआ पेड़। में निम्बराजका देहान्त हुआ। इसके बाद १८२५ ई०में | फलना ( हिं० कि० ) १ फलसे युक्त होना, फल लाना ।