पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७८

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७२ फलन्दि-फलयोग २ परिणाम निकलना, लाभदायक होना। ३शरीरके फलबन्धी (सं० त्रि.) फलबन्धनकारी, फल बढ़ेगा, इस किसी भाग पर बहुतसे छोटे छोटे दानोंका एक साथ ख्यालसे जो उसे कपड़े द्वारा बांध देता है। निकल आना जिससे पीड़ा होती है। ४ एक प्रकारको फलबन्ध्य (सं० पु० ) फले बन्ध्यः । फलशून्यवृक्ष, छेनी । यह चितेरे संगतराश सादी पत्तियां बनानेमें काम बांझ पेड़। आती है। फलभाग ( स० पु०) फलका भाग, शल्यादिका अंश । फलन्दि · राजपुतानेकी मरुभूमिमें अवस्थित एक नगर। फलभागी (स० वि०) फल-भज-णिनि । फलभोगकारी, इसके प्रधान पथ पर प्रस्तरनिर्मित अट्टालिका अच्छी फलका भोग करनेवाला। तरह सजी हुई है। मध्यभागमें एक दृढ़ दुर्ग है और फलभाज (स० त्रि०) फल भजते (भजो ण्विः । पा जिस प्राचीरसे दुर्ग घिरा हुआ है वह ४० फुट ऊचा ३।२।६२) इति भज-ण्वि । फलभागी, सुख दुःखका फल- है। इस दुर्गमें उतने युद्धोपकरण नहीं हैं। इसके पास भोक्ता। ही एक्का नामक पर्वत दण्डायमान है। ___ शास्त्रमें जिन सब काँका विधान है, उसे जिस दिन फलपञ्चाम्ल ( स० क्ली० ) अम्ल फलपञ्चक । करना होगा, उस दिन उस कर्गका तथा मास, तिथि फलपाक (सं० पु० ) फलेषु पाकोऽस्य । १ करमर्दक, और पक्षका उल्लेख कर कार्य करना होगा, नहीं तो उस करौंदा। २ पानीय आमलक, जल-आंवला। कर्मका फलभोग नहीं होता। फलपाकान्ता (सं० स्त्री०) फलपाकेन अन्तो नाशो फलभूमि (सं० स्त्री०) फलाय कर्मफलभोगाय भूमिः। यस्याः। ओषधि, धान्य और कदली आदि। कर्मफलभोगस्थान, वह स्थान जहां कर्मोंके फलका भोग फलपाकिन् ( स० पु. ) फलपाकोऽस्त्यस्येति इनि । गर्द- करना पड़ता हो। भाण्डवृक्ष, गर्दभांडका पेड़। फलभोग ( स० पु० ) फलस्य भोगः ६-तत्। कर्मफल फलपादप ( सं० पु०) फलवृक्ष । सुखदुःखादिका भोग। फलपिप्पली ( सं० पु० ) फलवीज । फलभृत् (सं० त्रि०) फलं विभर्ति भृ-क्किए । फलित- फलपुच्छ ( सं० पु. ) फलं पुष्प इव यस्य । वरण्डालु, वृक्ष, फला हुआ पेड़। वह वनस्पति जिसकी जड़में गांठ पडती हों, जैसे प्याज, फलम-१ ब्रह्मके चीन पहाड़का एक उपविभाग। इसके शलगम आदि। उत्तरमें टिडिम और दक्षिणमें हाका उपविभाग है। जन फलपुर (सं० क्ली० ) नगरभेद। संख्या प्रायः ३६८५८ है। इसमें कुल १४३ प्राम फलपुष्प ( स० पु० ) वह वनस्पति जिसमें फल और पुष्प लगते है। दोनों हों। २ ब्रह्मके चीन पहाडका सदर। यह अक्षा० २२ फलपुष्पा (सं० स्त्री०) फलानि पुष्पाणीव यस्याः। पिण्ड- ५६ उ० तथा देशा० ६३४ पू० मणिपुर नदीके किनारे खजूरीवृक्ष, पिण्डखजूर । । अवस्थित है। यहांकी आवहवा अच्छी नहीं है। फलपुष्पो ( स० स्त्री० ) पिण्डखजूरीशक्ष, पिण्डखजूर । फलमत्स्या (सं० स्त्री० ) घृतकुमारी, घीकुआर । फलपूर । सं० पु०) फलेन पूर्णः। १ दाडिम्ब, अनार । फलमुख्या (सं० स्त्री० ) फलेन मुख्या श्रेष्ठा। अजमोदा । २ मातुलुङ्गवृक्ष, बिजौरा नीबू ।। फलमुण्ड (सं० पु० ) नारिकेलवृक्ष, नारियलका पेड़। फलपूरक ( सं० पु० ) फलपूर स्वार्थे कन् । बीजपूर । .. फलमुद्गरिका (सं० स्त्री०) फले फलावच्छेदे मुद्ररिका फलप्रद (सं० त्रिः) फलं प्रददातीति प्रदा (आतश्चोप- शुदमुद्र इव । पिण्डखजूर, पिण्डखजूर । सर्गे । पा ९११३६) इति क । फलदाता, फल देनेवाला। फलमूलिन् (सं० वि०) फूल और मूलयुक्त । फलप्रिय (सं० पु०) द्रोणकाक, डोम कौवा। फलयुग्मा ( स० स्त्रो०) इन्दीवरा। फलप्रिया (सं० स्त्री० ) फलेन प्रोणातीति बी-क-टाप । फलयोग (सं० पु० ) नाटकमें वह स्थान जिसमें फलको प्रियंगु। प्राप्ति या उसके नायकके उद्देश्यकी सिद्धि हो ।